ऑस्ट्रेलिया का ऐतिहासिक सोशल मीडिया प्रतिबंध -बचपन की सुरक्षा, डिजिटल भविष्य और वैश्विक सबक

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बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्रतिबंध-ऑस्ट्रेलिया का ‘बचपन बचाओ आंदोलन- दुनिया के लिए उदाहरण

बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्रतिबंध-बचपन बचाओ आंदोलन है,जिसे आधुनिक समाज में डिजिटल प्रदूषण, गलत कंटेंट,हिंसक वीडियो और हानिकारक एल्गोरिद्म्स के बीच बच्चों के लिए एक सुरक्षा कवच

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर ऑस्ट्रेलिया ने दुनियाँ में एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया है जिसने वैश्विक राजनीति, तकनीकी नीति और सामाजिक मूल्यों के विमर्श को एक नई दिशा दी है। यह निर्णय न तो सैन्य संघर्ष से जुड़ा है, न आर्थिक युद्ध से, न ही किसी रणनीतिक गठबंधन से। यह फैसला सीधा-सीधा दुनिया के बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक भविष्य से जुड़ा है। ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट्स बंद करने का आदेश जारी करते हुए एक बड़े सामाजिक सुधार का मार्ग प्रशस्त किया है। इस आदेश के बाद इंस्टाग्राम, फेसबुक, टिकटॉक, यूट्यूब, स्नैपचैट, थ्रेड्स और एक्स जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स पर लाखों अकाउंट बंद किए जा चुके हैं और नीति का उल्लंघन करने पर टेक कंपनियों पर 32 मिलियन डॉलर तक का भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया महाराष्ट्र, यह स्पष्ट रूप से मानता हूँ कि यह कदम केवल कानून नहीं है,यह आधुनिक डिजिटल दौर के बीच बच्चों के लिए एक सुरक्षा कवच है। यह निर्णय डिजिटल प्रदूषण, साइबर बुलिंग, हिंसक और अस्वस्थ कंटेंट, मानसिक तनाव तथा हानिकारक एल्गोरिद्म जैसे अदृश्य खतरों से बच्चों को सुरक्षित करने की दिशा में एक ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ है।

सोशल मीडिया का काला सच-बच्चों का मनोवैज्ञानिक जोखिम

बच्चों में डिजिटल दुनिया का प्रभाव तेज़ी से और गहराई तक बढ़ा है। 10–16 वर्ष के बच्चे सोशल मीडिया पर सबसे सक्रिय पाए जाते हैं। वे जिन वीडियो, चैट और कंटेंट के संपर्क में आते हैं, उनका वास्तविक और दीर्घकालिक प्रभाव उनके मानसिक विकास पर पड़ता है।

  • एल्गोरिद्म-आधारित कंटेंट बच्चों की जिज्ञासा को व्यसन में बदल देता है।
  • हिंसक वीडियो, अश्लील सामग्री, अवास्तविक सुंदरता मानक, आभासी सामाजिक तुलना बच्चों को अवसाद, आत्म-हीनता और आत्महत्या के जोखिम की ओर धकेलते हैं।
  • कई बच्चे आज शिक्षकों से कम और इन्फ्लुएंसर्स से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
  • ‘रील संस्कृति’ किताबों, खेलों और वास्तविक गतिविधियों को पीछे धकेल रही है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, यह आयु बच्चों की पहचान निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है, जहाँ गलत दिशा का प्रभाव जीवनभर के व्यवहार को ढाल देता है।

टेक कंपनियाँ बच्चों को क्यों टारगेट करती हैं? एल्गोरिद्म का कटु सच

ऑस्ट्रेलिया ने जिस समस्या पर प्रहार किया है, वह टेक कंपनियों का मूल बिज़नेस मॉडल है—
बच्चे जितना समय ऑनलाइन बिताएँगे, कंपनियों का मुनाफा उतना बढ़ेगा।

  • बच्चों का मन संवेदनशील होता है, वे जल्दी प्रभावित होते हैं।
  • वायरल कंटेंट और तेज़ी से बदलती रुचियाँ कंपनियों को ‘एंगेजमेंट’ बढ़ाने में मदद करती हैं।
  • एल्गोरिद्म इस प्रकार डिजाइन किए जाते हैं कि बच्चा बार-बार स्क्रॉल करता रहे और प्लेटफॉर्म से चिपका रहे।

इस मॉडल ने बच्चों को वास्तविक दुनिया से काटकर वर्चुअल दुनिया का बंदी बना दिया है। ऑस्ट्रेलिया का फैसला इसी संरचनात्मक समस्या पर चोट करता है।

ऑस्ट्रेलिया का ‘बचपन बचाओ आंदोलन’-दुनियाँ के लिए प्रेरणा

ऑस्ट्रेलिया ने जिस कठोर नीति को लागू किया है, वह दुनिया में किसी बड़े लोकतंत्र में पहली बार दिखाई दी है। इसके प्रमुख पहलू हैं—

  1. 16 वर्ष से कम बच्चों के अकाउंट बंद-लाखों प्रोफाइल डिलीट।
  2. बड़े 10 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ब्लॉक- इंस्टाग्राम, फेसबुक, टिकटॉक, यूट्यूब आदि सभी बच्चों के लिए बंद।
  3. अभिभावकों को सजा नहीं-पूरा दायित्व टेक कंपनियों पर।
  4. कंपनियों पर भारी जुर्माना (32 मिलियन डॉलर)-पालन न करने पर कठोर दंड।
  5. पहचान सत्यापन प्रणाली अनिवार्य-फर्जी उम्र बताकर अकाउंट खोलना लगभग असंभव।

यह कदम केवल नियमन नहीं है; यह डिजिटल युग की नैतिकता, सुरक्षा और सामाजिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है।

भारत में 35 करोड़ बच्चे-क्या ऐसा आंदोलन आवश्यक है?

भारत की स्थिति ऑस्ट्रेलिया से कहीं अधिक जटिल और गंभीर है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है और लगभग 35 करोड़ बच्चे 15 वर्ष से कम आयु के हैं। आज भारत में:

  • साइबर बुलिंग चरम पर है।
  • बच्चे हिंसक वीडियो को मनोरंजन मानने लगे हैं।
  • जीवनशैली, नींद और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहे हैं।
  • पढ़ाई और पुस्तकों से दूरी बढ़ रही है।
  • इन्फ्लुएंसर्स बच्चों के नए रोल मॉडल बन चुके हैं।
  • गलत कंटेंट की उपलब्धता अधिक है और अभिभावक डिजिटल निगरानी करने में सक्षम नहीं।

भारत में समस्या गहरी है-जनसंख्या, मोबाइल पहुँच और कम डिजिटल साक्षरता मिलकर स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।

क्या भारत में सोशल मीडिया बैन उपयोगी होगा?

यदि भारत ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर 16 वर्ष से कम आयु वालों के लिए प्रतिबंध लागू करता है, तो इसके कई दूरगामी लाभ हो सकते हैं—

  1. मानसिक स्वास्थ्य में सुधार
    बच्चों की भावनात्मक स्थिरता और स्वाभाविक विकास मजबूत होगा।
  2. शिक्षा केंद्रित जीवनशैली
    स्कूल और घर में ध्यानभंग कम होगा, सीखने की प्रक्रिया बेहतर होगी।
  3. पारिवारिक संबंधों में मजबूती
    मोबाइल निर्भरता घटेगी और पारिवारिक संवाद बढ़ेगा।
  4. टेक कंपनियों पर दबाव
    भारत जैसा विशाल बाजार टेक कंपनियों को नीतियाँ बदलने पर मजबूर कर देगा।
  5. डिजिटल साक्षरता आंदोलन
    देश में डिजिटल नैतिकता और सुरक्षा पर व्यापक जागरूकता बढ़ेगी।
भारत के सामने चुनौतियाँ-क्या यह आसान होगा?

भारत में ऐसे प्रतिबंध लागू करना कठिन हो सकता है, कारण

  • विशाल जनसंख्या और तकनीकी ट्रैकिंग की कठिनाइयाँ
  • डिजिटल पहचान सत्यापन की दिक्कत
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर तकनीकी ढाँचा
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस
  • टेक कंपनियों की लॉबिंग

लेकिन किसी भी बड़े सुधार के साथ चुनौतियाँ जुड़ी होती हैं। यदि मुद्दा बच्चों के भविष्य का हो, तो कठिन रास्ते भी स्वीकार्य होते हैं।

क्या भारत के लिए यह सही समय है?-एक विश्लेषण

ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया को दिखा दिया है कि बच्चों की सुरक्षा में राज्य की भूमिका कितनी निर्णायक हो सकती है। भारत जैसे विशाल देश के लिए, जहाँ करोड़ों बच्चों का भविष्य संकट में है, यह सबक और भी महत्वपूर्ण है। माता-पिता चिंतित हैं—उनके बच्चे किससे बात कर रहे हैं, क्या देख रहे हैं, क्या सीख रहे हैं, और किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।अब समय है कि भारत अपना डिजिटल बचपन बचाओ आंदोलन शुरू करे।यह केवल कानून नहीं, बल्कि समाज, स्कूलों, परिवारों और टेक कंपनियों की सामूहिक जिम्मेदारी बने। यदि आज कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक अनियंत्रित डिजिटल अराजकता की शिकार होंगी।ऑस्ट्रेलिया ने शुरुआत कर दी है-अब दुनिया की नजरें भारत पर हैं कि वह अपने बच्चों के भविष्य की रक्षा के लिए किस दिशा में कदम बढ़ाता है।

संकलनकर्ता / लेखक क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि संगीत माध्यमा सीए (ATC) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र

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Author: Bharat Sarathi

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