भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। जिस प्रकार देश को मोदी संभाल रहे हैं, वैसे ही हरियाणा प्रदेश को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर संभाल रहे हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इस आपदाकाल में जब सबको मिलकर आपदा का सामना करना चाहिए, उस समय में मुख्यमंत्री केवल और केवल अपने हिसाब से आपदा से निपटने के प्रयास में लगे हैं। विपक्ष बार-बार सर्वदलीय बैठक की मांग कर रहा है लेकिन सर्वदलीय बैठक की तो बात छोड़ो मुख्यमंत्री ने अपने विधायकों की बैठक भी नहीं बुलाई और तो और यह भी जानकारी में नहीं आया कि उन्होंने कोरोना आपदा से निपटने के लिए अपने मंत्रीमंडल की बैठक भी बुलाई है। हां, अधिकारियों से निरंतर बैठक कर रहे हैं।

कोरोना से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ने ताबड़-तोड़ अस्थाई अस्पतालों का उद्घाटन किया। उसमें यह भी नहीं ध्यान रखा कि जिसका वह उद्घाटन कर रहे हैं वह  अस्पताल काम भी कर रहा है या नहीं। जिसका प्रमाण यह मिलता है कि गुरुग्राम में ताऊ देवीलाल स्टेडियम अस्पताल है, वह भी चालू नहीं है और कल ही उन्होंने पटौदी बोहड़ाकलां में एक अस्पताल का उद्घाटन किया। आज सायं 5 बजे तक तो उसमें भी कोई मरीज नहीं था। 

अब मुख्यमंत्री के उद्घाटन करने वाले कार्यक्रम में प्रोटोकॉल के अनुसार अनेक अधिकारियों और पार्टी पदाधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है और वह संख्या कोविड-19 के नियमों का कई गुणा अधिक उल्लंघन करती नजर आई। इस बात को विपक्ष और आम जनता ने भी बड़ी बारीकी से नोट किया। आम नागरिकों का कहना है कि हमारे लिए तो लॉकडाउन है, विवाह और दाह-संस्कार में भी संख्या तय की हुई है। अब यह मुख्यमंत्री का उद्घाटन क्या लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाएगा? लोगों का कहना है कि यह उद्घाटन क्या सबसे बड़ी खुशी और सबसे बड़े गम से भी ऊपर है? अरे सबकुछ ऑनलाइन चल रहा है और आप भी वर्चुअल मीटिंगें करते रहते हैं तो ये उद्घाटन भी वर्चुअल ही कर देते थे और फिर ये कौन-से स्थाई अस्पताल हैं? और क्या सरकार के पैसे से बने हैं? अपने रूतबे का असर दिखाने के लिए ही यह सब किया। यह हमारा नहीं जनता का कहना है।

इससे पूर्व किसान आंदोलन के कारण मुख्यमंत्री चर्चाओं में रहे हैं। अनेक लोगों का मत तो यह भी है कि यदि पंजाब से दिल्ली जा रहे किसानों को इस बेदर्दी से न रोका जाता तो न यह बात इतनी मीडिया में जाती और न ही किसान आंदोलन का प्रसार होता। मुख्यमंत्री का किसान आंदोलन के आरंभ में यही कहना रहा है कि किसान तो इन कानूनों के पक्ष में हैं, यह केवल विपक्ष द्वारा फैलाया हुआ जाल है लेकिन उसके पश्चात हरियाणा के किसान भी खूब नजर आने लगे। स्थिति यहां तक बिगड़ी कि लोगों ने खुलेआम कहना शुरू कर दिया कि हमारे गांव में भाजपा=जजपा नेताओं का प्रवेश निषेध है लेकिन हवा के माहौल को फिर भी न समझे और लगातार कहीं न कहीं अपने कार्यक्रम करते रहे। कार्यक्रमों में उनकी पसंद विशेष रूप से दक्षिणी हरियाणा रही, क्योंकि इस क्षेत्र में किसान आंदोलन का प्रभाव कम है।

विचारनीय है कि अपने क्षेत्र में भी पूरे पुलिस बल के साथ भी अपना कार्यक्रम नहीं कर पाए और अब रविवार को हिसार में जिंदल स्टील के बने अस्पताल को ताऊ देवीलाल का नाम रख उद्घाटन करने पहुंच गए। उससे कांग्रेसियों को भी बुरा लगा, इनेलो वालों को भी लगा और लगा तो जजपा वालों को भी होगा लेकिन वह सरकार में साथी हैं, इसलिए मुखर नहीं हुए लेकिन किसान वहां विरोध करने पहुंच गए और उन पर लाठीचार्ज हुआ, जिससे किसान आंदोलन को और बल मिल गया और सरकार बैकफुट पर चली गई।

इसी के परिणामस्वरूप सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने इन्हें हरियाणा की स्थिति पर चर्चा के लिए बुला लिया और बकौल मुख्यमंत्री के वहां कोविड के साथ-साथ किसान आंदोलन की भी चर्चा हुई व आगामी रणनीति के बारे में भी चर्चा हुई। अत: इन बातों से स्पष्ट अनुमान लगता है कि गृहमंत्री को इनकी कार्यशैली पसंद नहीं आई और उसमें कुछ सुधार के निर्देश अवश्य दिए होंगे, जिसका असर मीटिंग से आने के तुरंत बाद दिखाई भी दिया कि रात्रि में ही उन्होंने अपने अधिकारियों की आपातकाल बैठक बुलाई, जिसमें क्या निर्णय हुए यह अभी कोई प्रेस नोट सरकार की ओर से नहीं आया। अत: पत्रकार का काम तो अनुमान लगाना ही होता है तो अनुमान यह है कि आने वाले समय में मुख्यमंत्री की कार्यशैली में परिवर्तन नजर आएगा और शायद सार्वजनिक उद्घाटन आदि के कामों में भी कमी नजर आएगी।

गौरतलब है कि इनके इन उद्घाटन कार्यक्रमों की चहुंओर निंदा हो रही है और कई स्थानों से यह आवाज भी उठ रही है कि जब आम जनता पर कोविड नियम तोडऩे पर एफआइआर दर्ज की जाती है तो नियम तो मुख्यमंत्री पर भी लागू होते हैं। एफआइआर तो उन पर भी दर्ज होनी चाहिए।

इधर विपक्षी दल कांग्रेस ने हिसार में हुए लाठीचार्ज में जो महिलाओं को चोट लगी, उसे विशेष मुद्दा बनाया हुआ है। आज लगभग समस्त हरियाणा में कांग्रेस की ओर से ज्ञापन भी दिए गए हैं। उसमें मुख्य बात यह है कि यह वही मुख्यमंत्री हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के टै्रक्टर को सांकेतिक रूप से खींचते महिला विधायक के लिए विधानसभा में आंसू तक निकाल रहे थे और अब इनकी आंखों में आंसू क्यों नहीं आए? जब इन्हें नींद नहीं आई थी तो अब कैसे नींद आ गई?

यह तो तत्कालीन बातें हैं लेकिन इससे पूर्व जो विभिन्न कर्मचारी वर्ग सरकार के विरूद्ध आंदोलन कर रहे थे, उनका भी हल नहीं निकला है और अभी हाल में हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने बता दिया कि लॉकडाउन के समय में कितने लोगों को नौकरी से निकाला गया है।

वर्तमान महामारी पर आएं तो माना कि ऑक्सीजन की कमी काफी हद तक दूर हो गई है। बैड बेइंतहां लगवा दिए गए हैं लेकिन मरीज अस्पताल में बैड के लिए तो नहीं जाता, अस्पताल जाने का अर्थ यह होता है कि वह हर समय डॉक्टरों की देख-रेख में रहेगा लेकिन वर्तमान में यह कहने में संकोच नहीं कि शायद ही हरियाणा का कोई ऐसा अस्पताल होगा, जहां पर्याप्त संख्या में डॉक्टर हों।आज ही मुख्यमंत्री का ब्यान आया है कि निजी अस्पतालों और एंबुलेंस वालों की मनमानी नहीं चलेगी लेकिन वास्तविकता में उन्हीं की मनमानी चल रही है। सरकार रोकने में सक्षम नजर नहीं आ रही और इसके अतिरिक्त भी लॉकडाउन के कारण दवाइयों व अन्य दिनचर्या की वस्तुओं पर भी कालाबाजारी हो रही है, उस पर नहीं बोले खट्टर।

उपरोक्त स्थितियों को देखकर यही लग रहा है कि अपने पूर्व की कार्यशैली के कारण और वर्तमान परिस्थितियों के कारण खट्टर साहब को गृहमंत्री को भी जवाब देना पड़ रहा है। अत: कह सकते हैं कि परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फंसे हैं खट्टर। देखो निकल पाएंगे या…………….

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