इतनी सी बात, मैं धर्म संकट में फंस गया था

कमलेश भारतीय

क्या करूं, क्या न करूं ?
सौ सौ के नोट लूट के माल की तरह कुछ सोफे पर तो कुछ कालीन पर बिना बुलाये मेहमान की तरह बेकद्रे से पड़े हुए थे । इन्हें मेरे गांव का एक किसान यहां फेंक गया था । मेरे लाख मना करने के बावजूद वह नहीं माना था और जैसे उसकी खुशी कमरे में बरस गयी थी, नोटों के रूप में । वह नोटों की बरखा मेरे लिए नहीं , बल्कि उस अधिकारी के लिए थी जिसने मेरे कहने पर उस किसान का बरसों से अटका हुआ काम कर दिया था । उस अधिकारी से मेरी अच्छी जान पहचान थी । इसकी खबर मेरे गांव के किसान को जाने कहां से लग गयी थी और उसने मेरे यहां धरना दे दिया था कि मेरा काम करवाओ और यह आग्रह करना पड़ा कि इस गरीब की सुनवाई की जाये ।

मैं समझता था कि मेरा काम खत्म हो गया प, यह उस काम काज का एक हिस्सा मात्र या कहिए पार्ट वन था । अब इन फेंके गये नोटों का क्या करूं? मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था । अधिकारी से मेरी अच्छी जान पहचान थी और उसने मेरे कहे का मान रख लिया था उसके बदले में नोट दिखाने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी । किसी के अहसान को नोटों में बदल देने की कला में मैं एकदम कोरा था । मैं किस मुंह से जाओ, ऐसी बात कहूंगा ? वे क्या रुख अपनायेंगे? सारी पहचान एक तरफ फेंक, बेरुखी से कहीं घर से बाहर न कर दें ? प, किसी के नाम की रकम को मैं अपने पास कैसे रख सकता था ? मुझे क्या हक था उन नोटों को अपनी जेब में रखने का ? किसी अपराधी की तरह मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था । क्रोध नहीं नोट उसे उठा ले जाने को कह दिया ? नहीं कह सके तो अब भुगतो ।

सामने पड़े नोट नोट न लग कर मुझे भारी पत्थर लग रहे थे । मैंने भारी मन से नोटों को समेटा और अधिकारी के घर पहुंच गया । खुशी खुशी उन्होंने मेरा स्वागत् किया । पर मैं शर्म से नहा रहा था । अपने आप में सिमटा, सकुचाता जा रहा था । प्रतिपल यही गूंज रहा था कि कैसे कहूं ? किस मुंह से कहूं ? क्या सोचेंगे मेरे बारे में ?

शायद मेरी हड़बड़ाहट को अनुभवी अधिकारी की पैनी निगाहों ने भांप लिया था । और कारण पूछ ही लिया । मुझसे संभाला न जा रहा था नोटों का भार । और सारा किस्सा बयान कर कहा कि वह किसान ये नोट आपके लिए मेरे घर फेंक गया है । मैं समझ नहीं पा रहा कि इनका क्या करूं ? आपसे कैसे कहूं ?

अधिकारी ने जोरदार ठहाका लगाया औ, मेरे कंधे को थपथपाते हुए कहा -बस । इतनी सी बात ? और इतना बड़ा बोझ ? न मेरे भाई । फिक्र मत करो । जैसे वह किसान आपके यहां ये नोट फेंक गया है वैसे ही आप भी मेरे यहां फेंक दो । बस ।

मैं कभी नोटों को और कभी अधिकारी को देख रहा था । नोट निकालने पर भी बोझ ज्यों का त्यों बना रहा । बना हुआ है आज तक ।

You May Have Missed

error: Content is protected !!