—-आत्मज्ञान के बिना कोई ज्ञान काम नहीं आएगा : हुजूर कँवर साहेब जी
—-भक्ति में स्वार्थ और अभिमान काम नहीं देते,भक्ति में तो दीनता और आधीनता काम आती है : हुजूर कँवर साहेब जी
—-“प्रेम, प्रीत, और प्रतीत” के बिना आपकी फरियाद नहीं सुनी जाएगी : हुजूर कँवर साहेब जी

दिनोद धाम जयवीर फोगाट,

27 मई, – अगर आपकी इच्छा शक्ति दृढ़ है तो आप के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। सम्बन्ध रखो तो केवल परमात्मा से क्योंकि बाकी सम्बंध आपको बन्धनों में बांधते हैं। आपके अपने घट रूपी घर में ही बड़ा भारी झगड़ा चल रहा है। ये झगड़ा नकारात्मकता और सकारात्मकता का है। यह वाणी परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम से जारी वर्चुअल सत्संग में फ़रमाई।  

                             

  हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि सतगुरु दाता है, और शिष्य भिक्षुक है। इस स्थूल देह में जो फरियाद शिष्य अपने सतगुरु से करता है वास्तव में ये पुकार हमारी सुरत शब्द से करती है। असल फरियाद विषयों से छुटकारा पाकर परमात्मा के चरणों में स्थान पाने की है। लेकिन सांसारिक लोग सतगुरु के चरणों में जाकर भी सांसारिक वस्तुओ की ही चाहना करते हैं। गुरु महाराज जी ने बताया कि जो भक्ति के मार्ग को जानते हैं कि वे फरियाद करना भी जानते हैं। ये फरियाद सतगुरु से की जाती है। भक्ति के मर्म को जानने वाले समझते हैं कि जिस दुनिया में हम देह धार कर आये है वास्तव में ये दुनिया हमारी नहीं है। जीव की दुनिया तो वो है जहां ना आकाश है ना तारा ना सूरज है ना चाँद है। आत्मा ही परमात्मा है। उन्होंनेे फ़रमाया कि जैसे एक बूंद सागर से जुदा होकर जिस चीज में मिली वो उसके गुण धारण कर बैठी। कीच में गिरी तो कीच हो गई जैसी सीप में गिरी तो मोती हो गयी। इसी प्रकार हमारी आत्मा है तो परमात्मा की ही अंश लेकिन ये जिस ख्याल में ढली वैसी ही हो गयी। सन्त सतगुरु हमें बिछड़े हुए देश का पता बताते हैं। सन्त सतगुरु परमात्मा का हरकारा है जो मन के फेर में हारी हुई आत्मा को उसके असल गुण याद दिला कर उसे पुनः अपने निज देश में लौटने का हेला देते हैं।     ‌                                      

  गुरु महाराज जी ने फरमाया कि मन मरता नहीं है। मन अगर मर गया तो कुछ बचेगा ही नहीं। सन्तो ने यही हेला मारा है कि ना मन मरता है ना माया लेकिन मन को और माया को काबू में किया जा सकता है। मन काबू में आता है गुरु की अधिनी से। जैसे जहाज का पक्षी उड़कर वापिस जहाज पर ही आता है क्योंकि उसके पास कोई और विकल्प नहीं है वैसे ही हमारा मन भी बार बार भटकेगा लेकिन आएगा वापस ही। मन को जब सतगुरु के अधीन कर देंगे तो उसके पास भी भटकने के और विकल्प नहीं रहेंगे।              

   उन्होंने एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक महात्मा काफी वर्षो तक साधना में बैठ कर जब उठा तो उसके मन में जलेबी खाने का ख्याल उठा। महात्मा ज्ञानी था विवेकी था। उसने विचार किया कि इतने वर्ष तप साधना करके तूने मन को काबू किया था लेकिन आज इसमें जलेबी का विचार क्यों आया। उसने मन को शिक्षा देने के लिए लकड़ियां बेच कर उन पैसो से जलेबी खरीदी और उन्हें खाने लगा। दो चार जलेबी से जब मन भर गया तो मन ने खाने से इनकार किया लेकिन महात्मा ने कहा कि रे मन तूने मेरे इतने सालों के तप को धता कर दिया अब तो और खा। उसने और जलेबी खाई तो मन ने उल्टी की। महात्मा उल्टी को उठा कर खाता है और कहता है कि कल को तू मुझे फिर परेशान करेगा इसलिए आज तेरी सारी ऐंठ निकाल देता हूं। गुरु महाराज जी ने कहा कि महात्मा जानते हैं कि मन को कैसे काबू में किया जा सकता है। इसीलिए आपको बार बार चेतावनी दी जाती है कि किसी पूर्ण सतगुरु की खोज कर अपने मन को उन्हें सौंप दो। गुरु आपके मन को साध देगा। गुरु वचन को मन्त्र मान कर उसे आत्मसात कर लो।                      

   हुजूर महाराज जी ने कहा कि मन में बुरे विचार भर रखे है तो गुरु के वचन कहाँ समायेंगे। उन्होंने कहा कि इस जगत में सकल पदार्थ हैं लेकिन कर्म हीनता के कारण हम उन्हें ढंढ नहीं पाते हैं। सम्मति और कुमति में से एक ही आपके अंदर रहेगी। सतगुरु को बेवकूफ समझते हो। गुरु को ऊपर ऊपर ही गाता है उसको मन के अंदर नही आने देता तो गुण कहां से आएंगे। उन्होंने कहा कि पहले स्वयं में योग्यता लाओ फिर और कि आशा करो। भक्ति में स्वार्थ और अभिमान काम नहीं देते। भक्ति में तो दीनता और आधीनता काम आती है। कोई आप को आपकी बुराई दिखाए तो उसका शुक्रिया करो। जुबान से मीठा बोलो, तन से सेवा करो और धन से दान करो। प्रेम प्रीत और प्रतीत के बिना आपकी फरियाद नहीं सुनी जाएगी। आत्मज्ञान के बिना कोई ज्ञान काम नहीं आएगा। शरीर हमारा बाम्बी है और मन सांप। बाम्बी को पीटने से कोई लाभ नहीं पीटो तो सांप को पीटो। कथनी नहीं करनी पर जोर दो। सतगुरु को सब बल हार कर।

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