भक्त अपने धर्म से ना डिगे तो परमात्मा उसे निहाल कर देता है। — गुरु भक्ति से कामनाओं, वासनाओ से छुटकारा पाया जा सकता है : कंवर साहेब

मन की कामनाये, वासनाएं इंसान को भक्ति से भटकाती हैं : कंवर साहेब

चरखी दादरी जयवीर सिंह फौगाट

24 मार्च, होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और भाईचारे का प्रतीक है। जहां होलिका दहन हमें यह सीख देता है कि बुरा कर्म युग पलटने के बाद भी खड़ा रहता है और उसे करने वाला युगों युगों तक उसकी सजा के तौर पर जनमानस की घृणा पाता है वहीं दुल्हांड़ी हमें भाईचारे और प्रेम का संदेश देती है। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने राजस्थान प्रांत के अलवर जिले के झरझिला गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाये। हुजूर ने कहा कि होलीका राक्षसी प्रवृति की थी जिसने भगवान के भक्त को मिटाने की सोची लेकिन आखिर जीत भक्त की ही हुई। अगर भक्त अपने धर्म से ना डिगे तो परमात्मा उसे निहाल कर देता है। भक्ति अनेक तरीके की हैं परंतु प्रभु के नाम की भक्ति सबसे उत्तम भक्ति है।

गुरु जी ने कहा कि पुराणों में होलिका दहन के सन्दर्भ में नारायण भक्त प्रह्लाद की कथा को वर्णित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि कैसे अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप ने पुत्र की हत्या के लिए षड्यंत्र रचा था, जो भगवान नारायण की कृपा से सफल नहीं हो पाया। हुजुर ने कहा कि जिस पर परमात्मा की कृपा होती है उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता। गुरु जी ने कहा कि जिस प्रकार सन्तान के कष्ट से माता पिता को दुख होता है उसी प्रकार सेवक को कष्ट होने पर परमात्मा को कष्ट होता है। भक्त प्रह्लाद के ऊपर आये कष्ट से सभी भक्त त्राहि त्राहि कर उठे और उन्होंने अपनी कंठी मालाओं को उतार कर अग्नि में फेकना शुरू कर दिया। भक्तों की पुकार से परमात्मा ने भक्त को बचा लिया और होलिका को जला दिया। हुजुर ने कहा कि होलिका की बुराई पर आज भी लोग उसको जलाते हैं।

गुरु जी ने कहा कि होली सर्दियों के अंत और भारत में वसंत ऋतु के आगमन का जश्न मनाती है। भारतीयों के लिए यह दूसरे से मिलने और टूटे रिश्तों को जोड़ने का दिन है। होली का त्योहार भले ही रंगों के साथ मनाया जाता है लेकिन इनके माध्यम से लोग दिल जोड़ते हैं। गुरु जी ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब जब भक्तों को पीड़ा पहुंचाई गई परमात्मा ने हर बार उनकी रक्षा की है। हुजुर ने कहा कि परमात्मा की रजा में ही सबका कल्याण है। गुरु जी ने कहा कि सबका कल्याण चाहने वाले का कभी अहित नहीं हो सकता। सबका कल्याण की भावना गुरुभक्ति से ही सम्भव है क्योंकि गुरु की शरणाई आपको मनमुखि से गुरुमुखी बनाता है।

हुजुर ने कहा कि मन की कामनाये और वासनाएं इंसान को भक्ति से भटकाती हैं। बिना गुरु भक्ति से ही इन कामनाओं और वासनाओ से छुटकारा पाया जा सकता है। गुरु महाराज जी ने ययाति राजा की कथा सुनाते हुए कहा कि कर्मो का बोझ ढोते ढोते हमारा एक नहीं कई जीवन खप जाते हैं लेकिन हम दुनियादारी के रसों के स्वाद को हम नहीं छोड़ पाते। लालच और स्वार्थ के बस होकर हम गलतियों पर गलतियां करते हैं। पहले द्रव्यों को इकट्ठा करने में हम दुखी होते है और बाद में उसके हाथ से छूटने के भय से दुखी होते हैं। हुजूर ने कहा कि हैरानी की बात है कि जो नारायण हर नर के अंतर में बैठा है उसी को यह नर मंदिर मस्जिद गुफा कन्दराओं जप तप और अन्य क्रिया कलापो में खोजता है। गुरु जी ने कहा कि परमात्मा मिलेगा तो आपके विश्वास में मिलेगा। अगर खोजी बनो तो सबसे पहले स्वयं को खोजो। आपके रोम रोम में दया प्रेम और भक्ति भरी है फिर आप दानवी प्रवृति को क्यों पनपने देते हो।

हुजुर ने कहा कि अगर शरणागत ही हो गए तो धोखा नहीं मानोगे और धोखा मान रहे हो तो शरणागत नहीं हुए हो। गुरु महाराज जी ने कहा कि होली का यही संदेश है कि खुद अच्छे बनो और दूसरों को भी अच्छा बनाओ। किसी भक्त की भक्ति से प्रेरणा पाओ ना कि उसके मार्ग में बाधा बनो। सेवक बनना सीख जाओ परमात्मा को अपने आस पास पाओगे। हुजुर ने कहा कि अपने माता पिता की सेवा करो, बड़े बुजुर्गों की सेवा करो, बच्चों को भक्ति और सच्चाई की शिक्षा दो।

error: Content is protected !!