– मोदी ने संसद में कहा है कि बाल विवाह कानून,शिक्षा का अधिकार कानून बिना मांगे बनाये गए।
– सॉरी सर,  बिना मांगे नहीं बने ये कानून..!
– संसद में कृषि लागत के दोगुने दाम पर एमएसपी देने का झूठ क्यों बोला गया ?
– आखिर आप बार-बार झूठ बोल कर क्यों गुमराह करते हैं?
– भाजपा शुरू से  झूठ और प्रतीकों की राजनीति करती आयी है 

अशोक कुमार कौशिक

 ‘मोदी है मौका लीजिये’ ये कहा है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने। जगह थी देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद. तारीख़ थी 8 फरवरी। प्रधानमंत्री राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चली बहस का जवाब दे रहे थे। प्रधानमंत्री जी ने एक बार फिर अपनी भाषा और शारीरिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज) से सस्ते पेशेवर ट्रोल्स को पीछे छोड़ दिया। प्रचण्ड बहुमत से पाई गई सत्ता दरअसल आत्मप्रशंसा (self praise) और आत्म केन्द्रीयता (Self-centeredness) का आसान शिकार हो ही जाती है । जिसके परिणामस्वरूप जनमानस को शाह का ताना झेलना पड़ता है। यूपीए प्रथम और यूपीए द्वितीय सरकार की नीतियों की जबर्दस्त मुख़ालफ़त करते हुए सत्ता में पहुंचे नरेंद्र मोदी अचानक पलट गए । यू टर्न लेने के नाम पर राजनीतिक विरोधियों को आड़े हाथों लेने वाले नरेन्द्र मोदी जितना यू टर्न लिया, उसकी बानगी हाल फ़िलहाल खोजना बहुत मुश्किल है।

 उदाहरण एक– बाल विवाह क़ानून के लिये ब्रिटिश हुक़ूमत से लड़े थे समाज सुधारक। शिक्षा का अधिकार क़ानून भी यूं ही नहीं बनाया था सरकार ने।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा है कि बाल विवाह कानून,शिक्षा का अधिकार कानून बिना मांगे बनाये गए थे। किसी ने मांग नहीं की थी और सरकारों ने बना दिये थे। वे बिना मांगे किसान क़ानून बनाने की हिमायत कर रहे थे। माफ़ कीजिये प्रधानमंत्री जी यह सरासर मिथ्यावाचन है।

बाल विवाह के खिलाफ़ क़ानून बनाने के लिये समाज ने फिरंगी राज में लंबी लड़ाई लड़ी थी। उन्नीसवीं सदी में राजा राममोहन राय ने बाल विवाह के खिलाफ़ आवाज़ उठाई थी। बीसवीं सदी की शुरुआत में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’, ‘महिला भारतीय संघ’ और ‘भारत में महिलाओं की परिषद’ ने बाल विवाह के खिलाफ़ अलख जगाया था। समाज सुधारक,बाल विवाह विरोधी संस्थाओं के लोग तत्कालीन नेताओं के सामने अपनी मांग रखने जाते थे।

सन 1927 में रायसाहब हरविलास शारदा ने केंद्रीय विधानसभा में ‘हिन्दू बाल विवाह बिल’ पेश किया। इसमें विवाह के लिये लड़कियों की उम्र 14 और लड़कों की 18 वर्ष करने का प्रावधान रखा गया। समाज सुधारकों, स्वतंत्रता सेनानियों के दवाब में ब्रिटिश सरकार ने इसे एक कमेटी के पास भेज दिया। कमेटी के सदर सर मोरोपंत विश्वनाथ जोशी थे। कमेटी में आर्कोट रामास्वामी मुदलियार, खान बहादुर माथुक, मियां इमाम बख़्श कुडू,रामेश्वरी नेहरू, श्रीमती ओ बरीदी बीडोन,मियां सर मुहम्मद शाह नवाज़,एमडी साग आदि मेम्बर थे।

कमेटी ने 20 जून 1929 को रिपोर्ट पेश की। इस बिल को ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ ने 29 सितम्बर 1929 को पारित किया। यह कानून 30 अप्रैल 1930 से पूरे देश में लागू हुआ। बिल पेश करने वाले रायबहादुर हरविलास शारदा के नाम पर ही इसे ‘शारदा एक्ट’ के नाम से जाना गया।

बाद में सन 1949, 1978 और 2006 में इस कानून में ज़रूरी संशोधन भी किये गए। अब विवाह की न्यूनतम आयु सीमा लड़कियों और लड़कों के लिये क्रमशः 18 और 21 वर्ष है।

–  यूं ही नहीं आया शिक्षा के अधिकार का क़ानून

उदाहरण दो – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि शिक्षा के अधिकार का क़ानून (RTE) भी बिना किसी के मांगे बनाया गया है। यह भी सरासर ग़लत है।शिक्षा के अधिकार के लिये क़ानून भारत ज्ञान विज्ञान समिति के प्रणेता प्रो. विनोद रैना जैसे लोगों के सतत संघर्ष का परिणाम है। प्रो. रैना अखिल भारतीय जनवादी विज्ञान नेटवर्क के सह संस्थापक थे।सन 2009 में उनके और तमाम दूसरे लोगों के संघर्ष के बाद शिक्षा का अधिकार कानून बना। इसका ड्राफ्ट भी प्रो रैना ने तैयार किया था।

– संसद में कृषि लागत के दोगुने दाम पर एमएसपी देने का झूठ क्यों बोला गया ?

उदाहरण 3 -मोदी ने अपने भाषण में कहा कि मेरी नजर सीमांत कृषकों पर हैं जो छोटी जोत के किसान हैं. मैं प्रधानमन्त्री मोदी से पांच सवाल करना चाहता हूँ. कोई भी समर्थक इसका सही और तर्कसंगत जवाब दे दे तो मान जाऊँगा। नहीं तो यह मान लेना चाहिए कि पीएम का भाषण केवल सुर्री बम है।

1- खुले बाजार से सीमांत कृषकों को क्या लाभ होगा, जब आपके कहे के अनुसार वो सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी नहीं कर पाते तो फसल बेंचने एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश कैसे जाएंगे?
2- किसानों  के लिए सिंचाई के साधनों का विकास, बीजों की उपलब्धता और यूरिया का इंतजाम ज्यादा महत्वपूर्ण है या फिर खुले बाजार और मंडी की समाप्ति? 
3 – आपने कहा कि सीमांत कृषक न तो कर्ज ले पाता है न तो मंडियों तक पहुँच पाता है एक बड़ा उदाहरण छत्तीसगढ़ का है जहाँ 80 फीसदी किसान सीमांत और छोटे किसान है सभी बैंक से कर्ज लेते हैं. आपने यह झूठ क्यों बोला ?
4-  संसद में कृषि लागत के दोगुने दाम पर एमएसपी देने का झूठ क्यों बोला गया ?
5- आपने कहा कि सीमांत कृषकों की संख्या देश में बढती जा रही है इनकी कोई बात नहीं करता? देश में खेती किसानी पूरी तरह से कृषि मजदूरों पर केन्द्रित हैं, आप बताएं पिछले 7 वर्षों में आपने खेतिहर मजदूरों की बात कब की है ?

– आप जरा बात कर ले सत्ता से पहले की और सत्ता के बाद की

कांग्रेसनीत यूपीए रीटेल में 49% FDI का बिल लेकर आई. भाजपा ने इसके विरोध में पूरे देश में जमकर बवाल काटा। छोटे दुकानदार, मजदूर की बर्बादी के नारों के बीच देश को फिरसे गुलाम बनाने का माहौल बनाया गया । माहिर भाषणबाज मोदी जी के भरोसे में आए छोटे दुकानदार और मज़दूरों ने भाजपा को जिताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मोदी सरकार ने 100% FDI लागू कर देश को गुलामी से बचा लिया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वदेशी जागरण मंच और उसका स्वदेशी आंदोलन एक छलावा बनकर रह गया।

यूपीए सरकार के GST बिल को कारोबार के विरुद्ध काला क़ानून और फ़ेडरल सिस्टम के खिलाफ बताया गया। जीएसटी पर हमलावर नरेन्द्र मोदी ने एक रोज़ रात में संसद खुलवाई. एक बड़े उत्सव की छाया तले GST पास करा दिया । जिसे समझने में अच्छे अच्छे सीए फेंचकुर फेंक बैठे, दुकानदारों की बिसात ही क्या. GST को लेकर केन्द्र और राज्य अब भी विवादों में पड़े हुए हैं।

बांग्लादेश भारत सीमा विवाद को सुलझाने में लगी कांग्रेस सरकार पर राष्ट्रवादियों का जमकर गुस्सा फूटा। उस दौर में देश की जमीन का सौदा करने के आरोपों की तपिश पूरे देश ने महसूस की. पूरे देश में मनमोहन सिंह सरकार के विरुद्ध वातावरण बना। आक्रोश वोट में बदला । लेकिन हासिल बस इतना रहा कि मोदी सरकार बनने के साथ हो भारत का एक भू भाग आज आधिकारिक रूप से बांग्लादेश का हिस्सा हो गया। मनमोहनसिंह सरकार की पांच सौ के नोट बदलने की योजना भाजपा विरोध के डर से लागू नहीं हो पाई थी। पांच सौ और हजार के नोटों को काला धन के लिए जिम्मेदार बताने वाले लोग जब सत्ता में आए तो नए तर्कों और तथ्यों की आड़ में दो हजार का नोट लांच कर दिए। हथियार बनी पांच सौ और हजार की नोटबन्दी । नोटबन्दी की भयावहता और दुष्परिणामों से अभी भी देश उबर नहीं पाया है।

कांग्रेस सरकार की बड़ी उपलब्धि आधार कार्ड और मनरेगा का मज़ाक उड़ाने वाली भाजपा और उसके सेनापति नरेन्द्र मोदी आज जब सत्ता में हैं ये उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। विदेशी बैंकों में जमा काले धन को भारत वापस लाने की मुहिम कहां तक पहुंची है, इसको जानने के लिए बस इतना काफी है कि हासिल एक लिस्ट तक नहीं है। काला धन लाना तो बहुत दूर की कौड़ी है । यू टर्न का आरोप लगाने वाले नरेंद्र मोदी के यू टर्न के मुद्दे आसानी से खत्म नहीं होंगे, लेकिन समय और शब्द जरूर साथ छोड़ते नज़र आ जाएंगे। एक मोटा खाका खींचे तो परमाणु संधि, अमेरिकी सैन्य समझौता, कृषि बिल, लेबर कोड बिल, निजीकरण, FDI इत्यादि वो कानून हैं, जिन्हें लागू करने की दिलचस्पी के साथ ड्रॉफ्ट और डिज़ायर मनमोहन सरकार की थी। लेकिन जनविरोध के आगे मजबूर यूपीए सरकार इन्हें लागू नहीं कर पाई। और इन मुद्दों के कट्टर विरोधी, आलोचक, आंदोलनकारी सरकार में आते ही इसे लागू कर उपलब्धियों का कैनवास खींच रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि सत्ता की सुविधा में कांग्रेसी योजनाओं को पुरज़ोर तरीके से लागू करने वाले नरेन्द्र मोदी सही हैं। या फिर 2014 के चुनावों में कांग्रेस की इन योजनाओं के विरुद्ध खड़े होने वाले नरेन्द्र मोदी सही थे। 2014 में जो अच्छे दिन का जुमला था, अब उसकी बात करना देशद्रोह से कम नहीं है। ‘मोदी है मौका लीजिये’ अब किसका और कितना मौका है, कितना बनेगा अभी कहना जल्दबाज़ी होगी। बाकी किसानों के प्रति लिहाड़ी लेते प्रधानमंत्री जी की संवेदना तो सार्वजनिक पटल पर है । ये न्यू इंडिया है, जहां गंगा को बचाने के लिए अनशन पर बैठे गंगा पुत्र प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ ज्ञान स्वरूप सानंद के मरने पर भी गंगा पुत्र होने का दावा करने वाले को रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ता। किसान आंदोलन में तिहाई में मरने वाले किसानों की बात ही क्या.. आप बस मौके बनाईये।

 – दरअसल भाजपा शुरू से ही झूठ और प्रतीकों की राजनीति करती आयी है …..

इस देश मे चाहे जिस से भी लड़ लें लेकिन प्रतीकों से लड़ना मुश्किल है। यह बात संघ अपने स्थापना के समय आए ही अच्छे से जानता है,इसलिए उसने हमेशा से सामने प्रतीकों को खड़ा करके खुद पीछे चुप हर लड़ाई लड़ी। 

कभी हिंदुत्व, कभी राम, तो कभी भारत माता और कभी सेना। मूलतः भारत की जनता इमोशनल तरीके से सोचती रही है। जिन प्रतीकों को भाजपा सामने लाती रही है उनपे कोई तर्क इस देश मे चल ही नही सकता,यह उनको खूब अच्छे से पता है। जैसे राम इस देश मे किसी भी तर्क से ऊपर हैं और राम मंदिर उनकी किसी भी ज़रूरत से ऊपर। वो राम और राम मंदिर को सामने कर पीछे खड़े हो लेते हैं, अब करिये तर्क या हमला। उनके विपक्षी का सारा वार अब राम पर होने वाला है और जनता इसे बर्दास्त नही करती। वो आराम से खुद पीछे सुरक्षित खड़े हुए हैं। इसी तरह कभी भारत माता तो कभी सेना को आगे खड़ा कर ये खुद पीछे सुरक्षित खड़े रहते रहे हैं।

शुरुआत में ये धीमे और सुरक्षित प्रयोग कर रहे थे, गुजरात मे नरेंद्र मोदी ने इसी तरीके का आक्रामक प्रयोग कर उसमें कॉर्पोरेट का घालमेल भी कर सफलता हासिल की। अब वही प्रयोग पूरे देश मे खूलेआम और बेहद आक्रामक तरीके से लागू कर दिया गया है। भाजपा और संघ ने देश की जनता की मानसिकता को पूरी तरह भाप लिया और उसी का भरपूर इस्तेमाल भी करती है ।

तो ज़रूरत है इसे समझने की,इनकी इस चतुर रणनीतिक चाल के अनुसार आगे की सोच कर इन प्रतीकों की राजनीतिक तोड़ की।

error: Content is protected !!