याद करते हैं पहले प्रधानमंत्री आए थे जनता कफ्र्यू के लिए, फिर आए थे लॉकडाउन-1 के लिए फिर लॉकडाउन-2 के लिए, लॉकडाउन-3 के लिए तो प्रधानमंत्री के दर्शन तो हुए नहीं थी। मंगलवार को लॉकडाउन-4 की घोषणा तो कर गए कि होगा लेकिन कैसा होगा, क्या छूट मिलेगी, इन सभी बातों के बारे में कुछ न कहकर उत्सुकता को यू छोड़ गए। लोगों का अनुमान था कि जैसे पहले ताली-थाली बजवाई थी, मोमबत्ती, दिये जलवाए थे शायद अभी भी जनता को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ ऐसा करें परंतु हुआ कुछ नहीं।

मंगलवार को प्रथम बार प्रधानमंत्री ने कोरोना की गंभीरता को समझा और कहा कि यह कोई दो-चार दिन चलने वाली बीमारी नहीं है, यह लंबे समय चलेगी और उस समय में हमें कोरोना से भी लडऩा है और कार्य भी करने हैं, क्योंकि देश के पांच स्तंभों में अर्थव्यवस्था भी बहुत बड़ा स्तंभ है। साथ ही मोदी यह भी कह गए कि अब हमें मास्क, सेनेटाइजर, सोशल डिस्टेंसिंग को अपने जीवन का हिस्सा बनाना पड़ेगा।

अब यह प्रश्न भी मुंहबाये उठ रहा है कि जो बात आज प्रधानमंत्री ने कही यदि यही बात गत 22 मार्च को कही होती तो देश अर्थव्यवस्था में इस कद्र पिछड़ नहीं जाता। तब तो प्रधानमंत्री ने इसे धर्म से जोडक़र यहां तक बोल दिया कि महाभारत 18 दिन में जीता था और हम कोरोना को 21 दिन में जीत लेंगे। खैर, देर आए दुरूस्त आए। इतने समय में काम बंद करने से यह अहसास हो गया कि कोरोना से बड़ा डर भूख का बनने लगा है। मनुष्य को जीवन-यापन करने के लिए भोजन तो चाहिए ही चाहिए।

20 लाख करोड़ का पैकेज
अपने संबोधन में मोदी ने मुख्य रूप से एक बात कही कि वह कोरोना से लडऩे के लिए 20 लाख करोड़ रूपए का पैकेज राष्ट्र को देंगे, यह दूसरी बात है कि उन्होंने यह नहीं बताया कि वह अपने प्रधानमंत्री कोरोना कोष से देंगे या फिर भारत सरकार के कोष से। हां, इतना अवश्य बताया कि वह पैकेज क्या होगा, उसकी घोषणा दो-तीन दिन में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कर देंगी। अब सुनने में तो 20 लाख करोड़ रूपए बहुत बड़ी रकम लगती है लेकिन कोरोना महामारी भी बड़ी है। देश की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ी हुई है। ऐसे में 20 लाख करोड़ रूपए कितना देश को संभाल पाएंगे? प्रधानमंत्री ने बताया कि 20 लाख करोड़ रूपए देश की जीडीपी का दसवां हिस्सा होता है। ऐसे ही एक अर्थशास्त्री ने बताया कि भारत सरकार का केवल पैट्रोल का प्रतिवर्ष टैक्स दो लाख करोड़ रूपए है। अब आमजन की समझ में ये लाख-करोड़ की बातें तो कम ही आएंगी। उसे तो धरातल पर काम दिखने चाहिएं। यह समय बताएगा कि क्या दिखाई देगा।

मंगलवार को कोई भी घोषणा क्यों नहीं कर पाए मोदी?
मंगलवार को उम्मीद नहीं विश्वास था जैसा कि प्रधानमंत्री का पुराना इतिहास बताता है कि वह फैसला दो टूक लेकर घोषित करके ही जाते हैं। ऐसा प्रथम बार ही हुआ कि वह कुछ भी घोषित नहीं कर पाए सिवाये इसके कि 20 लाख करोड़ रूपए का पैकेज देकर जा रहे हैं। इस बारे में एक राजनैतिक विश्लेषक से चर्चा हुई तो उनका कहना था कि प्रधानमंत्री ने सोमवार को भी मुख्यमंत्रियों से वार्ता की थी कोरोना और लॉकडाउन के विषय पर ही और मंगलवार प्रात: उन्होंने घोषणा की कि रात्रि 8 बजे वह राष्ट्र को संबोधित करेंगे, जबकि मंगलवार को दिन में ही उनकी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से फिर वार्ता हुई। संभव है उसकी वजह से प्रधानमंत्री कोई निर्णय नहीं ले पाए हों।

कारण स्पष्ट है कि हमारा देश विभिन्न धर्मों और संस्कृति से मिलकर बना है। हर राज्य की स्थानीय परिस्थितियां अलग हैं। इसके आगे बात करें तो बहुत स्थानों पर तो राज्य का जिले की परिस्थितियां भी भिन्न हो जाती हैं। शायद इसी कारण से भी मुख्यमंत्री एकमत नहीं हो पाए और फैसला राज्यों के मुख्यमंत्री राज्यों की स्थितियों का आंकलन कर लेंगे कि लॉकडाउन किस प्रकार बढ़ाना है और उसमें क्या-क्या छूट देनी है और कितनी देनी है।

अब हम यह तो कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री को भी समझ आ गया है कि जीवन को रोकने से कोरोना ठीक नहीं होने वाला, काम भी चलाने होंगे और कोरोना से बचाव भी करना होगा। मंगलवार के अपने संबोधन में अजीब बात यह रही कि प्रधानमंत्री ने हमारे देश व प्रदेशों में कोरोना कहां कितना घातक हो रहा है, सरकार की ओर से स्वास्थ विभाग कोरोना से बचाव को लेकर क्या कर रहा है, इन बातों का कोई जिक्र नहीं किया तो पीपीइ किट और मास्क के बारे में तो उन्होंने कह दिया कि वह हिंदुस्तान में भी लोग स्थानीय स्तर पर भी बनाने लगे हैं लेकिन कोरोना को टेस्ट करने वाली किट या वेंटिलेटर के बारे में चर्चा करना मुनासिब नहीं समझा। तात्पर्य यह है कि इन सभी बातों के फैसले भी अब राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन ही मिलकर करेंगे।

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