लैंगिक असमानता का दंश झेल रही हैं आज भी महिलाएं

कोरोना काल में भी महिलाओं को करना पड़ा है रोजगार के लिए संघर्ष महिला सशक्तिकरण का भी नहीं दिखाई दे रहा है असर

गुरुग्राम, 7 अप्रैल (अशोक): भारतीय संविधान में उल्लेख किया गया है कि बिना लिंग भेद के रोजगार प्राप्त करने का अधिकार है। यानि कि महिलाएं व पुरुष समान रुप से रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। श्रम बाजार के पौरुषीकरण ने यह झूठ स्थापित कर दिया है कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी पुरुषों की भागीदारी से ही हो सकती है। कोरोना काल में भी महिलाएं भी घर से नौकरी तक कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं।

कामकाजी महिलाएं काम व वेतन के लिए संघर्ष करती आ रही हैं, लेकिन उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कमतर आंका जा रहा है। महिलाओं पर घरेलू जिम्मेदारियों के बोझ के साथ-साथ नौकरियों पर जाने का भी है। यह समस्या हमारे देश के ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य देशों में भी है। वहां पर भी महिलाओं को रोजगार के क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ रहा है। जानकारों का कहना है कि जब सामान्य परिस्थितियों में भी महिलाओं के लिए रोजगार प्राप्त करना पुरुषों की तुलना में कठिन होता है, तब अर्थव्यवस्था की बदहाली के दौर में महिलाओं के लिए रोजगार प्राप्त करना कैसे संभव होगा। कोरोना काल में पुरुषों के साथ-साथ महिला कर्मियों का भी रोजगार चला गया है। महिलाओं को अधिकांशत: वस्त्र उद्योग से जुड़े व्यवसायों में ही नौकरियां मिल पा रही हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के समान उच्च पदों पर भी आसीन हैं, लेकिन यह संख्या कम ही है।

संविधान में महिलाओं व पुरुषों को बराबरी का अधिकार दिया गया है, लेकिन धरातल पर ऐसा होता दिख नहीं रहा है। महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए हर क्षेत्र में बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। कोरोना काल के बाद महिलाओं को उनका पूर्व वाला रोजगार भी नहीं मिल रहा है, जिससे उनको घर चलाने मे भी बड़ी परेशानियों का सामना करना पड ऱहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि बढ़ती हुई महंगाई के इस दौर में यदि पति-पत्नी रोजगार पर हैं तो तभी घर का खर्च आसानी से चल सकता है। महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती है और उन्हें कम उत्पादकता वाले रोजगार ही मिल पाते हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि श्रम बाजार में महिला अवमूल्यन इस कारण भी होता है, क्योंकि उनके अनुभव, शिक्षा व कुशलता को कम आंका जाता है। सरकारें महिला सशक्तिकरण के नाम पर कुछ न कुछ करती रहती हैं, लेकिन महिलाओं की स्थिति कोई विशेष अच्छी नहीं बन पाई है।

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