कहा: जो सन्त सतगुरु से नाम भेद लेकर उनके हुक्म में रहना सीख जाता है वो सारे बन्धनों से मुक्त हो जाता है। –राम तो घट घट में व्याप्त है : कंवर साहेब कहा: सन्तमत में राधास्वामी मत सहज योग है, इसे आठ साल का बच्चा भी कर सकता है और साठ साल का बुढ़ा भी। –संपति नहीं सन्तति को ठीक करो : कंवर साहेब कहा: सन्तान की इच्छा नहीं केवल जरूरत पूरी करो चरखी दादरी/गोहाना जयवीर सिंह फौगाट, 31 मार्च, चौरासी लाख यौनियो में इंसान के तुल्य कोई नहीं है क्योंकि यही वो यौनि है जिसमें परमात्मा के हुक्म से उन्हीं के अंश के रूप में सन्त प्रकट होते हैं और जीवों को भक्ति और मुक्ति का मार्ग सुझाते हैं। परमात्मा का नाम मुक्ति की युक्ति हैं। जो सन्त सतगुरु से नाम भेद लेकर उन्हीं के हुक्म में रहना सीख जाता है वो सारे बन्धनों से अपने आप को मुक्त करवा जाता है। यह सत्संग वचन परमसन्त सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने गोहाना के पानीपत रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाये। हुजूर साहब ने उपस्थित संगत को उच्च कोटि का सत्संग फरमाते हुए कहा कि सुमिरन भी कई प्रकार है। एक है स्वयं की स्वार्थपूर्ति हेतु, दूसरा है किसी के अनिष्ट के लिए और तीसरा है रूह के कल्याण के लिए। इसमें ना स्वयं की ना औरों के प्रति कामना है ना स्वार्थ। यह आपके ऊपर निर्भर है कि आप इस संसार से रोते हुए जाओगे या मस्त फकीरी में। गुरु महाराज जी ने कहा जो रूहानी खुराक हमें जिन्दा गुरु से मिलती है वो मूर्ति पूजा या मंदिर मस्जिद या घाटों पर नहीं मिल सकती। सन्त सतगुरु की शरणाई ली है तो मन वचन और कर्म से किसी को कष्ट मत दो। नेकी करो और दरिया में डालो। हुजूर साहब ने कहा इस जगत में कोई सुखी नहीं है। हम दुनिया के पदार्थो को ही सुख मान लेते हैं। सुख है तो नाम की कमाई में है। गुरु महाराज जी ने कहा कि अहंकार का फंदा हर गले में है। किसी को पद का किसी को दौलत का तो किसी को शक्ति का अहंकार आ जाता है यहीं अहंकार आपको कर्मो से गिराता है। सन्त सतगुरु की शरण से इंसान अहंकार से मुक्त होता है। हुजूर साहब ने फरमाया कि बुराई की कोई पाठशाला नहीं है फिर भी हम बुराई को जल्दी सीख जाते हैं क्योंकि हमारे अंदर की नकारात्मक शक्तियां पहले से सक्रिय होती हैं। सन्त सतगुरु की शरणाई नकारात्मक को सकारात्मक में बदलती है। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि परमात्मा अविनाशी है क्योंकि वो अटल अजर अमर है इसलिए पिया वरो तो परमात्मा को वरो ताकि हम सदा सुहागन रहें। हुजूर साहब ने कहा कि सन्तमत मनमुखो की नहीं गुरुमुखों की दुनिया है लेकिन मनमुखता और गुरुमुखता कि समझ भी सन्तो के सत्संग से ही आएगी। लेकिन मन आपकी वृति को सत्संग में नहीं टिकने देगा। गुरु महाराज जी एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि दो चींटियां थी। एक नमक के पहाड़ पर रहती थी तो दूसरी मिश्री के पहाड़ पर। नमक के पहाड़ वाली चींटी एक बार मिसरी वाली के पास आ गई और मिसरी को मुँह में डाला और बोली कि ये भी नमक की भांति ही कड़वी है। मिसरी वाली चींटी बोली कि पहले अपने मुँह को पानी से धो और क़ुल्ला कर। जब उसने ऐसा किया तो उसे मिश्री मीठी लगी। इसी तरह आपकी मलिन वासनाएं आपके हृदय को पाक पवित्र नहीं बनने देती क्योंकि जब तक मन को बुराई से खाली नहीं करोगे तब तक अच्छाई का आनन्द नहीं आएगा। हुजूर साहब ने फरमाया कि जिन्होंने अपनी खुदी को गंवा दिया उन्होंने सब कुछ पा लिया। ये चिंता मत करो कि क्या होगा। ये मान कर चलो कि अच्छा करोगे तो अच्छा ही होगा। वर्तमान में जीयो क्योंकि एक पल का भी भरोसा नहीं है। नाम को बिसारना आत्मघात करना ही है। परमात्मा के नाम की कमाई ना करना सबसे बड़ा आत्मघात करना है। गुरु महाराज जी ने कहा कि खाना पीना हंसना सजना संवरना वास्तव में मुर्दे का ही श्रृंगार है। अगर समय रहते चेत जाओगे तो सुख ही सुख है। ये जीवन एक सपने की भांति है आंख खुली कि सपना खत्म। जीवन छोटा सही अगर वो पवित्र है। रावण ने लम्बा जीवन जिया लेकिन अपयश कमाया। हुजूर साहब ने कहा कि जिसमे परमात्मा की रमक लग जाती है उसका सब कुछ आसानी से छूट जाता है। ये रमक मीरा बाई को, सहजो को, बलख बुखार के बादशाह को लगी थी। जिस पर सतगुरु मेहरबान हो जाता है उसका रोम रोम तीर जाता है। गुरु तो सब को चाहता है लेकिन सवाल ये है कि गुरु को कौन चाहता है। जिस प्रकार एक सूर्य पूरी सृष्टि को प्रकाशित करता है उसी प्रकार सन्त सतगुरु भी ज्ञान का प्रकाश पूरी सृष्टि को प्रदान करता है। गुरु महाराज जी ने संगत से पूछा कि क्या राम का नाम लेना कठिन है। कठिन तो हम बनाते हैं। राम तो घट घट में व्याप्त है और कलयुग में तो ये और भी आसान है क्योंकि सन्तमत में राधास्वामी मत सहज योग है। इसे आठ साल का बच्चा भी कर सकता है और साठ साल का बुढ़ा भी। हुजूर साहब ने कहा कि संपति नहीं सन्तति को ठीक करो। सन्तान की इच्छा नहीं केवल जरूरत ही पूरी करो। अगर आपकी सन्तान ही बिगड़ गई तो ये कमाया हुआ धन क्या काम आएगा। माता-पिता बड़े बुजुर्गों की कद्र करो ताकि आपकी सन्तान भी आपसे यह संस्कार सीखें, सच्चाई का रास्ता मत छोड़ो, नशे विषयो से दूर रहो। Post navigation होली त्यौहार पर विशेष सत्संग: भक्ति के अनेक तरीके, परंतु प्रभु के नाम की भक्ति सबसे उत्तम : कंवर साहेब सनातन धर्म में ओंकार की साधना ही सर्वश्रेष्ठ है : समर्थगुरू सिद्धार्थ औलिया