क्या यही है जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए चुना गया लोकतंत्र…??

 – सरकार सिर्फ बहुमत से नहीं बल्कि इकबाल से चलती है।
– रामलीला मैदान पर, इंडिया गेट पर इकट्ठी होकर नारे लगाती थी तब एक भी आदमी को देशद्रोही नहीं कहा गया।
-मनमोहन सिंह कमजोर कहे गए लेकिन ‘सूचना का अधिकार’ सशक्त कानून दिया, जिन्होंने छाती का नाप बताया उनके राज में संशोधन से अब सूचना आयुक्तों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण हो गया।
– मनमोहन ने घोटाले के आरोपी मंत्रियों पर मुकदमा होने दिया, जाँच बिठाया, आरोपी मंत्री मजबूत प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद अदालत से बरी हो गए?

अशोक कुमार कौशिक 

“सोनिया जिसकी मम्मी है, वो सरकार निकम्मी है”  “मनमोहन सिंह एक काम करो, चूड़ी पहन कर डांस करो”

ये नारे याद हैं आपको?

क्या आज ऐसे नारे लग सकते हैं कि “मोदी जिसका बाऊ है, वो सरकार बिकाऊ है” ? 

यही दिल्ली थी। यही भारत था। जनता जंतर-मंतर पर, रामलीला मैदान पर, इंडिया गेट पर इकट्ठी होकर नारे लगाती थी। सोशल मीडिया पर क्या कुछ नहीं लिखा जा रहा था। 

निर्भया केस के बाद जनता राष्ट्रपति भवन तक चढ़ गई थी। हर पुलिस की तरह, तब भी दिल्ली पुलिस रोकने की कोशिश करती थी। लेकिन एक भी शख्स देशद्रोही घोषित नहीं किया गया। जनता को घेर कर मध्यकालीन किला नहीं बनाया गया। कील-कांटे नहीं बिछाए गए। सड़कें नहीं खोदी गईं। युवाओं को जेल में डालकर प्रताड़ित नहीं किया गया। हजारों लोगों को आतंकवादी नहीं बोला गया। 

जो लोग उस समय प्रचारित कर रहे थे कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री हैं, वे धूर्त लोग थे। मनमोहन सिंह एक साहसी नेता थे जिन्होंने अपनी अगुवाई में जनता को आरटीआई और लोकपाल जैसा कानून दिया। मनमोहन सिंह कमजोर कहे गए लेकिन उन्होने गठबंधन की सरकार चलाते हुए भी सरकार की जनता के प्रति जिम्मेदारी को पारदर्शी बनाने के लिए ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) जैसा सशक्त कानून दिया और प्रशासन को ज्यादा पारदर्शी बनाया।

 
मोदी मजबूत प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने खुद अपने छाती का नाप बताया। प्रचंड बहुमत के साथ अपने कार्यकाल में मजबूत मोदी  ने उस ‘सूचना के अधिकार’ के कानून में संशोधन के जरिए नियंत्रण कर लिया। कानून में संशोधन के बाद अब सूचना आयुक्तों पर केन्द्र सरकार का नियंत्रण हो गया। मौजूदा कथित 56 इंची सरकार ने इन दोनों कानूनों को बदल कर कमजोर किया। 

इसे दूसरे तरह से समझें तो कमजोर कहे जाने वाले मनमोहन ने अपने साहस का परिचय दिया। जनता के हित के कानून बनाए। घोटाले के आरोपी मंत्रियों पर मुकदमा होने दिया, जाँच बिठायी। ये और बात है कि लगभग सभी आरोपी मंत्री मजबूत प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद अदालत से बरी हो गए। मनमोहन के समय आखिरी 3-4 साल देशव्यापी आंदोलन हुए। महंगाई से लेकर किसान, रोजगार से नारी सुरक्षा और निर्भया से लेकर लोकपाल तक के लिए सरकार के खिलाफ आक्रोश, धरना, प्रदर्शन खुलकर हुए, खूब हुए। लेकिन तब आंदोलनकारियों को देशद्रोही नहीं कहा गया न उनपर देशद्रोह के मुकदमे हुए। तब प्रधानमंत्री को चुड़ियां भेजी गयी लेकिन तब शायद प्रधानमंत्री का पद और देश इतना मजबूत था कि उस समय ऐसे कृत्यों से न देश कमजोर होता था न ही उसकी प्रतिष्ठा को आंच आती थी।

लेकिन मोदी के रूप में मजबूत प्रधानमंत्री के आते ही देश शायद कमजोर हो गया। इतना कमजोर कि ट्वीटर पर कुछ लिख देने भर से, कुछ नारे लग जाने भर से देश की सुरक्षा को खतरा होने लगा। मोदी तो मजबूत रहे लेकिन प्रधानमंत्री का पद अचानक इतना संवेदनशील हो गया कि प्रधानमंत्री के विरुद्ध कुछ कह देने भर से देश का अपमान होने लगा। भारत की संप्रभुता और प्रतिष्ठा को खतरा होने लगा।

इसलिए अब सरकार के काम पर सवाल उठाने और नीतियों और कानून का विरोध करने वालों पर, धरना-प्रदर्शन करने वालों पर देशद्रोह और युएपीए की धाराओं के तहत मुकदमा होना जरूरी है।
क्योंकि सरकार सिर्फ बहुमत से नहीं बल्कि इकबाल से चलती है। और जब इकबाल खत्म हो जाए तो सरकार डर जाती है। और डरी हुई सरकार विरोध नहीं झेल सकती।

आज ट्वीट करने के लिए, जोक सुनाने के लिए, पोस्ट लिखने के लिए, स्टोरी लिखने के लिए युवाओं को पुलिस जेल में डाल रही है। क्या है टूलकिट? दरअसल टूलकिट एक ऐसा दस्तावेज होता है जिसमें किसी मुद्दे की जानकारी देने के लिए और उससे जुड़े कदम उठाने के लिए इसमें विस्तृत सुझाव दिए गए होते हैं। आमतौर पर किसी बड़े अभियान या आंदोलन के दौरान उसमें हिस्सा लेने वाले वॉलंटियर्स को इसमें दिशानिर्देश दिए जाते हैं।

और इस तरह के टूल किट का उपयोग बीजेपी तथा अन्य पार्टियां अपने आईटी सेल के द्वारा बखूबी कई सालों से कर रही है। तो इसका मतलब राजद्रोह का मामला तो बीजेपी पर भी बनना चाहिए । बीजेपी के बंदे विदेशों में बैठकर आईटी सेल चला रहे हैं। जिनको समय-समय पर दिशा-निर्देश भारत की बीजेपी आईटी सेल के द्वारा दिए जाते हैं।

मोदी सरकार जनता के विवेक का आंकलन क्या सोचकर कर रही है? लोकतंत्र में संविधान को ताक पर रखकर मोदी सरकार अपने हिसाब से नियम कानून बनाने लगी है। यह देश के लिए बहुत ही हानिकारक है । सारी जनता को एक होकर इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना चाहिए क्योंकि अब जनता को ना तो न्यायपालिका का आसरा है और ना ही संविधान के कानूनों का क्योंकि मोदी सरकार अपनी सुविधा के अनुसार संविधान के कानूनों को तोड़-मरोड़ कर इस्तेमाल कर लेती है जो बड़ा ही हास्यास्पद होने के साथ-साथ खतरनाक भी है।

लोकतंत्र किसी सत्तालोभी नेता की कृपा से नहीं मिलता। लोकतंत्र जनता का शासन है, सत्ता के हवसी नेता इस पर कब्जा चाहते हैं। आज लोगों से विरोध-प्रदर्शन का अधिकार छीना जा रहा है। मुझे लगता है कि जब तक आपको एहसास होगा कि आपने क्या खोया है, तब तक शायद देर हो चुकी होगी। जनता को इसे छीन कर लेना पड़ता है। हम क्यों मूकदर्शक बनकर लोकतंत्र की हत्या होते हुए देख रहे हैं?  क्या हम भी अपने नंबर का इंतजार कर रहे हैं?

क्या यही है जनता का ,जनता के द्वारा, जनता के लिए चुना गया लोकतंत्र…??

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