–गुरुमुख “गुरु” की धारणा को भी बदल दें, गुरुमुख (शिष्य) पूर्ण होना चाहिए।
–धार्मिक आडम्बर से दूर रहते थे कबीर साहेब, नाम के सुमिरन से होती है मालिक की दया : हुजूर कंवर साहेब जी महाराज
–नाम के सुमिरन से होती है मालिक की दया : हुजूर साहेब
–धार्मिक आडम्बरो से दूर रहते थे कबीर साहब, सूरत शब्द योग सहज व सरल भक्ति की नींव रखी।

दिनोद धाम जयवीर फोगाट

24 जून, – सन्तमत से जुड़े जीवो के लिए आज का दिन सबसे बड़ा है क्योंकि आज ही के दिन आदि सन्त कबीर साहेब ने काल और माया के जाल में फंसी रूहों की पुकार सुनकर देह धारी थी। कबीर साहब ने धरा पर व्याप्त पाखण्डों पर करारा घात करके सूरत शब्द योग का प्रचार कर सहज व सरल भक्ति की नींव रखी। यह सत्संग विचार परम् सन्त सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने आदि सन्त कबीर साहेब की जयंती पर फरमाए। दिनोद गांव से वर्चुअल सत्संग फरमाते हुए हुजूर कंवर साहेब महाराज जी ने कहा कि कबीर साहेब जी चारो युगों में आये। वर्तमान युग में काशी में प्रगट होकर कबीर साहब ने जीव को चेताने का कार्य किया।

सन्तो के भाने (भाणे) को सन्त ही जानते हैं। ये कबीर साहेब जी की मौज ही थी कि उन्होंने अपने आप को प्रकट भी अलग तरीके से किया और उनका देह त्याग भी अलग तरीके से ही हुआ। सन्त जन्मते और मरते नहीं है। लहरतारा तालाब में एक जुलाहे के माध्यम से उन्होंने इस जगत में आना तय किया। सन्त कबीर साहेब के साथ जगत ने बड़ा भेदभाव किया। कभी जाति को लेकर तो कभी उनकी गरीबी का मजाक उड़ा कर।

कबीर साहब ने रामानन्द को गुरु बनाया। जाति पाती का इतना बोलबाला था कि कबीर साहब ने रामानंद को गुरु बनाने के लिए भी एक युक्ति का सहारा लिया। जिस समय कबीर साहब पाँच वर्ष के थे तब गुरु मर्यादा बनाए रखने के लिए लीला की। सुबह-सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की पौडि़यों के ऊपर लेट गए, जहाँ पर स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन स्नानार्थ के लिए जाया करते थे। उस दिन भी जब वे स्नान करने के लिए पंचगंगा घाट पर गए तो पौडि़यों पर कबीर साहेब लेटे हुए थे। सुबह ब्रह्ममूहूर्त के अंधेरे में स्वामी रामानन्द जी को कबीर साहेब दिखाई नहीं दिए। कबीर साहेब के सिर में रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ लग गई।कबीर साहब ने रोना शुरु कर दिया।  रामानन्द जी तेजी से झुके और देखा कि कहीं बालक को चोट तो नहीं लग गई तथा प्यार से उठाया। उसी समय रामानन्द जी के गले की कण्ठी निकल कर कबीर के गले में डल गई। रामानन्द जी ने कहा कि बेटा राम – राम बोलो। राम के नाम से दुःख दूर हो जाते हैं। 

उन्होंने कबीर साहेब के सिर पर हाथ रखा। उसके बाद जब काशी के पंडितो ने जब कबीर साहब को सत्संग करने को यह कह रोका कि तेरा कोई गुरु नहीं है फिर तुझे सत्संग करने का अधिकार नहीं है। कबीर साहब ने कहा कि मेरा गुरु रामानन्द जी है। पंडित रामानन्द जी के पास गए और नाराज होकर कहने लगे कि आपने नीची जाति के कबीर को कैसे शिष्य मान लिया। रामानन्द जी ने कहा कि मैंने तो किसी कबीर को शिष्य नहीं बनाया। कबीर साहब को बुलाया गया तो उन्होंने काशी के गंगाघाट की पौड़ीयो का वृतांत सुनाया तो रामानन्द ने स्वीकार किया कि हां ये तो मेरा शिष्य है। 

हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि गुरुमुख गुरु की धारणा भी बदल देता है लेकिन शिष्य पूर्ण होना चाहिए। कबीर साहब ने भी यही किया था जब एक बार उनके गुरु रामानन्द जी ने अपने पिता के श्राद्ध हेतु खीर बनाने के लिए गाय का दूध मंगवाया तो कबीर साहब दूध लेने चले गए लेकिन वापिस नहीं आये। उन्हें ढूंढते हुए गुरु रामानन्द ने देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बैठ कर उसे दुहने की कोशिश कर रहा है। यह देख रामानंद जी को बड़ा गुस्सा आया और कबीर को पागल कहते हुए कहा कि कभी मरी हुई गाय भी दूध दिया करती है तो कबीर साहब ने कहा जब आपके मरे हुए पिता श्राद्ध की खीर खा सकते हैं मरी हुई गाय दुध क्यों नहीं दे सकती। रामानंद जी ने कबीर साहब को गले लगा लिया। उन्होंने कहा कि कबीर साहब ने हर पाखण्ड पर प्रहार किया। कितनी ही बार इसके लिए तत्कालीन शासकों ने और दूसरे धनवान बलवानों ने उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की। उन्हें अनेकों यातनाये दी गई। मरवाने की कोशिश की गई लेकिन कबीर साहब का बाल भी बांका नहीं हुआ। गुरु महाराज जी ने कहा कि कबीर साहब ने काशी के एक प्रकांड पंडित पदमनाथ के अहंकार को भी तोड़ा।पदमनाथ उनसे शास्त्राथ हेतु आय तो कबीर साहब ने कहा कि मैंने ना तो कोई कलम हाथ में ली और ना ही कभी कागज देखा तो मैं शास्त्रार्थ करके क्या करूँगा। पदमनाथ जिद्द करने लगा तो कबीर साहब ने एक ही बात पूछी कि पहले आप ये बताओ कि आप सीख के पढ़े हो या पढ़ कर सीखे हो। पदमनाथ का सारा अहंकार जाता रहा और उसने कबीर साहब के पैर पकड़ लिए। इसी तरह धर्मदास बहुत बड़ा धनवान था कबीर साहब ने उसका सारा धन दान में दिलवा कर उसको भी अपना शिष्य बनाया। 

हुजूर महाराज जी ने कहा कि सबसे बड़ा नाम है। नाम के सुमिरन से सारे पाखण्ड छूट जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु तो आपके अंतर में निवास करते हैं। बाहर को त्याग कर अपने अंतर में उतरो। कबीर साहब ने इस जगत की एक भी भाव, वस्तु या घटनाये नहीं छोड़ी जिसपर उन्होंने बानी ना लिखी हो। हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि कुल मालिक अवतार कबीर साहब ने जीव को अपने अंतर में झांकने को कहा और अपनी अनेको बाणियो (वाणीयों) में उन्होंने इंसान के शरीर में ही परमात्मा का वास बताया और परमात्मा की भक्ति का सहज स्वरूप बताया। उन्होंने कहा कि आदि अनादि की महिमा नहीं गाई जा सकती फिर भी हम कबीर साहब के बताए रास्ते पर चलकर हम पाखण्डों से छूट कर असल भक्ति का मार्ग अपना सकते हैं।

error: Content is protected !!