भर्म से भ्रांति उतपन्न होती है और भ्रांति से भय बनता है : हुजूर कंवर साहेब

कोसली।। 06.08.2021।। जीवन में हर पल सावधानी रखनी ही पड़ेगी क्योंकि सावधानी हटी तो दुर्घटना होने की संभावना बन जाती है।यह उक्ति हमारे सामान्य जीवन में भी लागू होती है और भक्ति में भी।ये जीवन कर्मो से बंधा हुआ है।इन्ही कर्म बन्धनों से सुख दुख जुड़े हुए हैं।जो जीव ये समझ लेता है वह अपना कल्याण भी करवा लेता है।

हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि कर्म करने से कर्मफल बनता है और कर्मफल जीवन के धरातल पर ही बनाया जाता है।कर्मफल को बनाने के लिए ही सन्त सतगुरु की आवश्यकता है।कण कण में परमात्मा मौजूद है लेकिन प्रकट नही है।ना वो वस्तु कही खोई नहीं है बल्कि वो तो हमारे अंतर में मौजूद है लेकिन दुनिया को माया का ऐसा मोतियाबिंद हो गया है कि उसे दिखाई नहीं देता।

गुरु महाराज जी ने कहा कि भर्म से भ्रांति उतपन्न होती है और भ्रांति से भय बनता है।इस भ्रांति से शांति पूर्ण सन्त सतगुरु ही दिला सकता है।उन्होंने कहा कि भर्म संशय को पैदा करता है और जहां संशय है वही शोग है।उन्होंने कहा कि हम कहने को तो कह देते हैं कि नाम ले लो लेकिन नाम है क्या।नाम एक पहचान तो है।नाम हमारी आस्था का केन्द्र तो है लेकिन वो काम कैसे करता है।नाम काम करेगा सतगुरु की कृपा से।गुरु महाराज जी ने कहा कि सतगुरु ने कृपा की हमें उनकी शरण मिली।गुरु के दर्शन से और उनकी शरणाई से आपका मन पवित्र होता है और पवित्र मन में ही भक्ति समा सकती है।बार बार दोहराया जाता है कि गुरु ओर गोबिंद दोनो मिल जाये तो गुरु को पूजो क्योंकि गोविंद का मिलना सतगुरु की रहमत का ही परिणाम है।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि हर मां बाप अपनी संतान का कोई अच्छा सा नाम रखते हैं।अगर हम अपने नाम के अनुरूप भी काम करने लग जाये तो भी कल्याण हो जाये।सतगुरु के मिलने से लेखा निमडता है।उन्होंने कहा कि सन्त सतगुरु आडम्बरो और पाखण्डों पर चोट करते हैं।गुरु महाराज जी ने कहा कि भेष बनाने से काया पर राख मलने से,गंगा में नहाने से परमात्मा नहीं मिलता।परमात्मा को तो आप घर बैठे भी पा सकते हो बशर्ते कि आप के कर्म अच्छे हों।उन्होंने कहा कि पहले अपना आपा मारो।अपने जीवन को सुधारो।अपने दायित्व को पूरा करो।अपने आप में सब्र धर्य रखना सीखो।जब आप सुधर जाओगे तो ही आपकी सन्तान सुधरेगी।

उन्होंने कहा कि अपनी काया को संवारने से अच्छा है कि अपने मन को सँवारो।काया तो कच्चे घड़े की भांति है क्या पता कब फूट जाए।इसलिए अपने तन को संवारने की बजाए अपनी संतान को सँवारो।जितने नाम आप भक्तो के सुनते हैं जिनके आज हम गीत गा रहे हैं उनके मां बाप ने उनके अंदर बचपन से ही ऐसे संस्कार दिए थे।हुजूर ने कहा कि इंसान की यही खूबी है कि हम इसको जैसा बनाना चाहे ये वैसा ही बन जाता है बशर्ते कि ये प्रयास पूरे मनोयोग से होना चाहिए।उन्होंने कहा कि जैसे चांद के बिना रात सूनी है और सूर्य के बिना दिन सूना है वैसे ही गुरु के बिना इंसान का जीवन भी सूना है।उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान का इतना समृद्ध इतिहास है कि दुनिया ने यहां से संस्कार और तहजीब ली है लेकिन आज हम संस्कारो से ही कंगाल होते जा रहे हैं।

गुरु महाराज जी ने कहा कि भक्ति के लिए सेवा अति आवश्यक और सेवक भूख प्यास आलस और निंद्रा का गुलाम नहीं होना चाहिए।हुजूर महाराज जी ने कहा कि अपना काम स्वयं करना चाहिए।हुजूर ने कहा कि जब भक्त अपने इष्ट की भक्ति बिना किसी स्वार्थ के करता है तो कुदरत का भी तख्ता हिलता है।उन्होंने कहा कि गुरु नाम ज्ञान समझ विवेक का है।मन में साँच को जगा लो सत्य को पा जाओगे।पवित्र हॄदय में ही भक्ति उपजती है।गुरु की शरण लेकर भी यदि मन में सच्चाई नहीं है,बड़े बुजुर्गों की सेवा नहीं करते,मीठे वचन नहीं बोलते,मां बाप की सेवा नहीं करते,अब भी औरो की निंदा चुगली में फंसे हुए हैं तो समझो हम सबसे बड़ा धोखा खुद को ही दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि दूसरों को दुखी करके आप कभी सुखी नहीं हो सकते।परमात्मा के एहसानमन्द रहो और यही अरदास करो कि मालिक मुझे आन जान से मुक्त कर दो।उन्होंने कहा कि ये अटल सत्य है कि एक दिन सब मर जायेंगे लेकिन जो नाम के भरोसे हैं,जिन्होंने सतगुरु से नाम की अमर जड़ी प्राप्त कर ली है वो अमर हो जायेगे।

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