विजय गर्ग

आज से करीब साढ़े तीन-चार दशक पहले तक स्थिति इतनी भयावह नहीं थी। तब सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की संख्या सीमित थी, और हवा में घुलने वाले ज़हर को सोखने के लिए हमारे पास पर्याप्त मात्रा में पेड़ भी थे। लेकिन पिछले कुछ दशकों में स्थितियाँ बहुत तेजी से बदलीं। सड़कों पर गाड़ियों की बाढ़ आ गई और विकास की अंधी दौड़ में पेड़ों को अंधाधुंध काटकर हमने स्वयं से ही उस सहारे को छीन लिया, जो न केवल तेज धूप में हमें छाया देता था बल्कि पर्यावरण संरक्षण की आश्वस्ति भी प्रदान करता था।

घुटती हवा, बढ़ता ज़हर

हवा में घुलने वाला ज़हर वाहनों, कारखानों और पटाखों से निकलने वाले जहरीले धुएँ का परिणाम है। इस धुएँ में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी गैसें और सीसे के कण वातावरण को विषाक्त बना देते हैं। यह ज़हर बच्चों और बुजुर्गों पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है।

राजधानी दिल्ली की हवा में फैले ज़हर ने एक बार फिर लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। आमतौर पर राजधानियों की हवा को प्रदूषित कहा जाता है, लेकिन दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में लोग सचमुच दमघोंटू हवा में साँस लेने को विवश हैं। बेतहाशा दौड़ते वाहन, खेतों में जलाई जाने वाली पराली और दीपावली पर हुई आतिशबाजी—इन सबने प्रदूषण को चरम पर पहुँचा दिया।

दिल्ली ही नहीं, देश के अधिकांश शहरों में दीवाली के दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है। राजस्थान के कोटा शहर को ही लें—जहाँ हर साल करीब दो लाख छात्र कोचिंग लेने आते हैं। इन छात्रों के कारण कोटा को आर्थिक समृद्धि मिली है, लेकिन यहाँ का वातावरण भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एक अस्थमा विशेषज्ञ ने दीवाली की रात कोटा की हवा में प्रदूषण की जाँच की और पाया कि यहाँ की हवा में जहरीले कणों की मात्रा मानक स्तर से सात गुना अधिक थी।

वायु प्रदूषण: एक अदृश्य हत्यारा

पिछले कुछ वर्षों में हमने न केवल अपने स्वभाव से, बल्कि अपने व्यवहार से भी हवा में ज़हर घोलने की आदत बना ली है। वायु प्रदूषण की भयावहता का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इसे ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ घोषित कर चुका है।

WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण हर साल करीब सात करोड़ लोगों की मृत्यु हो जाती है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के एक शोध में पाया गया कि दुनिया में निमोनिया से होने वाली मौतों और वायु प्रदूषण के बीच सीधा संबंध है।

लंदन के किंग्स कॉलेज के एक अध्ययन में खुलासा हुआ कि वायु प्रदूषण युवाओं में कई मानसिक विकृतियों को जन्म देता है। आमतौर पर यह माना जाता है कि वायु प्रदूषण केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह शरीर के हर अंग पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। जहरीली हवा फेफड़ों के जरिए पूरे शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती है।

प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव

वायु प्रदूषण के कारण शरीर में तनाव उत्पन्न करने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। बुजुर्गों में यह डिमेंशिया जैसी बीमारियों को जन्म दे सकता है। गर्भवती महिलाओं को गर्भपात जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और जन्म से पहले ही बच्चों का विकास प्रभावित होता है।

ब्रोंकाइटिस, अनिद्रा, यकृत कैंसर, प्रजनन क्षमता में कमी, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसे अनेक गंभीर बीमारियाँ वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही हैं। चीन में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि वायु प्रदूषण बच्चों के गणित और भाषा सीखने की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

वेदों में पर्यावरण संरक्षण का संदेश

वायु प्रदूषण जीवन के साथ ऐसा खिलवाड़ करता है कि इससे स्वास्थ्य की दृष्टि से पूरी पीढ़ियाँ प्रभावित होती हैं। शायद यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण संरक्षण को एक अनिवार्य कर्तव्य माना।

ऋग्वेद में कहा गया है—
“पृथ्वी: पू: च उर्वी भव”, अर्थात संपूर्ण पृथ्वी और समस्त परिवेश शुद्ध रहे, तभी जीवन का संपूर्ण विकास संभव है।

अथर्ववेद में वायु को प्राण कहा गया है। वेदों में वायु को पिता के समान पालक, बंधु के समान धारक और मित्रवत सुख देने वाला बताया गया है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली ने इन पारंपरिक मान्यताओं को दरकिनार कर दिया और प्रदूषण को ही तरक्की का मानक बना दिया।

असंतुलित तर्क और प्रदूषण का समर्थन

इस वर्ष भी जब कुछ संवेदनशील लोगों ने दीपावली पर पटाखों के सीमित उपयोग की अपील की, तो कुछ लोगों ने इसे सुनियोजित साजिश करार दे दिया। कई लोगों ने यह तक तर्क दिया कि आतिशबाजी से वातावरण में मौजूद मच्छर मर जाते हैं, इसलिए पटाखे चलाने चाहिए! लेकिन यह भूल गए कि जहरीली हवा केवल मच्छरों को ही नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति को प्रभावित करती है।

अत्यधिक प्रदूषण: एक भयावह भविष्य

अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में किए गए एक अध्ययन से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि गंगा के मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की औसत आयु वायु प्रदूषण के कारण साढ़े तीन से सात वर्ष तक कम हो रही है।

स्थिति यह है कि 1998 से 2016 के बीच इस इलाके में प्रदूषण 70% से अधिक बढ़ गया है, जबकि देश की 40% आबादी इसी क्षेत्र में निवास करती है। ऐसे में आने वाले वर्षों में वायु प्रदूषण से ग्रस्त लोगों की संख्या में कितनी वृद्धि होगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

समाधान क्या है?

हवा में घुलने वाले ज़हर से मुक्ति के लिए कुछ कठोर कदम उठाने होंगे:

  1. वाहनों की संख्या में कमी – सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  2. औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण – कारखानों के धुएँ को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून लागू करने होंगे।
  3. पराली जलाने पर रोक – किसानों को पराली जलाने के बजाय वैकल्पिक समाधानों की ओर प्रेरित करना होगा।
  4. पटाखों पर नियंत्रण – विशेष रूप से बड़े शहरों में आतिशबाजी को सीमित करना आवश्यक है।
  5. पेड़ों का रोपण और संरक्षण – हरियाली बढ़ाकर वायु शुद्धि की दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे।

निष्कर्ष

वायु प्रदूषण केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह एक स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है। यदि हमने अभी भी प्रदूषण के इस दानव को नियंत्रित नहीं किया, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इससे कहीं अधिक भयंकर परिणाम झेलेंगी। वायु ही जीवन है, और यदि हम इसे बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाते, तो हम अपने ही जीवन का अस्तित्व संकट में डाल देंगे।

— विजय गर्ग (सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, मलोट, पंजाब)

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