बेटियों का एक ही सवाल इसलिए मिटा दिया जाएगा क्योंकि वे बेटियाँ

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का दूसरा पहलू दो लाख  में बेटी मिटाने का नेटवर्क 

डॉ अंबेडकर ने कहा महिलाओं की स्थिति ही समाज की तरक्की का आईना

भाजपा के ट्रिपल इंजन विकास’ मॉडल की असलियत हो रही बेनकाब

हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या की भयावह स्थिति सभी के लिए चिंताजनक

फतह सिंह उजाला 

गुरुग्राम । “आज हरियाणा की बेटियाँ एक बार फिर सवाल पूछ रही हैं — क्या उन्हें सिर्फ इसलिए मिटा दिया जाएगा क्योंकि वे बेटियाँ हैं ? आजतक के स्टिंग ऑपरेशन में जो उजागर हुआ है, वो न केवल कानून और नैतिकता की धज्जियाँ उड़ाने वाला है, बल्कि यह राज्य और केंद्र सरकार की खोखली नीतियों और बहुप्रचारित अभियानों की असलियत भी सामने लाता है। दो लाख रुपये में बेटी मिटाने का पूरा नेटवर्क — वो भी उस हरियाणा में, जहां से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की गई थी। यह तीखी प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट पटौदी से विधानसभा चुनाव लड़ी कांग्रेस एससी सेल की प्रदेश महासचिव श्रीमती पार्लर चौधरी के द्वारा व्यक्त की गई।

उन्होंने बताया भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1942 में नागपुर में कहा था कि किसी भी समाज की असली तरक्की उस समाज की महिलाओं की स्थिति से मापी जा सकती है। आज हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या की भयावह स्थिति ने भारतीय जनता पार्टी के तथाकथित ‘ट्रिपल इंजन विकास’ मॉडल की असलियत को बेनकाब कर दिया है। जिस प्रदेश में बेटियाँ कोख में ही मिटाई जा रही हों, वहाँ विकास के तमाम दावे खोखले और शर्मनाक साबित होते हैं। यह ना सिर्फ प्रशासनिक विफलता है, बल्कि हमारी सामाजिक चेतना पर एक गहरा धब्बा है।

लिंगानुपात के मामले में गुरुग्राम संवेदनशील

गुरुग्राम जिला, जो लिंगानुपात के लिहाज़ से सबसे संवेदनशील जिलों में गिना जाता है, वहाँ की इकलौती महिला विधायक — जो सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी से हैं — मार्च 2025 में विधानसभा में दहेज जैसे ज्वलंत मुद्दे को ‘चुटकुला’ बना कर सुनाती हैं। चुटकुला भी ऐसा जिसे सुनाते सुनाते महिला विधायक बाप बेटी के पवित्र रिश्ते पर कीचड़ उछालने जैसे शब्द भी बोल जाती हैं जिसे विधानसभा अध्यक्ष जी ने सदन की कार्यवाही से निकलवा दिया। लेकिन उस विधानसभा में, जहां हरियाणा प्रदेश के जनता के कल्याण की नीति बनती है, जहाँ बेटी के अधिकारों की बात होनी चाहिए, वहाँ यह बेहूदा मज़ाक और हँसी-ठिठोली हो रही थी। यह न सिर्फ महिलाओं का अपमान था, बल्कि पूरे समाज में एक विकृत संदेश देने का काम भी हुआ।

पदक विजेता बेटियाँ राजधानी की सड़कों पर 

कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी ने कहा यह पहला मौका नहीं है जब हरियाणा की बेटियाँ खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। जब साक्षी मलिक और विनेश फौगाट जैसी अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता बेटियाँ देश की राजधानी की सड़कों पर न्याय के लिए उतरीं — उन्होंने जब कुश्ती महासंघ के एक शक्तिशाली व्यक्ति पर यौन शोषण का आरोप लगाया — तो उन्हें समर्थन देने की बजाय पुलिस की लाठियाँ दी गईं। उन्हें लोकतंत्र के गलियारों में शर्मसार किया गया। यह देश की हर बेटी के लिए चेतावनी थी कि चाहे तुम कुश्ती के रिंग में कितनी भी बहादुरी दिखा लो, लेकिन लोकतंत्र के मंच पर तुम्हारी आवाज़ कुचली जा सकती है। बात सिर्फ खेल की नहीं है, शिक्षा की स्थिति और भी भयावह है। हरियाणा के गाँवों में बेटियाँ आठवीं के बाद पढ़ाई इसलिए छोड़ देती हैं क्योंकि पास के गाँव में जाने के लिए सुरक्षित साधन नहीं हैं। सरकारें ‘बेटी पढ़ाओ’ का नारा तो देती हैं, लेकिन उनके स्कूलों में शिक्षक नहीं, भवन नहीं, और जो हैं भी वहाँ बेटियों के लिए स्वच्छ शौचालय तक नहीं। क्या ये है हमारी योजना बेटियों को पढ़ाने की?

छोटे शहर की बेटियों के , अपने- सपने बड़े-बड़े

हरियाणा के किसी भी छोटे शहर में चले जाइए — पटौदी, मानेसर, फर्रुखनगर, सोहना — महिला शौचालयों की हालत दयनीय है । ये सब शहर छोटे ज़रूर हैं, लेकिन इनकी बेटियों के सपने बड़े हैं। अफसोस, 21वीं सदी के भारत की सरकार आज बच्चियों के सपनों के उड़ान के लिए पंख मुहैया करवाने पूरी तरह विफल साबित हो रही है। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल और भी चिंताजनक है। पटौदी के सरकारी अस्पताल में एक अदद अल्ट्रासाउंड मशीन तक नहीं है। ऐसी बुनियादी सुविधा के अभाव में गर्भवती महिलाओं को या तो गुड़गांव के जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है या फिर उन्हें मजबूरन प्राइवेट क्लीनिक का रुख करना पड़ता है। और यहीं से शुरू होता है गैरकानूनी भ्रूण लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या का वह घिनौना सिलसिला, जिसकी पोल आजतक ने अपने स्टिंग से खोली है।

बेटियों को संस्कार और संकोच के तराजू में तोल रहे

उन्होंने कहा अभी हाल ही में फरवरी के महीने में मानेसर के एक गांव में एक बेटी की शादी सिर्फ इसलिए टूट गई क्योंकि दहेज कम था। बारात लड़की के गांव से लौट गई। ये वो समाज है जो कहता है कि हम ‘बेटियों को लक्ष्मी मानते हैं।’ लेकिन हकीकत यही है कि बेटियाँ अब भी बोझ समझी जाती हैं। कानून भले ही कहता हो कि बेटियों को परिवार की संपत्ति में बराबरी का हक है, लेकिन उस कानून की हस्ती बस किताबों तक सीमित है। ज़मीन पर बेटियाँ अब भी हक मांगने से पहले ‘संस्कार’ और ‘संकोच’ के तराजू में तोली जाती हैं।

भाजपा ने आज तक महिला अध्यक्ष नहीं बनाया

श्रीमती चौधरी ने कहा भारतीय जनता पार्टी, जो पिछले 11 सालों से केंद्र और हरियाणा दोनों में सत्ता में है, उसने आज तक किसी महिला को पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाया। उनके वैचारिक प्रेरणा स्रोत ‘संघ’ में महिलाओं को नेतृत्व देने की बात तो दूर, उन्हें मंच पर स्थान तक बहुत सोच-समझकर दिया जाता है। क्या ये नई पीढ़ी को ये बताने के लिए काफी नहीं है कि महिलाओं को ‘शुभ मुहूर्त’ में सामने लाओ और बाकी वक्त उन्हें पीछे रखो ? अब वक्त आ गया है कि हरियाणा का समाज, हमारी राजनीति, और हमारी व्यवस्था खुद को आइने में देखे। अगर हम अब भी नहीं जागे, तो एक दिन इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। हम वो हर कदम उठाएंगे जिससे हर बेटी गर्व से कह सके — ‘मैं हरियाणा की बेटी हूँ, और मुझे मिटाया नहीं जा सकता।’”

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