जिले में रोज बढ़ रहे करीब 45 गरीब परिवार, दिव्यांग परिवार और अकेला व्यक्ति सूची से बाहर

आयकरदाता भी सूची में शामिल

भारत सारथी/ कौशिक

रेवाड़ी। सरकार की ओर से अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत करने के तमाम दावे किए जाते हैं, लेकिन जिले में हालात इसके विपरीत दिखाई दे रहे हैं। हालात सुधरने की बजाय बिगड़ रहे हैं।

जिले में वर्ष 2022 में 81664 बीपीएल परिवार थे, जो फरवरी 2023 बढ़कर 98254 हो गए। इस हिसाब से जिले में 16590 परिवार और गरीब हो गए। जिले में हर रोज 45 परिवार गरीब हो हो रहे हैं। हालांकि इस दौरान संपन्न हुए करीब 15 हजार गरीब परिवारों की सरकार की बीपीएल सूची से बाहर भी कर दिया गया है। जिले में सरकार के मानकों के अनुसार एक लाख 80 हजार की आय वाले परिवारों को गरीबी रेखा से बाहर किया जाना है या फिर इससे नीचे की आय वाले परिवारों को गरीबी रेखा में रखा जाना है। सरकार के मानकों पर खरा नहीं उतरने पर करीब 15 हजार से अधिक परिवारों को बीपीएल सूची से बाहर कर दिया गया है, जिससे जिले में गरीब परिवारों की संख्या कम होनी चाहिए थी, लेकिन जिले में इसके उलट हुआ। यहां 1.80 लाख से कम आय वाले परिवारों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन जिले में वास्तविक स्थिति कुछ अलग है। यहां ऐसे परिवारों को बीपीएल सूची से बाहर कर दिया, जिनके सामने दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़े हुए हैं, जबकि अनेक ऐसे परिवारों को गरीबों की सूची में शामिल कर दिया गया,जो न केवल आयकर दाता है बल्कि जिनके पास ऐशो आराम की सभी चीजें मौजूद है।

परिवार पहचान पत्र बनने के बाद बढ़े गरीब

जरूरतमंद लोगों को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सरकार की ओर से महत्वाकांक्षी योजना परिवार पहचान पत्र शुरू की गई। जिस भी परिवार की आय 1.80 लाख रुप से कम है, सभी को बीपीएल श्रेणी में जोड़ दिया गया। इसका असर यह पड़ा कि जिले में करीब 16590 बीपीएल परिवारों की संख्या बढ़ गई।

गरीब परिवारों को दिया जाता है निशुल्क राशन

देश-प्रदेश के लोगों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाने के तमाम दावे जरूर हुए, लेकिन जिस तरह से जिले में लगातार गरीब परिवारों की संख्या बढ़ रही है। ये दावे जमीनी स्तर पर फेल होते हुए दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि सरकार की ओर से बीपीएल परिवार को निशुल्क राशन दिया जाता है। ऐसे में सरकार के आर्थिक विकास पर भी इसका असर पड़ता है। ऐसे में लोगों को निशुल्क राशन देने की बजाय रोजगार देकर आर्थिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है।

परिवार का एकमात्र सदस्य फिर भी काटा नाम

गांव खंडोड़ा निवासी झूथर ने बताया कि उनकी उम्र करीब 62 साल है। वह अपने परिवार में अकेल सदस्य हैं। पड़ोस के परिवारों के सहयोग से अपना भरण-पोषण करते हैं। पहले बीपीएल में नाम था, लेकिन अब उनका नाम काट दिया गया है। इससे उनके सामने रोटी खाने का भी संकट पैदा हो गया है। वह संबंधित अधिकारियों के पास भी कई बार संपर्क कर चुका है। इसके विपरीत आर्थिक रूप से संपन्न लोगों को बीपीएल सूची से जोड़ दिया गया है।

लाचारी और मुफलिसी पड़ रही भारी, मत छीनो हक हमारी

परिवार में तीन सदस्य, तीनों ही दिव्यांग, फिर बीपीएल में नहीं है नाम

गांव काकोड़िया निवासी रमेश की कहानी कुछ अलग है। उनके परिवार में तीन सदस्य हैं। इसमें पत्नी के अलावा एक बेटा है। रमेश स्वयं 40 प्रतिशत दिव्यांग हैं। उनकी पत्नी 70 प्रतिशत व उसका बेटा 100 प्रतिशत दिव्यांग है। प्रशासनिक लापरवाही के कारण उनके परिवार को बीपीएल की सूची से हटा दिया गया है। रमेश का कहना है कि उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है। मजदूरी कर अपने परिवार को गुजारा कर रह रहे हैं। प्रशासनिक लापरवाही के कारण उनका नाम बीपीएल की सूची में नहीं जोड़ा जा गया है। कई बार संबंधित अधिकारियों के पास भी गुहार लगाई जा चुकी है। इसके अलावा उनकी दिव्यांग पेंशन भी नहीं है। उनका कहना है कि दिव्यांगता के कारण वे लाचार हैं। वहीं मुफलिसी ने भी उन्हें तंग कर रखा है। उनकी आय एक लाख 80 हजार से भी कम है। इसे अनदेखा करते हुए उनसे उनका हक छीना जा रहा है। उन्होंने सरकार और प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई है। ताकि जीवन सही ढंग से चल सके। इसी प्रकार काकोड़िया गांव के ही सत्यदेव के दो बच्चे आंखों से निशक्त हैं, लेकिन उनका नाम न तो बीपीएल सूची में है और न ही बच्चों की पेंशन बनाई गई है। सत्यदेव का कहना है कि वह भी कई बार अधिकारियों के दरबार में फरियाद लगा चुके हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं हो पा रहा है, जिससे उनके सामने भूखा करने की नौबत आ गई है।

बीपीएल सूची को बढ़ाना या काटना हाथ में नहीं है। सरकार की ओर से निर्धारित मानकों पर सही उतरने वाले परिवार को सूची में शामिल किया जाता है। आय अधिक होने पर नाम काटे जाते हैं।

जयकुमार यादव खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी रेवाड़ी।

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