भारत में हर समाज की मातृभाषा ही उसकी संस्कृति अभिव्यक्ति व समाज और व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है।
आओ भाषाओं की मिठास को पहचानें -सिंधियत की समृद्ध संस्कृति परंपराओं व सिंधी भाषा को बचाए रखना हम सभी के लिए चुनौती
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

भारत एक विविधता भरा राष्ट्र है जहां हर समाज की मातृभाषा न केवल उसकी पहचान, बल्कि उसकी संस्कृति, अभिव्यक्ति और सामाजिक अस्तित्व की प्रतिनिधि भी होती है। इस संदर्भ में सिंधी भाषा का स्थान विशेष है-एक ऐसी बोली जो मिठास, विरासत और आत्मीयता से परिपूर्ण है।
हर वर्ष 10 अप्रैल को “सिंधी भाषा दिवस” मनाया जाता है। यह दिन 1967 में सिंधी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की स्मृति में मनाया जाता है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि सिंधी भाषा और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का प्रतीक भी है।
सिंधी भाषा दिवस का ऐतिहासिक संदर्भ
10 अप्रैल 1967 को संविधान के 21वें संशोधन अधिनियम के अंतर्गत सिंधी भाषा को आठवीं अनुसूची में स्थान मिला। यह कदम सिंधी भाषियों की लंबे समय से चली आ रही मांग का परिणाम था।
इस संशोधन को तत्कालीन गृह मंत्री वाई.बी. चव्हाण द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसे राज्यसभा ने 4 अप्रैल और लोकसभा ने 7 अप्रैल को पारित किया। अंततः तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन की सहमति के साथ यह 10 अप्रैल को लागू हुआ। यह ऐतिहासिक क्षण सिंधी समाज के लिए गौरव का विषय बना।

सिंधियत की समृद्ध विरासत और आज की चुनौतियाँ
सिंधी समुदाय आज वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है, लेकिन इसके साथ एक नई चुनौती भी उत्पन्न हुई है — सिंधी भाषा और संस्कृति को जीवंत बनाए रखना।
आज के युवाओं में सिंधी भाषा के प्रयोग में कमी देखी जा रही है। अंग्रेजी और अन्य प्रभावशाली भाषाओं के कारण न केवल सिंधी, बल्कि अन्य क्षेत्रीय भाषाएं भी खतरे में हैं। अतः आवश्यकता है कि:
(1) युवा पीढ़ी को भाषा से जोड़ा जाए।
(2) गैर-सिंधी छात्रों को भी भाषा सिखाई जाए।
(3) छात्रवृत्ति, प्रतियोगिताएं और भाषाई सामग्री के ज़रिये भाषा को लोकप्रिय बनाया जाए।
सिंधी भाषा के 10 रोचक तथ्य
(1) द्रविड़ और आर्य भाषाओं का संगम – सिंधी भाषा भारतीय आर्य भाषाओं के पश्चिमोत्तर समूह से संबंधित है।
(2) वेदों से पूर्व की भाषा – इसकी उत्पत्ति वैदिक काल से भी पहले की मानी जाती है।
(3) संस्कृत और प्राकृत से गहरा संबंध – संस्कृत, पालि और अपभ्रंश से प्रभावित भाषा।

(4) अरबी-फारसी प्रभाव – विदेशी आक्रमणों के कारण अरबी और फारसी शब्दों की संख्या बढ़ी।
(5) दो प्रमुख लिपियाँ – अरबी-सिंधी और देवनागरी-सिंधी।
(6) 52 वर्ण वाली लिपि – अरबी-सिंधी लिपि में कुल 52 वर्ण होते हैं।
(7) भारत-पाक विभाजन का प्रभाव – विभाजन के बाद सिंधी भाषा को भारत में नई पहचान मिली।
(8) हड़प्पा सभ्यता से संबंध – सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी ऐतिहासिक जड़ें।
(9) दाएं से बाएं लेखन शैली – अरबी लिपि के कारण सिंधी दाएं से बाएं लिखी जाती है।
(10) प्रमुख बोलियाँ – सिराइकी, विचोली, लाड़ी, लासी, थरेली, कच्छी आदि।
मातृभाषा का महत्व
मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कृति, परंपरा और मूल्यों का स्थानांतरण है। जब तक हम अपनी भाषा को आत्मसात नहीं करते, हम अपनी जड़ों से कटते जाते हैं।
भाषा की मिठास तभी आती है जब हम उसे सजीव रूप में अपनाते हैं — शुद्ध उच्चारण, व्याकरण का सही प्रयोग और भावनाओं के साथ अभिव्यक्ति।
निष्कर्ष
आइए लें संकल्प – अपनी भाषा को संजोएं, सिंधी भाषा दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है — हमारी मातृभाषा को जीवंत रखने की।
आइए, 10 अप्रैल 2025 को हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम सिंधी भाषा की मिठास, समृद्ध विरासत और पहचान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएंगे।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र