प्रदेश अध्यक्ष भाजपा बनाएगी या मुख्यमंत्री मनोहर लाल. क्या प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव तय करेगा मुख्यमंत्री का कद? भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक हरियाणा इस समय बड़ी ही कश-म-कश की स्थिति से गुजर रहा है। सबसे अधिक तो कोरोना ने कहर बरपा रखा है। जनता समझ नहीं पा रही कि कोरोना से बचें या अपनी रोजी-रोटी बचाएं। इसी दौर में भाजपा संगठन चुनाव पूर्ण करने की तैयारी में है। एक तो हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है, दूसरा मोदी के कार्यकाल का एक वर्ष पूर्ण हो गया है तो उसका जश्न भी मनाना है। दुविधा ही दुविधा हैं। सर्वप्रथम बात करते हैं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की। भाजपा के वचनों के हिसाब से कहा जाए तो चुनाव चार माह पहले ही पूर्ण हो जाना चाहिए था परंतु माना यह जा रहा है कि भाजपा में जबरदस्त कश-म-कश चल रही है प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए। कहने को तो प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है परंतु वास्तव में राजनीति के जानकार, जनता और भाजपा भी जानते हैं कि होना तो मनोनयन ही है। अर्थात हाइकमान जिसे उपयुक्त समझेगा उसके अध्यक्ष पद देगा और अध्यक्ष बनने के पश्चात वह अपनी टीम बनाएगा, जिला अध्यक्ष बनाएगा। इस प्रकार चुनाव की प्रक्रिया संपूर्ण हो जाएगी। न जानें क्यों इतने समय से लटके हुए चुनाव को अभी शीघ्र ही संपूर्ण करने की इच्छा भाजपा में क्या जागृत हुई, जबकि प्रदेश वैश्विक महामारी से गुजर रहा है। पूरे प्रदेश में बीमारी का आपातकाल भी लगा हुआ है। ऐसे में चुनाव कुछ गंभीर ही संकेत दे रहा है। अनुमान लगाते हैं कि वे गंभीर संकेत क्या होंगे। 2014 में जबसे प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल बने हैं, उनकी ही चलती रही है और वह अपनी इच्छा से सभी कार्य करते रहे हैं। वर्तमान कार्यकाल में वह अपनी मर्जी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने में सफल हो नहीं पा रहे हैं। प्रयास उनकी ओर से जारी हैं। इसके पीछे भाजपा के सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि भाजपा हाइकमान हर समय हर प्रदेश का सर्वे करवाती रहती है और इस समय सर्वे में मुख्यमंत्री जनता की पसंद में बहुत पिछड़ते जा रहे हैं। इसी को देखते हुए यह माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री की पसंद का न होकर ऐसा होगा जो वर्तमान में भाजपा के बिखरे हुए संगठन को संभाल पाए। कौन हो सकता है प्रदेश अध्यक्ष: जैसा कि पहले भी कहा कि मुख्यमंत्री अपनी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। प्रथम तो वह सुभाष बराला का ही कार्यकाल आगे बढ़ाना चाह रहे हैं। उसके पश्चात नायब सैनी, संजय भाटिया आदि के नाम भी प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। उनके पश्चात कमल गुप्ता का नाम भी काफ सुर्खियों में रहा लेकिन वर्तमान समय के अनुसार इनका नाम कहीं पिछड़ता जा रहा है। इस समय जो सूत्र बता रहे हैं कि ऐसा प्रदेश अध्यक्ष चाहते हैं जो अनुभवी हो, स्वच्छ छवि का हो, मिलनसार हो, जो बिखरे हुए संगठन को भी संभाल पाए और जैसा कि राजनीति में होता है कि जातीय समीकरण पर भी नजर रहे। इस श्रेणी में नजर डालें तो रामबिलास शर्मा जो तीन बार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और जब 2014 में खट्टर की ताजपोशी हुई थी, उस समय वही प्रदेश अध्यक्ष थे। दूसरी ओर कृष्णपाल गुर्जर भी दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं। उनका नाम भी लिया जा सकता है। जो तीसरा नाम आजकल सबसे अधिक चर्चा में हैं वह कैप्टन अभिमन्यु का है। कैप्टन अभिमन्यु भी पुराने संघ से जुड़े हुए हैं। भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता रहे हैं। हालांकि वर्तमान चुनाव वह हार गए। वर्तमान चुनाव तो रामबिलास शर्मा भी हार गए थे या यूं कहें कि अनेक मंत्री भी हार गए थे। इन तीनों में से एक चुनना हो तो वर्तमान में कैप्टन अभिमन्यु का नाम लिया जा रहा है। उसके पीछे कारण यह बताए जा रहे हैं कि कैप्टन अभिमन्यु का अच्छा चरित्र है, मिलनसार हैं और जाट जाती से संबंध रखते हैं। माना जाता है कि हरियाणा में अब जाट समुदाय को साथ लेकर ही सत्ता में आया जा सकता है। अत: कैप्टन अभिमन्यु पर निगाह टिकी हुई हैं। पिछले कुछ समय से कैप्टन अभिमन्यु ने जाट समुदाय में चुनाव हारने के बाद भी अपना वर्चस्व बनाया है। उसे देखते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दुष्यंत चौटाला, अभय चौटाला से बड़ा कद कैप्टन अभिमन्यु कर पाएंगे, ऐसा विश्वास भाजपा हाइकमान को है। इससे पूर्व वह चौ. बीरेंद्र सिंह पर भी विश्वास कर भाजपा में लाए थे, किंतु भाजपा को मनवांछित फल नहीं मिले। इधर सुना जा रहा है कि कैप्टन अभिमन्यु अपने सरल, मधुर स्वभाव से वयोवृद्ध वरिष्ठ नेता रामबिलास शर्मा को अपने साथ लेकर प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ा पाएंगे। अत: इस बात के पूरे-पूरे आसार है कि शीघ्र ही हमें कैप्टन अभिमन्यु के प्रदेश अध्यक्ष पद पर विराजित होने के समाचार मिलेंगे। मुख्यमंत्री पर प्रभाव : यदि सूत्रों से प्राप्त उपरोक्त बातें सत्य निकलती हैं तो यह तय है कि मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा, क्योंकि मुख्यमंत्री जबसे बने हैं अपनी मर्जी की ही चला रहे हैं। पिछले कार्यकाल में अधिकांश मंत्रियों के हारने के मंथन में जो कारण ज्ञात हुए वे यही हुए कि मुख्यमंत्री हर मंत्री के कार्य में दखल देते रहते हैं, जिससे उन मंत्रियों की छवि उनके क्षेत्र में दबंग मंत्री की न रहकर दब्बू की बन गई और हमारे समाज में ऐसा देखा गया है कि जब चुनाव होता है तो जनता दबंग को ही जिताना चाहती है, ताकि वह उनके लिए लड़ सके। यह अलग बात है कि जीतने के बाद अधिकांश जनता से अधिक पार्टी का विश्वास जीतने में लग जाते हैं। तो यह तो तय है कि कैप्टन अभिमन्यु स्वाभिमानी, न्यायप्रिय, अनुभवी, समर्थ, मृदुभाषी नेता हैं। वह मुख्यमंत्री की अनुचित बातें मानने वाले नहीं हैं और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के जो कार्य और अधिकार हैं, उन्हें भली भांति निभाएंगे। अब यह समय बताएगा कि उस समय मुख्यमंत्री की स्थिति क्या रहेगी। कुछ पार्टी के जानकार और राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि संभव है वर्तमान स्थितियों में मुख्यमंत्री के लिए जो उनके पुराने अति महत्वपूर्ण संघ कार्य हैं, उनकी पूर्ति के लिए भी उन्हें भेजा जा सकता है। 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