गांव मोड़ी निवासी वेदप्रकाश अरुणाचल प्रदेश में माओवादियों से लोहा लेते मुठभेड़ में हुए शहीद।
देश मना रहा था 75वां स्वतंत्रता दिवस उधर अरुणाचल प्रदेश में देश की रक्षा,,,,, एक लाल और हुआ शहीद।

चरखी दादरी जयवीर फोगाट

17 अगस्त, – अरूणाचल प्रदेश में स्वतंत्रता दिवस पर माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़में मौड़ी निवासी हवलदार वेदप्रकाश शहीद हो गए। सोमवार शाम पैतृक गांव में उनकी सैन्य और राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की गई। वीर जांबाज को विदाई देने जनसैलाब उमड़ा और गांव की गलियां ‘वेदप्रकाश अमर रहे’, ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, वेदप्रकाश तेरा नाम रहेगा..’ के नारों से गूंज गईं। सैन्य और पुलिस टुकड़ी ने मातमी धुन के साथ हवाई फायर कर शहीद को सलामीदी।

परिवार से हुई बातचीत के अनुसार वेद्रपकाश (40) 22 साल पहले सेना की असम राइफल रेजीमेंट-40 में भर्ती हुए थे। सेवा काल के दौरान उनकी तैनातीअरूणाचल-प्रदेश में ही रही है। उनके ताऊ का बेटा सोमबीर भी असम राइफल में ही तैनात हैं। उन्होंने ने बताया कि रविवार सुबह वेदप्रकाश की जहां तैनातीथी, उस पोस्ट पर स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया गया था। जवानों के राष्ट्रीय ध्वज को सलाती देते ही पेट्रोलिंग टीम गश्त के लिए चली गई।

हवलदार वेदप्रकाश भी इस पेट्रोलिंग टीम के सदस्य थे। मौसम खराब होने केकारण पहले से घात लगाए बैठे माओवादियों ने पेट्रोलिंग टीम पर फायरिंग कर दी और फायरिंग के दौरान एक गोली हवलदार वेदप्रकाश की गर्दन में लगी और वो मौके पर ही शहीद हो गए। सोमवार दोपहर करीब तीन बजे शहीद का पार्थिव शरीर लेकर सैन्य टीम गांव मौड़ी लेकर पहुंची।

 शहादत की सूचना मिलते ही प्रशासनिक अधिकारी, सामाजिक, राजनैतिक सहित आसपास के गांवो से भी ग्रामीण मौड़ी पहुंचे। देर शाम वहां शहीद की अंत्येष्टि की गई। उनकी अंतिम यात्रा मेंलोगों का हुजुम उमड़ा। उनके बेटे आशिष (18) और अनुज (15) ने उन्हें मुखाग्नि  दी।

-तीन भाइयों में थे बड़े, 1998 में हुए थे भर्ती

शहीद वेदप्रकाश तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके दो छोटे भाई राकेश और रिंकू गांव में ही रहते हैं और उनका संयुक्त परिवार है। उन्होंने गांव के राजकीय स्कूल से ही बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई की और इसके बाद असम राइफल रेजीमेंट 40 में भर्ती हो गए। शहीद  वेदप्रकाश 1998 में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे, और अब वो हवलदार थे।

-पिता बोले, मान से मेरा सिर ऊंचा कर गया बेटा।

शहीद वेदप्रकाश के पिता कर्ण सिंह ने कहा कि मेरे परिवार से यह पहलीशहादत है और मेरा लाल मेरा सिर मान से ऊंचा कर गया। उन्होंने कहा किमैंने दिहाड़ी/मजदूरी कर अपने बेटों को पढ़ाया और वेदप्रकाश ने 22 सालपहले सेना में भर्ती होकर मेरी मेहनत को सार्थक कर दिया। उन्होंने कहा किबेटे के जाने का गम तो बयां नहीं कर सकता, लेकिन बेटे के देश की मिट्टीका कर्ज चुकाने पर सीना फक्र से चौड़ा है।

:-एक महीन पहले लौटे थे दो माह की छुट्टी बिताकर।

शहीद वेदप्रकाश करीब एक महीने पहले ही छुट्टी बिताकर वापिस ड्यूटी पर लौटाथा। वह दो महिने कि छुट्टी आया था। इतना ही नहीं रविवार सुबह करीब नौ बजे उन्होंने फोन पर पत्नी, बेटों, मां और भाइयों से काफी देर बातचीत भी की थी। उस दौरान उन्होंने बताया था कि पोस्ट पर तिरंगा फहराकर हमने मिठाई बांटी है और अब ड्यूटी पर पेट्रोलिंग के लिए जाना है। घर परिवार की खैरियत पूछने के बाद उन्होंने फोन रख दिया था।

-पत्नी बोली, पति की शहादत पर फक्र है, अब छोटे बेटे को तैयार करूंगी।

शहीद वेदप्रकाश की पत्नी कविता का कहना है कि उन्हें पति की शहादत पर फक्र है। उनके दो बेटे आशीष और अनुज है। उनका कहना है कि पूरा प्रयासरहेगा कि अब छोटे बेटे अनुज को तैयार कर देशसेवा के लिए सेना में भेजूं।अनुज इस समय बारहवीं कक्षा में है जबक‌ि बड़े बेटे आशीष की मानसिक हालत ठीक नहीं है और इस कारण उसे पढ़ाई भी बीच में छोड़नी पड़ी।

-जिले से 118वीं और मौड़ी से दूसरी शहादत।

दादरी जिले से हवलदार वेद्रपकाश की 118वीं शहादत है। उनसे पहले जिले के117 जाबांज अलग अलग युद्घों में अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं। वहीं,अगर मौड़ी गांव की बात करें तो यह दूसरी शहादत है। इससे पहले कारगिल युद्घ में गांव का एक वीर शहीद हो चुका है। वेदप्रकाश से पहले जिले के गांव अचीना-बास निवासी गनर भूपेंद्र सिंह ने शहादत दी थी।

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