-कमलेश भारतीय कभी एक नाटक का शीर्षक था-अपहरण भाईचारे का । अब चुनाव का शीर्षक दे सकते हैं -अपहरण ईवीएम का । पहले जब ईवीएम नहीं थी तब दूरदराज के मतदान केंद्र लूटे जाने की खबरें आती थीं या मतदान केंद्र पर कब्जे के किस्से सुनने को मिलते थे । अब चुनाव आधुनिक ईवीएम के माध्यम से होने लगा तो तरीके और किस्से भी बदल गये । पहले असम में भाजपा के एक प्रत्याशी की गाड़ी में ईवीएम मिली तो हाय तौबा मची । हंगामा हुआ । निर्वाचन आयोग ने तुरत फुरत चुनाव रद्द कर देने में ही भलाई समझी । फिर एक ऐसी ईवीएम भी मिली जिसमें 171वोट पोल हो गये जबकि उस मतदान केंद्र के कुल वोट ही 71 थे । अब बताइए किसका कमाल है यह ? ईवीएम की चार मशीनें तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के घर आराम फरमाती पाई गयीं । चुनाव की भागमभाग में बेचारी बुरी तरह थक गयीं तो नेता के घर के आरामदायक माहौल में दी घड़ी आराम करने पहुंच गयीं लेकिन बाहर निर्वाचन आयोग के स्टिकर वाली गाड़ी देखकर ग्रामीणों को शक हुआ और उन्होंने प्रदर्शन शुरू कर दिया । इस तरह आप किसे दोष देंगे ? तृणमूल कांग्रेस को या भाजपा को ? दोनो दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे । कोई किसी से कम नहीं । शायद हर पार्टी कह रही है कि हम किसी से कम नहीं । सब पार्टियां ईवीएम का अपहरण खुलेआम कर रही हैं और इसके अपहरण से लोकतंत्र का अपहरण तो साथ ही साथ हो जाता है । इसलिए सभी हारने वाले दल ईवीएम को दोष देते हैं और बैलेट से चुनाव की पुरानी प्रक्रिया शुरू करवाने की मांग करते रहते हैं । हारे का सहारा ईवीएम हो जाती है । चुनाव प्रक्रिया के दौरान हर पार्टी निर्वाचन आयोग को शिकायतों का अम्बार लगा देती है । ममता बनर्जी ने तो एक मतदान केंद्र पर धरना ही दे दिया लेकिन निर्वाचन आयोग को उनकी शिकायत निराधार ही लगी । कोई कार्रवाई कभी किसी पर हुई हो , ऐसे कम ही उदाहरण सामने आते हैं । सभी पार्टियां अपनी सामर्थ्यानुसार ईबीएम ही नहीं अन्य तरीकों से चुनाव को प्रभावित करने में पूरा ज़ोर लगा देती है लेकिन आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप दूसरी पार्टियों पर लगातीं निर्वाचन आयोग पहुंच जाती हैं बल्कि आजकल तो दिल्ली में हर पार्टी के नेताओं का एक शिष्टमंडल पहले से ही निर्वाचन आयोग के पास शिकायत करने के लिए तैयार बैठा मिलता है । पर पहले हर पार्टी ईवीएम का अपहरण तो बंद करे , फिर दूसरी पार्टी पर आरोप लगाये । जहां तो यही कहना पड़ेगा कि छाज तो बोले, छाननी क्या बोले जिसमें छेद ही छेद ,,,, Post navigation लैंगिक असमानता का दंश झेल रही हैं आज भी महिलाएं इतनी सी बात, मैं धर्म संकट में फंस गया था