भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप तो काफी कम हो गया है परंतु कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई जनता के लिए कठिन बात है। लगभग हर परिवार ने अपने यारे-प्यारों को खोया है और आर्थिक चोट जो लगी है वह तो समाज भुगत ही रहा है, सरकार भी भुगत रही है। ऐसे में ये सभी राजनेता ब्यान तो देते रहते हैं लेकिन प्रश्न वही रहता है कि सभी ब्यान बहादुर लगते हैं काम बहादुर नहीं।

हमारे गृह और स्वास्थ्य मंत्री बार-बार एक बात कहते हैं कि कोरोना की तीसरी लहर आने वाली है और दूसरी को भी समाप्त न समझा जाए। सावधानियां बहुत जरूरी हैं, दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी।

उनके प्रयत्न दिखाई भी देते हैं, हर जिले के उपायुक्त या जिला मजिस्ट्रेट की तरफ से कोरोना की गाइडलाइन लगभग रोजाना जारी की जाती हैं और अधिकांश जनता अब इनका मन से भी पालन करने लगी है। विवाह समारोह में भीड़ घटने लगी है, स्कूल खुलने के पश्चात भी स्कूलों में पूरी हाजिरी नहीं हो पा रही है लेकिन राजनैतिक दलों में यह बात देखी नहीं जा रही।

सभी राजनैतिक दल कोविड के नियमों का सरेआम उल्लंघन करते नजर आ रहे हैं। न केवल उल्लंघन करते हैं, बल्कि उस उल्लंघन का प्रचार भी करते हैं अर्थात अखबारों में भी छपवाते हैं। इसमें न तो कांग्रेस पीछे हैं और न ही इनेलो। इनकी भी बड़ी-बड़ी मीटिंगें होती है और सत्तारूढ़ दल जजपा-भाजपा ने तो अति ही कर रखी है। उनकी सभाओं में दो गज दूरी तो क्या दो इंच दूरी का सिद्धांत भी नहीं अपनाया जाता और मास्क किसी-किसी के चेहरे पर दिखाई देता है। 

अब यदि गृह और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज से प्रश्न पूछा जाए कि वह कई बार ब्यान दे चुके हैं कि कानून सबके लिए बराबर है चाहे वह आम जनता है, राजनैतिक है या फिर मंत्री है। आम जनता के बहुत चालान किए गए। अब भी उनके मन में चालान का डर बैठा रहता है परंतु विज साहब क्या आप बता पाएंगे कि सरकारी रैलियों में जो आदमी पर आदमी चढ़ा रहता है, उनमें से किसी पर आपकी पुलिस ने चालान किया? यदि किया तो नाम बताइए। नहीं किया तो क्यों नहीं?

आम जनता नेताओं को रोल मॉडल समझती है, विशेषकर मंत्रियों को और सत्तारूढ़ पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं को तथा जैसा वह करते हैं, वैसा करने की उनके मन में भी चाहत उत्पन्न होती है और यदि समर्थ हों तो वैसा करने का प्रयास भी करते हैं तो ये बड़े नेता कोरोना की तीसरी लहर की जो बातें चल रही हैं, उन्हें मानते नहीं? क्या उनके लिए इसका खतरा नहीं? क्या इनके लिए उनका कानून नहीं?

अभी भाजपा की शहीद सम्मान तिरंगा यात्रा का कार्यक्रम चल रहा है और इसका आरंभ 1 तारीख को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और कृषि मंत्री जेपी दलाल ने किया था, जिसके समाचार सभी समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपे थे और सभी में जो तस्वीरें छपी थीं, उन तस्वीरों में अपार जनसमूह दिखाई दे रहा था तथा कार्यकर्ताओं की तो बात छोड़ो, नेताओं के साथ भी कोरोना के नियमों का कहीं पालन नहीं दिखाई दे रहा था। दो गज की दूरी तो क्या दो इंच की दूरी भी नहीं दिखाई दे रही थी।

अभी सत्ता में साझी जजपा की युवा विंग इनसो का कार्यक्रम हुआ था और वहां भी जनसमूह का हाल उस तिरंगा यात्रा की तरह कहीं कोई कोविड पे्राटोकॉल नजर नहीं आ रहा था। ऐसा ही कुछ कमोवेश सभी राजनैतिक कार्यक्रमों में देखा जाता है, विशेष रूप से सत्तापक्ष के।

बड़ा प्रश्न सरकार कोविड की तीसरी लहर के लिए क्यों चिंतित नहीं है, जो कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर रहे हैं और क्यों वह मंत्री जिसकी जिम्मेदारी है कोविड प्रोटोकॉल लागू कराने की, वह क्यों ब्यान बहादुर बने हुए हैं? काम बहादुर क्यों नहीं बनते?

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