“परहित” से बढ़कर कोई धर्म नहीं : कंवर साहब जी महाराजमन में दया प्रेम और शांति होगी तभी भक्ति कर पाओगे : कंवर साहेब जी महाराज दिनोद धाम जयवीर फोगाट 06 अक्टूबर,कहने को हम तो कह देते हैं कि परमात्मा को किसी ने नहीं देखा लेकिन हमने परमात्मा को देखा भी है और उसका संग भी किया है। हरियाणा की इस ऊसर भूमि में रूहानियत का इतना सुंदर फूल परमात्मा की रजा के बिना सम्भव ही नहीं था। इसी पावन भूमि पर स्वयं परमात्मा ने नर देह में अवतार लिया था। आसौज माह की अमावस्या को परमसंत ताराचंद जी महाराज ने इसी दिनोद की भूमि में जन्म लिया था। ताराचंद जी साक्षात कुल मालिक का ही अंश थे। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने अपने गुरु ताराचंद जी महाराज के 97वें अवतरण दिवस पर उमड़ी संगत की विशाल हाजिरी में फरमाए। पूर्ण भावुकता के साथ अपने गुरु को स्मरण करते हुए हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि परमसंत ताराचंद जी मानुष नहीं थे जो उनको मानुष मानता है वो काल का जीव है। उन्होंने कहा कि परमसंत ताराचंद जी का जीवन इस बात का जीता जागता आदर्श हैं कि किस प्रकार कष्टों से झुझते हुए भी जीवन के उत्तम मूल्यों का निर्वहन किया जा सकता है। हुजूर ताराचंद जी ने अपने आप को खाक में मिला कर इस भक्ति के गुलशन को महकाया। ये उनका ही प्रताप था कि जिस क्षेत्र में राधास्वामी नाम की उपेक्षा की जाती थी उसी नाम का डंका आज हरियाणा ही नहीं बल्कि देश विदेशों में बज रहा है। अक्षर ज्ञान भले ही उनको ना हो लेकिन वे परा विद्या के धनी थे। परा विद्या मन इंद्री बुद्धि और तीनों लोकों से ऊपर की विद्या है। उन्हें अक्षर ज्ञान बेशक ना हो लेकिन उन्हें शब्द का ज्ञान था। हुजूर महाराज जी ने कहा कि जिसे शब्द का ज्ञान हो वो तो ब्रह्मांड का ज्ञाता है क्योंकि इस सृष्टि का आधार ही शब्द है। परमसंत ताराचंद जी ना सिर्फ उच्च कोटि के सन्त थे अपितु वे उच्च कोटि के गुरुमुख भी थे। ऐसे गुरुमुख जिनकी बड़ाई स्वयं उनके गुरु सन्त रामसिंह अरमान साहब ने बार बार की। अरमान साहब ने अपने एक शब्द में हुजूर ताराचंद जी के लिए उन्होंने लिखा कि “तू आया आया आया तू जीव उभारन आया” गुरु महाराज जी ने कहा कि ताराचंद जी महाराज का दरबार सबके लिए समान था। सन्तो के दरबार में जात् पात ऊंच नीच नहीं होती। गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु का अर्थ ज्ञान है और इस परिभाषा के आधार पर हुजूर ताराचंद जी परमपुरुष सतगुरु हैं। हुजूर तारावनन्द जी स्वतः सन्त हैं। भक्ति के मर्म के लिए ना जाने वो कहाँ कहाँ गए। गुरु महाराज जी ने कहा कि कर्म का परिणाम सबको भोगना पड़ता है। लेकिन सन्त कर्मो को भी सुधारते हैं। सन्तमत इसीलिए सहज मत है क्योंकि ये पाखण्ड छुटवाते हैं। उन्होंने कहा कि अंधेरा और प्रकाश एक साथ नहीं रह सकते। सन्तो के पास वही टिक सकता है जो अपनी मति सन्तो की मति से जोड़ देता है। जो गुरु की शरण में जाकर टिक जाता है वो इस संसार को जीत लेता है। दुनिया की वस्तु हमारे हाथ नहीं आती। वो तो एक एक करके फिसलती जाती हैं लेकिन सन्तो की जिस पर दृष्टि पड़ जाती है वह दुनिया की इन चीजों से उपरामता प्राप्त करता जाता है। उन्होंने कहा कि बेटे और शिष्य को ताड़ना ही भला है क्योंकि ताड़ से ही उनके अंदर व्याप्त दोष दूर होंगे। गुरु का वचन मिथ्या नहीं जाता। सच्चे मन से आप गुरु को जैसे चाहो वैसे ही साध सकते हो। कंवर साहेब जी ने कहा कि गुरु को रिझाना खाला जी का घर नहीं है।बुल्लेशाह ने तो गुरु को रिझाने के लिए कंजरी का भेष धारण करके नाचना भी सीख लिया था। उन्होंने कहा कि ये प्रकृति का नियम है कि जो जिसको चाहता है और अगर उसका ख्याल पुख्ता है तो सारी कायनात उसके ख्याल को पूरा कराने में लग जाती है। गुरु शिष्य की अनेको परीक्षाएं लेता है। अरमान साहब ने भी परमसंत ताराचंद जी की परीक्षा ली थी। उस जमाने में अरमान साहब ने ताराचन्द जी से 2 रुपये मांग लिए। 2 रुपये तो बड़ी बात थी उनके पास तो एक कौड़ी नही थी लेकिन ताराचन्द जी ने भी ठान लिया कि गुरु की इच्छा पूरी हो। उन्होंने अपने खाना खाने की कांसे की थाली बेच दी और 2 रुपये गुरु चरणों में चढ़ा दिए। गुरु महाराज जी ने कहा कि गुरु आपके धन का भूखा नहीं। गुरु आपसे कुछ लेने के लिए नहीं बल्कि आपको माला माल करने आये हैं। सन्तो का सौदा सस्ता नहीं होता। उस सौदे का मौल नहीं है और ना उसे किसी तराजू में तौला नहीं जा सकता। सन्तमत जिंदा मत इसीलिए है कि सन्त आपके जीवनोपयोगी मूल्यों को सुदृढ़ करते हैं। सन्तो का अवतरण दिवस या जनम दिवस इसीलिए मनाया जाता है क्योंकि उनका जीवन हमारे लिए आदर्श है। गुरु की कसौटी खरी है और इस कसौटी पर कोई मरजीवा ही उतर सकता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि ऐसे महान सन्त के जन्मदिवस पर ये संकल्प ले कर जाओ कि आप उनके बताए मार्ग पर चलकर भक्ति कमाओगे। परहित को ही अपना धर्म मानोगे। परख की आंखे रखोगे। मन में दया प्रेम और शांति रखोगे। शांति मन में होगी तभी भक्ति कर पाओगे। घरों में प्यार प्रेम का वातावरण रखो। अपना व्यवहार सुधारो और अपने सामाजिक जीवन को उन्नत बनाओ। परमसंत ताराचन्द जी के अवतरण दिवस पर 200 यूनिट रक्त का दान किया गया और कोरोना से बचाव के लिए मुफ्त वैक्सीनेशन शिविर का आयोजन किया गया जिसमें सैंकड़ो लोगो को वैक्सीन का टीका लगाया गया। Post navigation “भक्ति” दया और प्रेम के बिना सम्भव नहीं : कंवर साहेब जी महाराज सरकार का अहंकार दूर करके रहेंगे किसान और मजदूर : सूबेदार सत्यवीर