समय में बदलाव सृष्टि का नियम है, लेकिन “परमात्मा का नाम ही स्थाई है”, भूलना नहीं चाहिए, चाहे समय कोई भी हो

—समय कोई भी हो परमात्मा को नहीं भूलना चाहिए
—-समय में बदलाव सृष्टि का नियम है, लेकिन “परमात्मा की भक्ति” करने वालो के लिए सुख – दुःख एक समान होते हैं।

दिनोद धाम जयवीर फोगाट

17 जून,परेशानी और दुख माना कि तकलीफ देते हैं लेकिन ये इंसान को चेतावनी भी देते हैं कि इस संसार में कोई भी यहां स्थाई नहीं है। समय में बदलाव सृष्टि का नियम है लेकिन अगर कुछ अविनाशी और स्थाई है तो वो है परमात्मा का नाम। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव से वर्चुअल तरीके से फ़रमाया।

 हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि आज दुख है तो कल सुख भी आएगा। जिसने सुख और दुख को जान लिया वह इस बात को समझ लेता है कि समभाव में जीना क्या है। कर्म का भोग इंसान को भोगना ही पड़ता है। सन्तो ने यही चेतावनी इंसान को बार बार दी है कि तेरे जीवन की नैया भवसागर में घिरी हुई है अगर इसको पार करना चाहता है तो प्रभु के नाम की पतवार बना लो। गुरु महाराज जी ने कहा कि दुनिया तो दुख और सुख को समझती ही नहीं है। सन्तो की शरण में हम जाते है इसी सुख दुःख और जीवन मरण से उपरामता पाने के लिए लेकिन उनके चरणों में जाकर भी हम संसार की वस्तुओं में ही उलझे रहते हैं।

 उन्होंने कहा कि बड़े बड़े यौद्धा बड़े बड़े धनवान भी जब स्थाई नहीं रहे तो हमारी क्या बिसात। नाम को सैदेव अपने दिल में रखो। ध्रुव भगत ने नाम को हॄदय में रखा था। ध्रुव के पिता ने दो शादियां की थी। एक बार ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठा था तो उसकी सौतेली माता ने आकर उसे उतारते हुए कहा कि अगर राजा की गोद मे बैठना है तो मेरी कोख से जन्म लेना था। ये बात ध्रुव को चुभ गई। उसने अपनी मां से जाकर पूछा कि ऐसा क्यों हुआ। आप भी तो रानी हैं। उसकी मां ने बात टालने के लिए कह दिया कि बेटा मैंने पिछले जन्म में परमात्मा की भक्ति नहीं कि ये उसी की सजा मुझे और तुझे मिल रही है। माँ का यह एक वाक्य ध्रुव के मन में उतर गया कि परमात्मा की भक्ति ना करने से इतने कष्ट उठाने पड़ते हैं। बस इसी ज्ञान को पकड़ कर ध्रुव ने वो भक्ति की कि आज भी ध्रुव का नाम इस जगत में अमर है।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि इंसान का शरीर इस ब्रह्मांड का ही नमूना है। जैसे मोतियाबिंद होने से हमें कुछ दिखाई नहीं देता बैसे ही इस संसार को मोतियाबिंद हो गया है जो वह अपने ही अंदर बैठे परमात्मा को नहीं देख पा रहा। इंसानी यौनि की महता बताते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि सब कुछ पा कर भी यदि हम परमात्मा को भुलाते हैं तो लानत है हमें। अगर जिंदगी को हम पहले ही भांप ले कि अगर हम पैदा होए हैं तो एक दिन मरेंगे भी तो हम वास्तविकता से जुड़े रहेंगे। उन्होंने कहा कि इंसान को अनेको प्रकार के दुख हैं। ये दुख भी तभी होता है जब इस मुसाफिर खाने को हम अपना समझ बैठते हैं। हम तो इस जगत में पेड़ की डाल पर बैठे पक्षियों की भांति हैं जो एक एक कर के उड़ते रहते हैं। एक उड़ता है दूसरा पक्षी आकर बैठता है। अपने मन को बार बार होशियार रहने की चेतावनी देते रहो की काल चोर सिपाही के रूप में आएगा और तुझे सरे आम अपने साथ ले जाएगा।

 हुजूर ने कहा कि हमने मकड़ी की तरह इस जगत का जाल बुन लिया है जिसमे हम खुद ही एक दिन फंस जाएगे। इस बात पर विचार करो कि हम चोरो के साथ रहकर किस बात की साहूकारी करते हैं। उन्होंने कहा कि दुविधा को दूर करके नाम का सुमिरन करो क्योंकि नाम से ही सारे कार्य सिद्ध हैं। उन्होंने कहा कि गुरुओं का संग करके भी यदि आपने इधर उधर की बातों से निवृति नहीं है सत्संग क्या लाभ देगा। उन्होंने कहा कि हाथी के जैसा स्नान ना करो। जैसे हाथी नहा कर अपने शरीर पर मिट्टी डाल लेता है वैसे ही हम भी सत्संग में भक्ति रूपी स्नान करके पुनः संसार की विषय वासनाओं की मिट्टी अपने मन पर डाल लेते हैं।

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