– “सबकुछ बाबू ही करेंगे? आईएस है तो क्या जरुरी है सारे काम वही करेगा? 
– सबके पकोड़े लगने के बाद अब इनका नंबर है?
– और जब सीढ़ियों पर सजी अदालत …. बुढ़िया की पेंशन तत्काल प्रभाव से लागू की । 
—  ‘अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है।
— चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए।

अशोक कुमार कौशिक 

प्रधानमंत्री कल निजीकरण की वकालत करते करते देश के “बाबुओं” पर बरस पड़े! उन्होंने देश के तमाम अफसरों को आड़े हाथों लेते हुए कहा- “सबकुछ बाबू ही करेंगे?  आईएस है तो क्या जरुरी है सारे काम वही करेगा? IAS बन गया मतलब वो फ़र्टिलाइज़र का कारखाना भी चलाएगा।  IAS हो गया तो वो केमिकल का कारखाना भी चलाएगा।  IAS हो गया वो हवाई जहाज भी चलाएगा।  ये कौन सी बड़ी ताकत बनाकर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश देकर हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी देश के हैं तो हमारे नौजवान भी तो देश के हैं। हम हमारे नौजवानों को जितना ज्यादा अवसर देंगे, उतना ही ज्यादा लाभ होने वाला है।”

कौन हैं ये “बाबू”?? कहाँ से आते हैं ये लोग? आइये जानते हैं। संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) हर साल All India लेवल पर एक परीक्षा आयोजित करती है और देश के हजारों सर्वश्रेष्ठ नौजवानों को चुनती है।

चयन प्रक्रिया कितनी आसान होती है, इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा लीजिये कि अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख़ खान और एपीजे कलाम तक इस चयन प्रक्रिया को पार नहीं कर पाए थे।

फाइनल रिजल्ट आने के बाद ये नौजवान देश के सर्वोत्तम सुविधाओं से लैस प्रशिक्षण संस्थानों में भेज दिए जाते हैं। वहाँ सर्वोत्तम प्रशिक्षकों द्वारा, सर्वोत्तम माहौल में इन्हें प्रशिक्षित किया जाता है।

प्रशिक्षण पूरा होने के बाद देशसेवा की शपथ देकर इन्हें देश के कोने कोने में भेज दिया जाता है। करोड़ों युवाओं के मार्गदर्शक ये नौजवान, नयी चुनौतियों से रूबरू होते हुए दिन ब दिन अपनी प्रतिभा को निखारते हैं।

इनके प्रशिक्षण, रहने,खाने, चलने फिरने पर आने वाला हर खर्च देश का करदाता उठाता है। उसके बदले में ये नौजवान अपने अनुभव तथा सूझबूझ से देश की हर समस्या को हल करने का प्रयास करते हैं!

केंद्र व राज्य सरकार द्वारा पारित कानूनों व योजनाओं को जन जन तक पहुंचाना, आंकड़ों को सूचीबद्ध कर राज्य व केंद्र को योजनाओं का खाका तैयार करने में मदद करना, इलाके में कानून-व्यवस्था बहाल रखना, हर साल लाखों मामलों का निपटारा करना व समाज में सौहार्द्र तथा भाईचारा बनाये रखना इनकी प्रमुख जिम्मेदारी है।

आपात स्थितियों में देश का हर नागरिक इनके निर्णय की प्रतीक्षा करता है। आम आदमी इनसे उच्च स्तर की ईमानदारी तथा कर्तव्यनिष्ठा की अपेक्षा करता है। विद्वत्ता तथा निर्णय क्षमता से लबरेज ये नौजवान UPSC के गौरवपूर्ण इतिहास में चार चाँद लगाते हैं। सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी देश का परचम लहरा कर आते हैं।

इस महकमे की देखरेख और नियंत्रण सीधे देश के गृह-मंत्रालय के पास होती है। ….और गृह मंत्रालय किसके पास है? खैर… ये नौजवान लाखों में एक होते हैं। फिर प्रधान को क्यों जरूरत पड़ी इन “बाबुओं” को underestimate करने की?

विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस- एक मजबूत लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं। विधायिका (कानून बनाने वाले) ये खुद हैं! न्यायपालिका और प्रेस का हाल हम सबको मालूम है। अब बच गयी कार्यपालिका (कानून को लागू करवाने वाले)। …..यानी “बाबू” लोग!!

– सबके पकोड़े लगने के बाद अब इनका नंबर है।

मैं कई बार कह चुका हूँ कि मोदीजी कोई बात जल्दी नहीं भूलते। आपको बस्तर का वो आईएएस अफसर याद है, जिसने मोदी जी को रिसीव करते वक्त आँखों पर Rayban का चश्मा पहन रखा था? ड्रेस कोड का हवाला देते हुए उस कलेक्टर को तलब कर लिया गया था। बाद में उसने अपनी सफाई भी दी थी। लेकिन ये बात मोदीजी को चुभ गयी । इस चुभन का परिणाम देर सवेर आना ही था। …और तकरीबन चार साल बाद वो सवेर कल आ गयी।

UPSC में लैटरल एंट्री (पिछले दरवाजे से घुसाना) इसका प्रमाण है, जहाँ इन काबिल और आंख में आंख डालकर बात करने वाले नौजवानों की जगह पूंछ हिलाने वाले टट्टुओं को अनुबंधित किया जायेगा और वे टट्टू वही करेंगे जो सरकार इनसे करवाना चाहेगी।

याद रहे! आज अगर ये अपने मकसद में कामयाब हो गए तो दूर दराज के आम लोगों की कोई नहीं सुनेगा। क्योंकि देश के सिरमौर जम्मू और कश्मीर को पिछले ढाई साल नेता और टट्टू नहीं, बल्कि UPSC के यही होनहार “बाबू” चला रहे हैं। चाहे वो DM हो, SP हो या सेना का एक कर्नल!! सबकी जड़ एक ही है- UPSC!!!

 बाबुओं के हाथ में देश…. दूसरा पहलू 

अदालत की कार्यवाही शुरू की जाय!!!

राज्य -तेलंगाना जिला-भुपलपल्ली स्थान -जिला मुख्यालय

डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अभी अभी दफ्तर पहुंचे हैं। मजिस्ट्रेट साहब गाड़ी से उतरकर जो सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, उन्हीं सीढ़ियों पर एक बुढ़िया हाथ जोड़े बैठी है। DM साहब ठिठक जाते हैं । अर्दली से कुछ पूछते हैं।अर्दली के पास कोई अपडेट नहीं है। वे बुढ़िया के बगल में उन्ही सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं।

DM जहाँ बैठ गए, समझो वही अदालत शुरू हो गयी।अदालत सज गयी और वही के वही कार्यवाही शुरू कर दी गयी। फरियादी बुढ़िया की पेंशन दो सालों से नहीं मिल रही। मजिस्ट्रेट साहब कागजात मांगते हैं। बुढ़िया एक एक कर सारे कागजात दे देती है।

और साथ में देती है….ढेर सारी शिकायतें अफसरों -बाबुओं की शिकायतें। मजिस्ट्रेट ने देखा कागजात पूरे हैं। बुढ़िया को आश्वासन दिया गया कि वे ठहरें । उनका उनका काम आज ही होगा। मजिस्ट्रेट ने सम्बंधित अफसर को तुरत हाजिर होने का फरमान सुनाया

अफसर अदालत में हाजिर हुआ। उन्ही सीढ़ियों पर सजी अदालत में।….और बुढ़िया की पेंशन तत्काल प्रभाव से लागू की गयी। इसके साथ ही अदालत की कार्यवाही खत्म हुई। यह सुखद पहलू है हमारे देश के बाबुओं के हाथ में देश का।

– बाबुओं के हाथ में देश…. तीसरा पहलू….न्यायधीश का दंड

अमेरिका में एक पंद्रह साल का लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया।
जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, “तुमने क्या सचमुच कुछ चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट”? लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया। ;- हाँ’।

जज,:- ‘क्यों ?’ लड़का,:- मुझे ज़रूरत थी। जज:- ‘खरीद लेते। लड़का:- ‘पैसे नहीं थे। ‘जज:- घर वालों से ले लेते।’ लड़का:- ‘घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ? लड़का:- करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया। ‘जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते? लड़का:- सुबह से घर से निकला था, तकरीबन पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।

जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और खासकर ब्रैड की चोरी बहुत शर्मनाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। ‘अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा।’

ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया – इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले किया। अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।’ जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी तलब करती है।

फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के के भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।

क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं? चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए।