चण्डीगढ़,28 मार्च – हरियाणा विधानसभा में बजट सत्र के अंतिम दिन छः विधेयक पारित किए गए। इनमें हरियाणा विनियोग (संख्या 2) विधेयक, 2025, हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) निरसन विधेयक, 2025, हरियाणा बागवानी पौधशाला विधेयक,2025, अपर्णा संस्था (प्रबंधन तथा नियंत्रण ग्रहण) विधेयक, 2025, हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) संशोधन विधेयक,2025 तथा हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को सुविधाएं) संशोधन विधेयक,2025 शामिल हैं।
हरियाणा विनियोग (संख्या 2) विधेयक, 2025
मार्च, 2026 के 31वें दिन को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान सेवाओं के लिए हरियाणा राज्य की संचित निधि में से कुल 258339,98,37,030 रुपये के भुगतान और विनियोग का प्राधिकार देने लिए हरियाणा विनियोग(संख्या 2) विधेयक, 2025 पारित किया गया है।
हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) निरसन विधेयक, 2025
हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम, 1948 को निरस्त करने के लिए हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) निरसन विधेयक, 2025 पारित किया गया है।
भारत से पाकिस्तान में कुछ बंदियों के अन्तरण तथा पाकिस्तान से कुछ बंदियों को भारत में प्राप्ति के लिए बन्दियों के आदान-प्रदान हेतु पाकिस्तान के साथ करारनामें के अनुसरण में पूर्वी पंजाब (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम, 1948 (1948 का पंजाब अधिनियम संख्या 13) अधिनियमित किया गया था। भारत तथा पाकिस्तान के विभाजन के लगभग दो वर्ष बाद तथा पूर्वी पंजाब (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम, 1948 (1948 का पंजाब अधिनियम संख्या 13) पारित करने के बाद अधिकांश बन्दी स्थानांतरित हो गए थे। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 द्वारा हरियाणा राज्य के सृजन के कारण पूर्वी पंजाब (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम, 1948 हरियाणा राज्य में लागू किया गया था। इस अधिनियम के शीर्षक में वर्णित ‘‘पूर्वी पंजाब’’ को सरकार की 7 जुलाई, 2021 की अधिसूचना के अनुसार ‘‘हरियाणा’’ किया गया है। भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य में बन्दियों के स्थानान्तरण के लिए प्रासंगिकता मुहैया कराने के प्रयोजन के लिए बंदी अन्तरण अधिनियम, 1950 (1950 का 29) अधिनियमित किया गया था तथा हरियाणा राज्य में हरियाणा कारागार नियम, 2022 भी बनाए गए है। अब, हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम, 1948 निरर्थक हो गया है। हरियाणा राज्य विधि आयोग ने 25.01.2023 को सिफारिश की कि इस अधिनियम यानि हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम, 1948 (1948 का पंजाब अधिनियम संख्या 13) को निरस्त किया जाए। इसलिए, हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) निरसन विधेयक, 2025, के द्वारा हरियाणा (बंदी आदान-प्रदान) अधिनियम 1948 (1948 का पंजाब अधिनियम संख्या 13) निरस्त करना इसके द्वारा प्रस्तावित किया जाता है।
हरियाणा बागवानी पौधशाला विधेयक,2025
हरियाणा राज्य में बागवानी पौधशालाओं के पंजीकरण और विनियमन तथा इससे सम्बन्धित और इससे आनुषंगिक मामलों के लिए उपबन्ध करने हेतु हरियाणा बागवानी पौधशाला विधेयक, 2025 पारित किया गया है।
हरियाणा में बागवानी क्षेत्र कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फल पौधशालाओं के लिए एक नियामक ढांचा हरियाणा फल पौधशाला अधिनियम 1961 के रूप में उपलब्ध है। हालांकि, फलपौधशालाओं के अलावा अन्य बागवानी पौधशालाओं के लिए सुव्यवस्थित नियामक ढांचे के अभाव के कारण, निम्न गुणवत्ता एवं रोग ग्रस्त पौध सामग्री का विक्रय किया जा रहा है, जिससे फसल उत्पादकता में कमी एवं किसानों और ग्राहकों को आर्थिक हानि हो रही है।
हरियाणा फल पौधशाला अधिनियम, 1961 की सीमित प्रयोज्यता है, क्योंकि इसमें सब्जियों, मसालों, रुचिकर-सामग्री, फूलों, सजावटी, औषधीय और सुगंधमयी फसलों से संबंधित बागवानी पौधशालाओं के लिए गुणवत्ता नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कमी के कारण, बिना किसी उत्तरदायित्व के अनधिकृत पौधशालाएं संचालित हो रही हैं, जिससे अज्ञात वंशावली की पौध सामग्री का प्रसार एवं बागवानी फसल में कीटों तथा रोगों की वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिक पौधशाला प्रबंधन, गुणवत्ता सुनिश्चितता एवं विनियमन की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है, ताकि किसानों को केवल प्रमाणित एवं उच्च गुणवत्ता वाली पौध सामग्री ही उपलब्ध हो।
अतः हरियाणा सरकार को यह उपयुक्त प्रतीत होता है कि वर्तमान हरियाणा फल पौधशाला अधिनियम, 1961 को निरस्त कर, राज्य में बागवानी पौधशालाओं के विनियमन हेतु एक व्यापक कानून लाया जाए। ‘‘हरियाणा बागवानी पौधशाला विधेयक 2025‘‘ निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए लाया जा रहा है। इसमें हरियाणा राज्य में बागवानी पौधशालाओं के पंजीकरण एवं विनियमन हेतु प्रावधान करना, बागवानी पौधशाला का स्वामी अधिनियम एवं इसके अधीन बनाए गए नियमों में निर्धारित मानकों के अनुसार पौधशाला का पंजीकरण कराए। स्वामी को किसी भी श्रेणी के फलों, सब्जियों, मसालों, रुचिकर-सामग्री (कोंडिमेन्ट्स), फूलों, सजावटी औषधीय और सुगंधमयी फसलों के लिए बागवानी पौधशाला का पंजीकरण कराने की अनुमति होगी, अपनी पसंद के अनुसार बागवानी पौधों की उपकिस्में एवं किस्में बेचने की अनुमति होगी, जबकि फल पौधों कीउपकिस्में अनुज्ञप्ति में निर्दिष्ट की जाएंगी, वह एक से अधिक बागवानी पौधशालाएं रख सकता है, बशर्ते वह अलग-अलग अनुज्ञप्ति प्राप्त करे, सक्षम प्राधिकारी को अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर प्रदान या नवीनीकृत किसी भी अनुज्ञप्ति को निलंबित या रद्द करने का अधिकार प्रदान करना। बागवानी पौधशाला के स्वामी को निर्धारित प्रारूप एवं तरीके से अभिलेखों के रखरखाव हेतु बाध्य करना, अज्ञात वंशावली या कीट एवं रोगग्रस्त बागवानी पौधे एवं पौध सामग्री के विक्रय एवं वितरण को विनियमित एवं प्रतिबंधित करना तथा इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों का उल्लंघन करने वालों के विरूद्ध दंड का प्रावधान करना है।
अपर्णा संस्था (प्रबंधन तथा नियंत्रण ग्रहण) विधेयक, 2025
हरियाणा राज्य की क्षेत्रीय अधिकारिता में पड़ने वाली, गांव सिलोखरा, जिला गुरुग्राम की राजस्व सम्पदा में स्थित अपर्णा संस्था का लोकहित में उचित तथा कुशल प्रबंधन और नियंत्रण सीमित अवधि के लिए ग्रहण करने हेतु और उससे संबंधित तथा इसके आनुषंगिक मामलों के लिए अपर्णा संस्था (प्रबंधन तथा नियंत्रण ग्रहण) विधेयक, 2025 पारित किया गया है।
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, एक प्रसिद्ध योग गुरु का मानना था कि योग सभी समस्याओं और उन बीमारियों का एकमात्र समाधान है, जो एलोपैथिक/अन्य प्रकार के उपचारों से ठीक नहीं हो सकती है। उन्होंने शारीरिक प्रदर्शनों एवं इसके लाभों के बारे में व्याख्यान के माध्यम से योग को लोकप्रिय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनके प्रयासों से लोगों को कुछ लाभ तो हुआ, लेकिन ऐसे लाभों के आयाम सीमित थे। कुछ समय बाद अपने प्रयासों की समीक्षा करने पर उन्होंने महसूस किया कि राष्ट्र की स्वास्थ्य समस्या को व्यक्तिगत प्रयासों से प्रभावी ढंग से ठीक नहीं किया जा सकता है और मानवता को बड़े पैमाने पर लाभ सुनिश्चित करने के लिए संस्थान के माध्यम से योग को और अधिक लोकप्रिय बनाने की बहुत आवश्यकता है ताकि लोग योग के अभ्यास का सहारा लेकर अपने स्वास्थ्य और शक्ति को पुनः प्राप्त कर सके।
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने शिक्षा, अनुसंधान, प्रशिक्षण और प्रसार के माध्यम से लोगों के बीच योग के उपयोगी ज्ञान के प्रसार के लिए सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम,1860 के अधीन अपर्णा आश्रम (पंजीकरण संख्या एस-5766, 1973-74) के नाम और शैली से एक सोसाइटी, जिसका पंजीकृत कार्यालय ए-50, फ्रेंड्स कॉलोनी, मथुरा रोड, नई दिल्ली में है, को रजिस्ट्रार सोसायटी दक्षिण पूर्व जिला, नई दिल्ली के पास निगमित और पंजीकृत कराया।
उक्त सोसाइटी को निगमित करने के अलावा, स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने संस्था के ज्ञापन के माध्यम से एक अलग इकाई के रूप में अपर्णा नामक एक संस्था भी बनाई और उक्त संस्था के लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए स्वयं सहित चार सदस्यों वाली इसकी स्वतंत्र शासकीय परिषद का गठन किया और संस्था का नियंत्रण और प्रबंधन उसे सौंपा। एमओआई के अंतर्गत उल्लिखित लक्ष्य संस्था को योग आश्रम, अतिथि गृह, कृषि और डेयरी फार्मिंग, बागवानी, वृक्षारोपण स्वास्थ्य रिसॉर्ट और तैराकी स्थलों की स्थापना के लिए किसी भी चल या अचल संपत्ति को प्राप्त करने, खरीदने या स्वामित्व करने का अधिकार देते है। उक्त सोसाइटी आम जनता के लाभ के लिए बनाई गई थी, इसलिए उक्त सोसाइटी सार्वजनिक ट्रस्ट की परिभाषा के अधीन आती है।
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उक्त संस्था को योग के अनुसंधान, विकास और प्रशिक्षण केंद्र, विभिन्न रोगियों के चिकित्सा केंद्र और दुनिया के विभिन्न योग विद्वानों के लिए एक सम्मेलन केंद्र के रूप में विकसित करना चाहते थे। वर्तमान मशीनी दुनिया में योग के ज्ञान को फैलाने की आवश्यकता बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि लोगों में शारीरिक और मानसिक बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप निराशा, हताशा और मानसिक चिंताएं बढ़ रही हैं।
चूंकि, प्रस्तावित संस्था की स्थापना, विकास और स्थापना के लिए स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने केंद्र सरकार से समय-समय पर प्राप्त दान, अनुदान और वित्तीय सहायता की मदद से अपर्णा आश्रम के नाम पर, गाँव सिलोखरा, तहसील वजीराबाद जिला गुरुग्राम की राजस्व संपदा के अंदर स्थित 24 एकड़ 16 मरला भूमि खरीदी और उक्त भूमि संस्था में निहित कर दी। तत्पश्चात्, करोड़ों रुपये खर्च करके उक्त भूमि पर विभिन्न भवनों का निर्माण किया गया तथा उसमें योग से संबंधित विभिन्न गतिविधियां शुरू की गई। यह संस्था गुरुग्राम के सेक्टर-30 के निकट स्थित है।
वर्ष 1989 में, हरियाणा सरकार ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 4 के अधीन 30.01.1989 को अधिसूचना प्रकाशित की थी, जिसमें अधिसूचित किया गया था कि उसमें वर्णित भूमि गांव सिलोखरा और सुखराली, तहसील और जिला गुरुग्राम सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आवश्यक है, जिसमें संस्था की उपरोक्त भूमि और भवन भी शामिल हैं। उक्त अधिसूचना के प्रकाशन के बाद, सोसाइटी की आम सभा और/या शासकीय परिषद को संस्था की उक्त भूमि और भवन को एक स्वतंत्र एजेंट के रूप में व्यवहार करने और उसके संबंध में किसी भी प्रकार का भार बनाने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 5 क के अधीन 07.03.1989 को भूमि अधिग्रहण कलेक्टर के समक्ष उक्त भूमि और संस्था के भवन को उसमें वर्णित आधारों पर अधिग्रहण से मुक्त करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी। उक्त आपत्तियों को खारिज कर दिया गया और धारा 6 के अन्तर्गत 25.01.1990 को घोषणा जारी की गई थी। इससे व्यथित होकर स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष सी.डब्लू.पी, संख्या 3117/1990 दायर की, जिसमें उक्त अधिसूचनाओं को रद्द करने के लिए प्रमाण-पत्र जारी करने की प्रार्थना की गई। उक्त रिट याचिका के कथनों के अवलोकन से स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के जीवन के मिशन और उन लक्ष्यों और उद्देश्यों का पता चलता है, जिनके साथ उन्होंने उक्त सोसाइटी को निगमित किया तथा पंजीकृत कराया।
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की 09.06.1994 को विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनके निधन के बाद सोसायटी दो समूहों में विभाजित हो गई, एक का नेतृत्व लक्ष्मण चौधरी तथा दूसरे का नेतृत्व मुरली चौधरी कर रहे थे। बाद में मुरली चौधरी ने अपने समूह के सुभाष दत्त और के.एस. पठानिया को सोसाइटी की प्राथमिक सदस्यता से हटा दिया तथा उक्त व्यक्तियों ने अपना अलग समूह बना लिया। समय-समय पर इन समूहों ने अपना बहुमत बढ़ाने के लिए अपने विष्वासपात्र व्यक्तियों को भर्ती किया।
पिछले कई वर्षों से सोसाइटी और इसके सदस्यों के बीच आपसी विवाद चल रहा है और पिछले दो दशकों से अधिक समय से ये समूह एक-दूसरे के साथ मुकदमेबाजी कर रहे हैं। ये रामूह अपने निजी लाभ के लिए संस्था के लक्ष्यों और उद्देश्यों के विरुद्ध उक्त भूमि और भवन को अवैध और अनाधिकृत रूप से बेचने का प्रयास कर रहे हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि संस्था की चल और अचल संपत्ति नष्ट हो सकती है, जिससे संस्था का मूल उद्देश्य, जिसके साथ संस्था बनाई गई थी, ही विफल हो जाएगा। इसलिए संस्था के प्रबंधन, प्रशासन, नियंत्रण और गतिविधियों को विनियमित करने के लिए, संस्था के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने और एक योग गुरु की इच्छा को पूरा करने के लिए इसका प्रबंधन और नियंत्रण ग्रहण करना जनहित में समीचीन है। उक्त संस्था के प्रबंधन के ग्रहण में किसी भी प्रकार का विलंब उक्त संस्था को हितों, लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ-साथ आग जनता के लिए भी अत्यधिक हानिकारक होगा। इस प्रयोजन के लिए उक्त संस्था का प्रबंधन और नियंत्रण ग्रहण करने का उपबंध किया गया है।
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) संशोधन विधेयक,2025
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) अधिनियम, 1986 को संशोधित करने के लिए हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) संशोधन विधेयक,2025 पारित किया गया।
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) अधिनियम, 1986 की धारा 3 के तहत, हरियाणा विधान सभा का प्रत्येक सदस्य अपने लिए तथा अपने परिवार के सदस्यों के लिए उचित चिकित्सा सुविधाओं का हकदार है। वर्तमान में, हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) अधिनियम, 1986 में पारिवारिक पेंशन के प्राप्तकर्ता को ऐसी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है। हाल के दिनों में, पारिवारिक पेंशन के प्राप्तकर्ता के विभिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अध्यक्ष से संपर्क किया है तथा कहा कि:- पति/पत्नी की मृत्यु के पश्चात हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) अधिनियम, 1986 के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार उनकी चिकित्सा सुविधाएं बंद हो गई हैं। बढ़ती उम्र के साथ, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक हो जाती हैं, साथ ही पारिवारिक जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। आयु तथा संबंधित पारिवारिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक पेंशन के प्राप्तकर्ताओं को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रावधान करना आवश्यक है।
विधेयक में हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को चिकित्सा सुविधाएं) अधिनियम, 1986 की धारा 3 को प्रतिस्थापित करने का प्रावधान किया गया है, ताकि पारिवारिक पेंशन प्राप्तकर्ताओं को ऐसी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जा सकें।
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को सुविधाएं) संशोधन विधेयक,2025
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को सुविधाएं) अधिनियम, 1979 के संशोधित करने के लिए हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को सुविधाएं) संशोधन विधेयक,2025 पारित किया गया है।
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को सुविधाएं) अधिनियम, 1979 की धारा 3 के तहत, हरियाणा विधान सभा का प्रत्येक सदस्य 80 लाख रुपये तक के गृह निर्माण और मोटरकार प्रतिदेय अग्रिम का हकदार है, जिसे हरियाणा विधान सभा सचिवालय सदस्य को संवितरित कर सकता है। हाल के दिनों में, विभिन्न सदस्यों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अध्यक्ष से संपर्क कर कहा कि मौजूदा महंगाई को ध्यान में रखते हुए 80 लाख रुपये के गृह निर्माण और मोटर कार खरीदने के लिए अपर्याप्त हैं।
प्रत्येक सदस्य की घर और वाहन के लिए अलग-अलग आवश्यकताएँ या प्राथमिकताएँ होती हैं। इसलिए उन्हें इस उद्देश्य के लिए प्रतिदेय अग्रिम के रूप में अलग-अलग राशि की आवश्यकता होती है।
हरियाणा विधान सभा (सदस्यों को सुविधाएं) अधिनियम, 1979 में वर्तमान प्रावधान के अनुसार, कोई भी सदस्य 80 लाख तक का गृह निर्माण तथा 20 लाख तक का मोटर कार प्रतिदेय अग्रिम ले सकता है तथा सुझाव दिया गया कि गृह निर्माण तथा मोटर कार प्रतिदेय अग्रिम की राशि में पर्याप्त वृद्धि की जाए।