-कमलेश भारतीय

आखिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश के आदेशों पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए अगली सुनवाई 26 जुलाई पर टाल दी है। मामला कांवड़ यात्रा की राह में आने वाले दुकानदारों के नाम लिखे जाने का था । सुप्रीम कोर्ट ने नाम लिखने पर रोका लगाते हुए इन तीन राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर दिये हैं । सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सिर्फ यह बतायें और लिखे़ कि खाना शाकाहारी है या मांसाहारी ! मालिक का नाम नहीं ! वकील अभिषेक मनु सिंघवी का तर्क था कि यह सिर्फ एक अल्पसंख्यक समुदाय को ही नहीं बल्कि दलितों को भी बाहर करने का विचार दिखता है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कांवड़ियों के रास्ते में आने वाले ढाबा-रेस्तरां मालिक, खाद्य पदार्थ, सब्ज़ी विक्रेता, फेरीवाले आदि खाने का मेन्यू लिख सकते हैं । यह लिखा जा सकता है कि खाना शाकाहारी है या मांसाहारी लेकिन मालिक/संचालक और कर्मचारियों का नाम/पहचान लिखने पर मज़बूर नहीं किया जा सकता !

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रायें दशकों से हो रही हैं । इसमें मुस्लिम सहित सभी धर्मों के लोग सहयोग करते हैं । अब उन्हें अलग किया जा रहा है । वहां हिंदुओं के शाकाहारी रेस्तरां हैं, यदि उनमें मुस्लिम या दलित कर्मचारी हों तो क्या आप कहेंगे कि वहां खाना नहीं खायेंगे? ऐसे आदेश का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है ! इस तरह कांवड़ यात्रा में आने वाले दुकानदारों को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत तो दे दी, जिससे इन राज्य की सरकारों को संविधान का अस्तित्व समझ में आया । संविधान में देश में कहीं भी रोज़ी रोटी कमाने का अधिकार है लेकिन इस अधिकार को इन तीन भाजपा शासित राज्यों ने छीनने का प्रयास किया । अभी हरियाणा के गुरुग्राम से अस्सी किलोमीटर की ब्रजमंडल यात्रा की राह में मुस्लिमों ने नूंह पुन्हाना तक के रास्ते में उन्नीस जगह पुष्प वर्षा की ! संतों‌ पर मुस्लिमों ने फूल बरसाये !

हम उस देश के वासी हैं………… जिस देश मे गंगा यमुना तहजीब है !

यह कोर्ट ही है जो सही राह पर सरकारों को ला रहा है । कोर्ट ही था जिसने श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला दिया था। यह कोर्ट ही था जिसने उत्तराखण्ड की हरीश रावत सरकार को फिर बहाल किया था । यह कोर्ट ही था जिसने कहा था कि उद्धव ठाकरे ने समय पूर्व इस्तीफा न दिया होता तो उनकी सरकार बच सकती थी । फिर कैसे ‘सविधान हत्या दिवस’ जैसे दिन मनाने का आह्वान करते हो? संविधान का पालन खुद तो कीजिये ! संविधान की पावनता तो बचाये रखिये ! कोई हिसाब मांगे तो ईडी/सीबीआई तो न भेजिये । हिसाब दीजिये ! दुष्यंत कुमार कहते हैं :

यहां गूंगे और बहरे लोग बसते हैं
न जाने यहां जलसा कैसे हुआ होगा!!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी. 9416047075

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