-कमलेश भारतीय

कोरोना का संकट आए या पुलवामा का आतंकी हमला। या मुम्बई में ताज पर हमला । गोरखपुर में बच्चों का मरते जाना । हर बार हर समय की सरकार एक ही बात कहती है कि राजनीति मत करो । इस पर या उस पर राजनीति न करो । यह समय के अनुकूल नहीं । यह देशभक्ति के विरूद्ध है । यानी जो भी दल सत्ता में होता है उसी को राजनीति करने का अधिकार होता है । वही देशभक्त भी होता है । जो विरोधी होते हैं उन्हें कुछ कहने का अधिकार नहीं होता या रह जाता ।

मुम्बई के ताज होटल प्रकरण के बाद मीडिया ने भी लक्ष्मण रेखा लांघी थी । गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मृत्यु पर विपक्ष को अस्पताल में पहुंचने नहीं दिया गया और यदि राहुल गांधी जाने लगे तो यह कहा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कि इसे पिकनिक स्पाॅट न बनाइए । इसी प्रकार मेरठ जाते समय भी राहुल और प्रियंका गांधी को पुलिस दल ने रोका । अब इसी बात को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी महसूस कर रहे हैं । राजनीति न होकर भी राजनीति हो रही है ।

प्रियंका गांधी ने ऑफर दी कि प्रवासी मजदूरों को यूपी पहुंचाने के लिए कांग्रेस एक हजार बसें दे सकती है और यदि हमारे कांग्रेस के झंडे सही न लगें तो चाहे भाजपा के झंडे लगा लें । पर हमे मदद करने से न रोकें । हुआ यह कि इनसे एक हजार बसों का रिकाॅर्ड मांगा और पूरा ब्यौरा न मिलने पर प्रियंका गांधी के निजी सचिव और यूपी के एक कांग्रेस नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन्हें जेल के पीछे पहुंचा दिया गया यानी राजनीति करने लायक ही नहीं छोड़ा । यह नयी राजनीति के नये दांव हैं । राजीव गांधी की पुण्य तिथि पर किसी ट्वीट को लैकर सोनिया गांधी पर केस दर्ज करवा दिया गया ।

यह नया ढंग है राजनीति का । हर कदम पर केस । हर कदम पर प्रताड़ना । हर रोज़ नया तरीका । राजनीति न कीजिए । कितनी बार समझाते रहे । यदि रणदीप सुरजेवाला कैथल सेनेटाइज करवाने गये तो उन पर भीड़ जुटाने का आरोप लगा। पहले तो यह सवाल कि पंचकूला से कैथल आए कैसे ? फिर सेनेटाइज करवाते फोटो करवाने के लिए भीड़ क्यों जुटाई ? बिना फोटो के भी तो सेनेटाइज करवा सकते थे ? बिना फोटो के भी तो नेता चंदा दे सकते हैं पर भागे भागे चंडीगढ़ क्यों जाते हैं फोटो करवाने ? वहां कोई सवाल नहीं । अपने क्षेत्र को किसके भरोसे छोड़ कर जाते हो फोटो करवाने? राजनीति नहीं समाजसेवा कीजिए न ।

देशभक्ति कीजिए न । पर नहीं फिर पता कैसे चलेगा ? राहुल प्रवासी मजदूरों से बतियाते हैं तो नाटक । आप बतियाते हैं तो दुख दर्द बांटते हैं । यह नाटक और सच का दर्द कैसे होता है ? बहुत कुछ है जिस पर राजनीति नहीं करना चाहिए । मैं भी नहीं करूंगा । आपकी कसम ।

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