
सदियों से मनाया जाने वाला चेट्रीचंड्र पर्व सद्भाव, भाईचारे, एकता, अन्याय पर न्याय की विजय और धार्मिक आस्था का प्रतीक है।
भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्सव की धूम
भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तरपर कई देशों में 30 मार्च 2025 को चेट्रीचंड्र महोत्सव और आयोलाल झूलेलाल जयकारों की गूंज होंगी
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया, महाराष्ट्र – भारत एक ऐसा देश है, जहां आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत की जड़ें हजारों वर्षों से गहरी बनी हुई हैं। विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के बीच एकता के दर्शन भारत की विशेष पहचान हैं। यही कारण है कि यहां हर धर्म के त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं, चाहे वह दिवाली हो, ईद, क्रिसमस या फिर झूलेलाल जयंती।
इस वर्ष, 30 मार्च 2025 को, झूलेलाल जयंती का 1075वां चेट्रीचंड्र महोत्सव पूरे विश्व में मनाया जाएगा। इस पर्व के अवसर पर भारत समेत कई देशों में भव्य आयोजन किए जाएंगे और “आयो लाल झूलेलाल” के जयकारों की गूंज सुनाई देगी।
झूलेलाल जयंती: धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व

भगवान झूलेलाल का जन्म धर्म और न्याय की रक्षा के लिए हुआ था। उनके जीवन से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं:
(1) मिरखशाह की कथा:
संवत 1007 में सिंध प्रांत के ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक शासक ने लोगों पर अत्याचार कर उन्हें अपना धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। भक्तों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान झूलेलाल ने माता देवकी के गर्भ से रतनराय के घर जन्म लिया। जब मिरखशाह ने उन्हें मारने की योजना बनाई, तब झूलेलाल ने उसे पराजित कर न्याय की स्थापना की।
(2) समुद्री व्यापारियों की कथा:
सिंधी समाज व्यापारिक समुदाय रहा है, जो जलमार्ग से यात्रा करता था। समुद्री तूफान, लुटेरे और अन्य संकटों से बचाव के लिए वे वरुण देवता की आराधना करते थे। भगवान झूलेलाल जल के देवता माने जाते हैं और उनकी कृपा से व्यापारियों की सफल यात्राएं होती थीं। जब व्यापारी सुरक्षित लौटते, तो मन्नत पूरी होने की खुशी में चेट्रीचंड्र का उत्सव मनाते थे।
भगवान झूलेलाल: श्रद्धा और आस्था का प्रतीक
भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाईं, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी पूजा जाता है। उन्हें जल और ज्योति का अवतार माना जाता है।
चेट्रीचंड्र के दिन लकड़ी का एक छोटा मंदिर बनाया जाता है, जिसमें एक लोटे में जल और दीप प्रज्वलित किया जाता है। इसे “बहिराणा साहब” कहा जाता है और श्रद्धालु इसे सिर पर रखकर शोभायात्रा निकालते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने वाला पर्व

चेट्रीचंड्र अब केवल धार्मिक पर्व न होकर सिंधु सभ्यता एवं संस्कृति का प्रतीक बन गया है। इस अवसर पर सिंधी समुदाय अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रखते हैं और पूरे दिन विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
(1) पूजा-अर्चना एवं भजन-कीर्तन
(2) झूलेलाल बहराणा साहब यात्रा
(3) भव्य शोभायात्रा का आयोजन
(4) सामूहिक भोजन एवं प्रसाद वितरण
प्रेरणादायक झांकियों का प्रदर्शन
भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और कई अन्य देशों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
2025 में चेट्रीचंड्र की विशेष धूम
2025 में चेट्रीचंड्र पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाएगा। इस पर्व को सत्य, अहिंसा, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान शासन-प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए उत्सव को भव्य रूप दिया जाएगा।
निष्कर्ष
यदि हम इस पर्व का गहराई से अध्ययन करें, तो स्पष्ट होता है कि झूलेलाल जयंती यानी चेट्रीचंड्र केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह भाईचारे, सद्भावना, एकता और अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है। भारत समेत कई देशों में 30 मार्च 2025 को चेट्रीचंड्र महोत्सव की गूंज सुनाई देगी, जहां “आयो लाल झूलेलाल” के जयकारे हर दिशा में गूंजेंगे।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र