सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”    

 यह पर्व भारतीय नारियों का अहम त्योहार है। इस दिन वे अपने पति के कल्याण और उसकी लंबी आयु के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। रात्रि को चंद्रमा के दर्शन उपरांत पूजा-पाठ और पति के दर्शन कर ही वे अपना व्रत फलाहार इत्यादि ग्रहण कर तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत विवाहित (सुहागिन)ही स्त्रियां रखती हैं। इस व्रत की पूजा वे प्रायः एक साथ मिलकर या परिस्थिति अनुसार अकेले भी करती हैं। करवा चौथ की पूजा पूर्ण दिन व्रत पश्चात रात्रि को चंद्र देवता के दर्शन कर लेने के बाद ही किया जाता है। जब तक चंद्रदेव नहीं निकलते या दर्शन नहीं देते तब तक वे आकाश को निहारती रहती है, और जब चंद्रदेव अपनी श्वेत- शीतल धवल चांदनी की आभा के “साथ आकाश में प्रगट होते हैं, तब उनके दर्शनोपरांत पूजा की शुरूआत की जाती है। चंद्रदेवता को चलनी (जो अनाज छानने के काम में लाया जाता है) से आंखों के सामने रखकर चलनी के पार से देखा जाता है। ठीक इसी तरह पति के दर्शन भी चलनी की सहायता से की जाती है। यह एक परंपरा है। इस व्रत में भगवान शंकर की पूजा करने का विधान है।   

चंद्रदेव के दर्शन बाद बंदन, रोली का तिलक लगाकर चंद्रदेव का अभिषेक किया जाता है। दूध-जल से उन्हें अभिसिक्त किया जाता है। एक कलश रखकर उसमें एक कटोरी में थोड़ा सा चावल रखकर उस पर घी का दीपक जलाया जाता है। इसके बाद उसी स्थान पर कलश स्थापित कर उसके अगल-बगल करवा का कलश रखा जाता है। पान के पत्ते पर गौरी-गणेश स्थापित कराया जाता है। फिर चंदन- बंदन, रोली, सिंदूर, हल्दी, फूल चढ़ाने के बाद श्रीफल सहित अन्य फल अपनी श्रद्धा व यथाशक्तिनुसार चढ़ाया जाता है। आखिर में अगरबत्ती धूप जलाकर आरती की जाती है, इस प्रकार पूजा की प्रक्रिया संपन्न होती है। पूजा पश्चात पतिदेव को चलनी के पार से देखकर स्त्रियां उनका चरणवंदन कर सुहागिन होने का आशीर्वाद मांगती है, तब फिर अपना व्रत समाप्त करती हैं।  करवा चौध व्रत प्रारंभ की कथा जो कही सुनाई जाती है , वह कुछ इस प्रकार है।     

किसी समय में सात भाई एक साथ मिलकर एक गांव में प्रेम से रहते थे। वे सभी काफी संपन्न एवं सुखी जीवन बिता रहे थे। इन सातों भाइयों की मात्र केवल एक ही बहन थी, जिसे सभी भाई अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे। सातों भाइयों ने एक योग्य वर तलाश कर उसकी बड़ी धूमधाम से शादी कर दी। बहन की शादी के बाद करवा चौथ का पर्व आया तब वह पूरे दिन अपने पति के कल्याण की कामना लिए कर निर्जला-निराहार व्रत रखी। सातों भाइयों ने अपनी प्राण प्यारी बहन को पति सहित अपने ही पास रहने को राजी कर लिया था। वह पति सहित भाइयों के साथ ही रह रही थी। कार्तिक कृष्ण पक्ष की तृतीया को इस व्रत के दिन सुबह से ही आकाश में बादल छाये हुए थे। रात्रि को भी बड़ी देर तक बादलों के कारण चंद्रदेवता के दर्शन नहीं हो पाए। सातों भाई जान रहे थे कि उनकी प्यारी बहन सुबह से ही निराहार एवं निर्जला व्रत रखी हुई है और बादलों में छुपकर शायद चंद्रदेव भी लोप होकर उसकी परीक्षा ले रहे थे। आखिरकार सातों भाइयों के धैर्य का बांध टूट गया। वे अपनी बहन की दशा पर द्रवित हो गए। तब उन्होंने मिलकर एक पेड़ पर एक दीपकर जलाकर चलनी के पास जाकर कहा कि बहना चांद निकल आया है लो देखो! बहन ने भी भाइयों के कहने पर उस पेड़ के दीपक को चांद समझ लिया और उसने करवा चौध व्रत की पूजा करनी शुरू कर दी। पूजा समाप्ति करने के बाद उसने जल का प्रसाद ग्रहण ही किया था कि एक आदमी ने आकर उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। यह समाचार सुनकर वह रोने लगी। उसके भाइयों ने यह सब सुना तो उन्हें अपनी गलती का भान हो गया। वे समझ गए कि यह सब उनके ही अपराध के कारण हुआ है। तब सभी भाई अपनी बहन को सारी बात बताकर उससे अपनी गलती की क्षमा मांगने लगे। बहन ने अपने भाइयों को तो जरूर माफ कर दिया पर उसने, अपने पति के शव को अपनी गोद में रखकर वर्ष भर उसकी देखभाल करनी शुरू कर दी। फिर जब पुनः कार्तिक कृष्ण तृतीया का करवा चौथ व्रत की आया, तब उसने अपनी पूजा प्रारंभ की। उसने करवा चौथ की पूजा पूरे विधि-विधान एवं नियम से किया। आकाश में भी चंद्रदेवता अपनी आभा के साथ चम चम चम चमकती चांदनी बिखेरते हुए अपने पूर्ण आकार में मंद-मंद मानो मुस्कुरा रहे थे। विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद उसके पति जीवित होकर उठ बैठे, जैसे वे मात्र निंद्रा में सोये हुए थे। उसके जीवित हो उठने पर सभी के हर्ष का पारावार नहीं था। चंद्रदेवता की कृपा से सात भाइयों की बहन पुनः सुहागिन हो गई थी। उसके बाद वह अपने पति व सातों भाइयों के साथ सुखीपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगी।   

तभी से कहते हैं जो भी स्त्री पूरी श्रद्धा और नियम से इस व्रत को रखती है, उसे इसी प्रकार का फल प्राप्त होता है। एवं पति सहित कुटुंब का कल्याण होता है। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान में इसकी पूजा महिलाएं एक ही नियम से करती हैं, जबकि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, कश्मीर की महिलाएं इस व्रत को दूसरे ढंग से मनाती हैं। पंजाब में करवा चौथ व्रत को महिलाएं बड़ी धूमधाम से मनाती हैं। व्रत के समय टोले मोहल्ले की सारी महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर नाचगाना करती हैं। जब चंद्रमा आकाश में निकल आता है। तो उसे चलनी के पार से देखती है, फिर उक्त कथा (सात भाइयों एक बहन वाली) को सुनाकर सुनकर • अपनी पूजा संपन्न कर पति के दर्शनोपरांत पति के हाथों से अपना व्रत तोड़ती है।

error: Content is protected !!