सरकार को नानी याद आ जाएगी ………

डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” पानीपत

धर्म नैतिकता को भी कहते हैं , गत 10 वर्षों से हिंदू मुस्लिम के साथ श्री राम मंदिर अयोध्या भी चलता रहा, मंदिर का राजनैतिक मुहूर्त भी उस दिन हुआ जिस दिन मुहूर्त ही नहीं था तो अयोध्या से ही क्या परिणाम मिला सभी जानते हैं, शुक्र है सरकार बन गई, जिसके नाम पर राजनीति की थी कम से कम जिस दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी उससे अगले दिन अयोध्या जा कर भगवान श्री राम का धन्यवाद करना तो बनता था, लेकिन आज तक जाना नहीं हुआ क्यों कि अब श्रीराम मंदिर का मुद्दा समाप्त हो गया है।

इस सरकार ने किसान आंदोलन में अपनी अड़ियल और गलत नीतियों का फल इन चुनावों में भोगा है। अब भी भारत की सरकार देश की जनसंख्या में युवा शक्ति का अनुपात लगभग 50% तक माना जाता है और सरकार फिर वही किसान आंदोलन वाली गलती Neet exams में दोराहा रही है। कुछ प्रांतों में तो दो तीन महीनों में विधान सभा चुनाव प्रतिक्षित है, यहां भी किसान आंदोलन और neet परीक्षाओं में गड़बड़ियों के विरोध पूरे देश में हो रहा है, देश को मणिपुर को भी विपक्ष नहीं भूलने दे रहा है तो सरकार को परेशानी होना तय है और फिर यह सरकार तो अल्पमत की सरकार है जो बैशाखियों के सहारे पर खड़ी हुई है। यदि एक भी वैशाखी खिसक गई तो सरकार लुढ़क जाएगी।

सरकार को बचाए रखने के लिए केवल एक ही रास्ता बचा था आज बजट में बिहार और नायडू को सब से अधिक लाभ योजनाएं दी गई। क्रोधी और उग्र स्वभाव के राजनैतिक चरित्र को गुगल भगवान में पढ़ रहा था जिस में मैने दो पंडितों के राजनैतिक चरित्र वर्णित हैं और मुझे विस्मित हुआ कि राजनीति में सावरकर की क्या मान्यता रही है कि जिन्होंने पंडित चंद्रशेखर आजाद को पैसों का लालच देकर यह कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से पीछे हट जाओ तो पंडित चंद्रशेखर आजाद जिन पर पूरा राष्ट्र गर्व करता है उन्होंने कहा कि यह सम्भव नहीं है … Country First … और अंग्रेजों को एक मुखबिर द्वारा दी गई सूचना के कारण उन्होंने शीर्ष बलिदान दिया और सावरकर के हक में चाहे जितना प्रचार कर लें सत्ता पक्ष आजतक सावरकर को पंडित चंद्रशेखर जैसा सम्मान नहीं दिलवा सका।

कावड़ यात्रा में नाम को लेकर देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाने का एक और षड्यंत्र रचा गया। इनकी सरकार को जरा सा कोई अपवाद और लाभ का मार्ग मिले तो सही यह लोग उस को तुरंत अपनाने और भुनाने लगते है। एक पुलिसए ने स्वयंभू की नीयत से या किसी के उकसाने पर उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में यह आदेश जारी किया कि कावड़ यात्रा के दौरान सभी दुकानदार अपनी अपनी दुकानों रेहड़ियों और खोमचों पर लिखे कि उनका नाम क्या है ? ताकि कावड़ियों को यह ज्ञात हो सके कि वह समान किस से खरीद रहे हैं। इस से सांप्रदायिक बढ़ेगा या तनाव घटेगा … लेकिन सरकार ने इस पुलिस कर्मी के स्थानीय आदेश को को अपने हक में आता मान कर आदेश जारी कर दिया कि क्षेत्र में फिर हिन्दू मुस्लिम होगा, उस से इन्हें चुनावी लाभ होगा।आदरणीय सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को सिरे से रद्द कर दिया कि इससे तो तनाव बढ़ेगा। यह समझ नहीं आता कि यदि कोई कावड़िया किसी हिंदू से फल खरीद रहा है यदि वह फल किसी मुसलमान के बाग का हुआ या मुसलमान आढ़ती का हुआ तो उस फल को वह खाएगा या नहीं खाएगा।

यह तो बात हुई मुस्लिम की दूसरी तरफ जो विदेशी कंपनियां है जिनको देश में उद्योगों के लिए बुलाया गया है और वो ईसाई हैं, यह लोग उन पर क्या फतवा जारी करेंगे कि इनका माल न खरीदो यह भी मुस्लिमों के मौसी के बालक हैं। मैं पानीपत नगर का निवासी हूं। यहां की वास्तविक आबादी से लगभग दो गुणा लोग दूसरे प्रदेशों से रोजगार के लिए आए हुए हैं। आप सुबह श्री यमुनापुल पर वीडियोग्राफी कर के आंकलन करेंगे तो आप को सिर ही सिर नज़र आएंगे कि हजारों लोग पानीपत के हस्ताकरघा उद्योग को चलाने के आ रहे हैं और यही लोग शाम को वापिस लौट जाएंगे। पानीपत के वास्तविक निवासी जो आज सेठ बनते जा रहे हैं वह सब इन्हीं लोगों के कारण है जो इनके यहां काम करने आते हैं। यदि एक सप्ताह यह लेबर पानीपत न आए तो यहां के उद्योगपतियों की जीभ बाहर लटकने लग जाएगी।

इस तथ्य के लिए मैं एक सच्ची घटना से आप को परिचित करवाता हूं, 2009 में नगर की शीर्ष धार्मिक संस्था में मैं जनरल सेक्रेट्री था कि जम्मू रेलवे स्टेशन पर बम ब्लास्ट हुआ जिसमें कुछ बेकसूर यात्री मारे गए थे। घटना के विरोध में हर ओर कांग्रेस सरकार के विरुद्ध रोष था, पानीपत में धार्मिक संस्थाओं की मीटिंग बुलाई गई जिसमें मैं तत्कालीन अध्यक्ष के साथ गया। सभी यही कह रहे थे, बाजार बंद करवाओ, डी सी को रोषपत्र दो यह करो और वो करो। जब मेरी बारी आई तो मैने यह कहा कि पानीपत में फ्रूट और सब्जी बेचने वाले, चिनाई वाले मिस्त्री, नाई, दूध वाले और दीहाड़ीदार मजदूर लगभग सभी मुस्लिम हैं, आप सभी की फैक्ट्रियों में लगभग सारे कारीगर मुस्लिम हैं। दिहाड़ीदार लेबर, फ्रूट और नाई आदि की शिनाख्त तो मुश्किल है , यहां मीटिंग में उपस्थित लगभग सभी सदस्य उद्योगपति हैं, वह कम से कम इतना काम तो कर ही सकते हैं कि अपने यहां की कारीगर और लेबर से उनके आधार कार्ड ले कर इनकी पुलिस सत्यापन (verification) करवा सकते हैं, तो एक प्रतिष्ठित उद्योगपति जो संघ से जुड़ा हुआ था, वह खड़ा होकर कहने लगा कि डॉo साहिब इससे तो हमारी फेक्ट्रियां बंद हो जाएंगी।

अब आप स्वयं ही निर्णय करें कि कुछ लोग केवल और केवल यही चाहते हैं कि आग जले या न जले पर सुलगती रहे, उनके पास लोगों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ने का कोई बहाना बना रहे। यह लोग हमेशा से ही छोटे छोटे मुद्दों को भड़का कर जन समर्थन प्राप्त करना चाहते हैं साथ ही यह भूल जाते हैं कि देश की आधी आबादी युवाओं की है जो शिक्षित है और काम न मिलने के कारण गुस्से में हैं उस युवा शक्ति का समर्थन नहीं मिलने वाला जब तक उन्हें जॉब नहीं दिए जाते। सरकार का खजाना भी खाली होता जा रहा है , अब तो यह सुनने में आ रहा है कि सरकार नौकरीपेशा लोगों को तनख्वाह हर महीने न देकर, हर दस दिन बाद देगी। आजकल भारत में धर्म परिवर्तन हो रहा है , वो जमाना और था जब तलवार के दम पर धर्म परिवर्तन हुआ था, लेकिन आज पैसे के दम पर तो क्या गरीबों को केवल दो दिन अच्छे से बैंक्वेट हाल में भोजन खिला कर किया जा रहा है, देश में भयंकर गरीबी है जिसका प्रमाण सरकार दे रही है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दे रही है। गरीबी का कारण महंगाई, अशिक्षा, बेरोजगारी और व्यापारिक मंदी है। त्रासदी है कि दूषित राजनीति के कारण हमारे देश में धार्मिक और सामाजिक संस्थान मंदिरों के गुम्बद ऊंचे करवा सकते हैं या फर्श बदल सकते हैं यह किसी को अन्न नहीं दे सकते। स्कूलों में शिक्षा निशुल्क नहीं दे सकते और किसी को निशुल्क चिकित्सा सुविधा नहीं दे सकते।

राजनीतिज्ञ भले ही जो मर्जी दावा करे कि उसने दस वर्षों में 8 करोड़ जॉब दिए हैं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ यदि हुआ होता तो जनमानस संतुष्ट होता आप को 400+ से भी अधिक दे देता, जनता ने तो आप को इस तरह के विकास के लिए बैशाखियों का उपहार दिया है और आप हैं कि उस पर इठला रहे हैं कि तीसरी बार … ज़रा सा किसी ने एक वैशाखी हिला दी न … नानी याद आ जाएगी। राजनीति में कुछ भी हो सकता है, यदि खरीद फरोख्त सफल न हो पाई तो सत्ता बचाए रखने के लिए Last Resort क्या क्या हो सकते है, डर बना रहता है कि कहीं किसी शीर्ष नेता के साथ नाथूराम गोडसे न हो जाए। नयनसुख भक्तजन इनकी हर बात पर विषय को बिना जाने समझे इनको जोर जोर दाद दे रहे हैं अगर ईश्वर ने जरा सा भी याद कर लिया न यह दाद आखिरी बार हो जाएगी।

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