भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

पीपली कांड वाले दिन भाजपा और जजपा के अधिकांश नेता कह रहे थे कि यह गलत हुआ संयम से काम लेना चाहिए था, संवाद से हल निकाला जाना चाहिए था परंतु भाजपा अपनी शैली के अनुसार अगले दिन से ही आक्रामक होनी शुरू हुई और अपनी सारी शक्तियां एकत्र कर किसानों को अध्यादेश किसानों के हित में बताने के लिए निकल पड़ी।

आनन-फानन में लिए निर्णय अधिकांश गलत साबित होते हैं। कहीं भाजपा के साथ भी तो यही बनने वाला नहीं। भाजपा ने इस समस्याओं को सुलझाने के लिए किसानों से बात करने के लिए समिति बनाई, जिसमें तीन सांसद धर्मबीर, बिजेंद्र सिंह और नायब सैनी रख दिए और यह समिति बनाई भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने। जैसा कि सर्वविदित था कि यह समिति भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने बनाई है, भाजपा के सांसदों की बनी है तो इसका निर्णय भी भाजपा के अनुसार ही होगा और हुआ भी वही। समिति ने अति शीघ्र कुछ नेताओं से मिल अपनी रिपोर्ट तैयार कर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को सौंप दी और भाजपाई लग गए अध्यादेश के समर्थन में प्रचार करने में तथा विपक्ष को किसान आंदोलन का जिम्मेदार ठहराने में।

इस सारी प्रक्रिया में प्रदेश सरकार कहीं नजर नहीं आई। सीएम ने अब तक कोई शब्द इस बारे में बोला ही नहीं। हां, डिप्टी सीएम भौड़ाकलां गए थे अपने एक पूर्व विधायक गंगाराम के पौत्र के निधन पर। वहां पत्रकारों के सम्मुख जब बोलना पड़ा तो वह भी जो पहले दिन उनका भाई कह रहा था कि इसमें गलती है, सरकार की जांच होनी चाहिए, उसके विपरीत कहा कि यह विपक्षी दलों का बहकावा है।

अब हम क्या कहें। भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में भी चर्चाएं चल रही हैं कि प्रदेश सरकार कहां है? प्रदेश की कानून व्यवस्था का फैसला करना तो प्रदेश सरकार का काम होता है न कि संगठन का। यहां तो संगठन ही संगठन नजर आ रहा है, सरकार नहीं।

इधर दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इनेलो से अभय सिंह चौटाला तथा निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू बहुत तेजी से सभी किसानों से मिल रहे हैं और सरकार को कह रहे हैं कि किसानों पर लगाए हुए सभी मुकदमे वापिस लिए जाएं तथा साथ ही इन अध्यादेशों को भी वापिस लिया जाए या चौथा अध्यादेश लाकर एमएसपी आदि मांगों को इसमें जोड़ा जाए।

जो देखने में आ रहा है, वह यह कि विपक्ष वाले लोग तो दिल से एकजुट होकर कार्य करते नजर आ रहे हैं लेकिन भाजपा के नेता व कार्यकर्ता इसके समर्थन में बोलते समय भी विश्वास नहीं जुटा पा रहे और किसानों के बीच जाकर बोलने का साहस नहीं कर पा रहे, वे केवल अपनी पार्टी से संबंधित किसानों के बीच अपनी बात कह अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं।

भाजपा का पहले दिन कहने वाला वाक्य कि संवाद से हल निकलता है, जुमला साबित हुआ। संवाद में हरियाणा भवन में समिति के सदस्यों और किसानों में काफी कहासुनी हुई, जिसमें सांसद धर्मबीर कह भी गए कि विधेयक किसान के समर्थन में हैं, यह निरस्त नहीं होने वाला। अत: किसान वहां से भी रुष्ट ही हैं और रही संवाद की बात तो संवाद में तो भाजपा सरकार फंस जाती, क्योंकि एक किसान ही नहीं आशा वर्कर, पीटीआइ, ठेके के कर्मचारी, बिजली कर्मचारी, सफाई कर्मचारी, रोड़वेज कर्मचारी आदि… सभी लोग हैं संवाद को ही तो तरस रहे हैं। अगर संवाद करेंगे तो सबसे ही करना पड़ेगा और वह मुमकिन दिखाई देता नहीं।

राजनीति के चर्चाकारों के अनुसार भाजपा कभी भी जनहित के मुद्दों पर, समाज के मुद्दों पर या अपनी नीतियां पर चर्चा करने से बचती रहती है और भाजपा की रणनीति में ऐसा है कि कोई नया मुद्दा अलग खड़ा करके लोगों के दिमाग को दूसरी ओर परिवर्तित कर दिया जाए, जिससे वह अपना काम अपनी मर्जी से करते रहें और अब तक उन्हें इस नीति में सफलता भी मिलती रही है।

वर्तमान में मुद्दा किसान को समझाने का है, किसानों के बीच जाना होगा और किसान प्रदेश की जनता में आता है, उसके जीवन-मरण का सवाल है। वह अब इनके भावनात्मक जाल में फंसने वाला नजर नहीं आ रहा और किसान के साथ व्यापारी तो मिले ही हुए हैं तथा चर्चाकारों का कहना है कि इनती कर्मचारी यूनियनों से भी बातें चल रही हैं।

कर्मचारी यूनियन भी इनके साथ खड़ी होंगी और वैसे भी 70 प्रतिशत से भी अधिक किसान हरियाणा में हैं तो शेष 30 प्रतिशत से उनका कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में संबंध तो है ही और ऐसी अवस्था में प्रदेश की जनता से निपटना भाजपा के वश की बात नजर आ नहीं रही, क्योंकि अब लगभग सारी जनता विरोध में खड़ी होगी तो भाजपा के अब तक के कार्यकाल और नीतियों पर चर्चाएं तो चलेंगी ही तथा उन चर्चाओं में इस समय महत्व उन फैसलों का होगा, जिनसे जनता ग्रसित है न कि उनका जो जनता के हित में है। अत: यह कहना अनुचित न होगा कि किसान अध्यादेश पर भाजपा की आक्रमकता भाजपा पर ही भारी पडऩे वाली है।