ऋण चुकाना है मुश्किल गुरु का : हुजूर कंवर साहेब जी महाराज

–जग को बिसार परमात्मा का ध्यान कर : हुजूर कंवर साहेब जी महाराज
–गुरु की शरण में सुख से कटत दिन रैन : कंवर साहेब जी महाराज
–सुध ले सतगुरु सिमरन की : कंवर साहेब जी महाराज

दिनोद धाम जयवीर फोगाट

12 जून,दिनोद धाम स्थित राधास्वामी आश्रम में वर्चुअल सत्संग करते सन्त कंवर साहेब जी ने कहा कि :-सन्तो की बानी मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि ये जीव को हर मुसीबत में युक्ति सुझाने वाली होती है। जब मन की किताब के पन्ने पलटोगे तब सन्तो की वाणी की कद्र जानोगे। सन्तो की बानी को गौर से सुनो। एक ही बानी को हजार बार सुनोगे तो उसके हजार ही अर्थ निकलेंगे। 

परम् सन्त सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद राधास्वामी आश्रम से वर्चुअल सत्संग फरमाते हुए कहा कि :-सतगुरु हमेशा आपके अंग संग रहते हैं। हरि आपके हॄदय में ही है लेकिन हम कस्तूरी मृग की भांति उसी हरि रूपी कस्तूरी को पाने के लिए भटकते फिरते हैं। इंसान मृग तृष्ना का शिकार है। जब तक सब्र संतोष नहीं आएगा तब तक शांति नहीं मिल सकती। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि परमात्मा सर्वदेशी और सर्व दयाल है इसीलिए हर कोई उसी की चाहना करता है, लेकिन हैरानी की बात है कि जो चाह हम अंतर की तलाशी से खत्म हो सकते हैं उनका इलाज हम उस दुनिया में खोजते हैं, जो उन दुखो की जनक है। गुरु महाराज जी ने कहा कि जिनको सतगुरु की शरण मिल जाती है उसके सारे दुख बिसर जाते हैं। दुःख उनके लिए होते हैं जो बिना विवेक का इस्तेमाल किये इस दुनिया को अपना मान बैठे हैं। लेकिन यहां पर कौन टीका है, “ना भीम जैसे बलि रहे, ना अर्जुन जैसे धनुर्धर, ना श्री राम रहे, ना श्री कृष्ण” फिर किस बात का मलाल। आज हम देखा देखी की भक्ति करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक विरह तड़प नहीं होगी तब तक कितने ही पूर्वजो के गीत गा ले हम उन जैसे नहीं बन सकते। हम मन के गुनाऊनो में फंसे बैठे हैं। बनाने के लिए बाते तो बहुत हैं लेकिन करता कौन है। बाहर दिखावा कुछ और है लेकिन अंदर में कुछ और है। उन्होंने कहा कि आज हम गुरु के आगे तो चालाकी करते हैं फिर पार कौन उतारे। 

प्रसंग सुनाते हुए कहा कि :-गुरु महाराज जी ने गुजरात की सन्त हृदया जना बाई का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भक्ति मन से की जाती है। दिखावे की भक्ति से आप औरो को नहीं खुद को ही धोखा देते हो। उन्होंने कहा कि जना बाई ने दिखा दिया कि भक्ति में जाति पाती ऊंच नीच नहीं होती बल्कि “भक्ति तो प्रेम, प्रीत” के पायो पर टिकी हैं। जना बाई को उसके मां बाप एक पुजारी के पास छोड़ गए। पुजारी के घर जना बाई सारा काम करती लेकिन उसकी जुबान पर पांडुरंग बिठला पांडुरंग बिठला ही रहता। बिठला जो कृष्ण का ही रूप था। कहते हैं कि जना बाई की भक्ति इतनी दृढ़ थी कि “श्री कृष्ण” ही उनके सारे काम करते थे, उससे बात करते थे और उसके साथ उठते बैठते चलते थे। कबीर साहब ज्ञान देव और नामदेव के साथ जब जना बाई को मिलने पहुंचे तो जना बाई उपलों को लेकर दूसरी औरत से झगड़ रही थी। कबीर साहब ने कहा कि जना बाई किस बात का झगड़ा है कौन तय करेगा कि कौन सा उपला किस का है। जना बाई ने कहा कि मेरे हर उपले से आवाज आएगी बिठला – बिठला। कहते कि कबीर साहब ने जब उपले उठाये तो सचमुच परमात्मा के नाम का पुकारा आया। मालिक की भक्ति करने के कारण ही आज हम “दादू, पलटू, रविदास, नानक, कबीर” को युगों – युगों से जानते हैं।        

  गुरु महाराज जी ने कहा जैसे रोटी – रोटी कहने से भूख नहीं मिटती वैसे ही भक्ति – भक्ति कहने से भक्ति नहीं होती। भक्ति के लिए तो करनी, करनी पड़ेगी। उसके लिए गुरु को “हाजिर, नाजिर” मानना पड़ेगा। गुरु के वचन को सर पर धारण करना पड़ेगा। सतगुरु आपके कर्म को आसानी से कटवायेगा। जो गुरु से बिछुड़ी हुई रूह हैं उनको दुःख ही दुःख है, लेकिन जो सतगुरु की शरणाई में है उसको कोई दुख नहीं।

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