सतगुरु द्वारा बताए रास्ते पर चलकर ही हम, परमात्म रूपी रस का आनन्द ले सकते हैं। : हुजूर कंवर साहेब

दिनोद धाम जयवीर फोगाट

01 जून,हम छोटी छोटी बातों का तो ब्रह्म मुहूर्त ढूंढते है लेकिन भक्ति के लिए कोई समय ही नहीं निकालते। प्रभु भक्ति में बिताया हर पल शुभ है। सबका सहाई परमात्मा है और हम उसी को याद नहीं करते। याद भी करते हैं तो तब जब दुख आ जाता है। अगर सुख में हम परमात्मा को याद करले तो दुख आएगा ही नहीं। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि एक गृहस्थी के लिये तो यही भक्ति है कि सच्चा और अच्छा आचरण करे। प्यार प्रेम प्रीत रखो। बिना प्रीत के दया सम्भव ही नहीं है। जब घर मे सदाचार की बात होंगी लज्जा होगी तो संस्कार भी होंगे। उन्होंने कहा कि जीवन मे घटने वाली अनेक घटनाओ से इंसान सीखता है। ये जीवन की सहज प्रक्रिया है। ये सीखना तभी फलदायी है जब विवेक और सूझ के साथ हम अपने अनुभवों का इस्तेमाल करें।                                                           

गुरु महाराज जी ने कहा कि आज कितने मां बाप यह शिकायत करते हैं कि हमारा लड़का या लड़की पथभृष्ट हो गया है। कितने लोग ऐसे हैं जो भूत प्रेत का बहाना बना कर अपनी जिम्मेवारी से बचते हैं। समय रहते जो मां बाप अपने बच्चों को टोकते नहीं है। उन्हें गलत बातो की छूट देते हैं। जब पानी सिर से गुजर जाता है तो हम पछताते हैं। मोह का बंधन ही हमारी सन्तान को आजादी दिलाता है जिसके कारण बच्चा कुराह चलता है। आज घर घर की यही समस्या है। इसका एकमात्र हल यही है कि हम अपने बच्चों को प्रारंभ से अच्छी शिक्षाएं दे। कुछ समय पहले तक हर घर में बच्चे अपने माता पिता से या बड़े बुजुर्गों से प्रेरक कहानियां या धार्मिक वार्ता करके सोते थे लेकिन आज ना तो कोई दादी कहानी सुनाती मिलेगी ना ही बच्चे कहानी सुनते मिलेंगे।                                           

  हुजूर साहेब ने फरमाया कि कलयुग का समय है। नेकी करने वाले पर लोग हंसते हैं लेकिन जिसके आचरण में ही दया धर्म नेकी आ गई तो वह किसी की परवाह नहीं करता। इस जगत में जब हम आये थे तो हंस रूप थे। किसी प्रकार की मिलोनी नहीं थी लेकिन हमने कर्मो की आजादी के चलते अनेको दाग इस जीवन रूपी चुनरी पर चढ़ा लिए है। ये मैल सतगुरु रूपी धोबी ही धो सकता है। सन्तो के पास सत्संग रूपी भठी है और नाम रुपी साबुन है। वक़्त गुरु प्रगट ही इसलिए होते हैं कि जीवो को चेता कर उन्हें जीवन का असल लक्ष्य बताना।                       

 उन्होंने कहा कि हम दुर्गुणों के ही दबे रहते हैं। एक प्रसंग सुनाते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि दो चीटियां थी जो एक मिश्री के पहाड़ पर और दूसरी नमक के पहाड़ पर रहती थी। मिश्री वाली कीड़ी नमक वाली कीड़ी के पास आई और उससे अपने पास आने को कहा। नमक वाली कीड़ी जब मिश्री वाली कीड़ी के पास आई तो उसने कहा कि ले मीठी मिश्री खा। नमक वाली कीड़ी ने मिश्री खाई और कहा की मीठी कहाँ ये तो नमक जैसी ही है। मिश्री वाली कीड़ी ने कहा कि पहले अपने मुँह से नमक को बाहर निकालो। जब उसने ऐसा किया तो बोली कि अरे वाह इतनी मीठी मिश्री। गुरु महाराज जी ने कहा कि इंसान के साथ भी यही हो रहा है। विषय विकारों में फंस कर हम भक्ति रूपी रस ले नहीं पा रहे हैं।  पहले अपने अंतर के विषयों को थूको फिर आपको परमात्म रस का आनन्द आएगा।

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