बैसाखी पर्व 13 अप्रैल 2025: खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक

बैसाखी के दिन का उत्सव कृषि, समाज व धर्म के संगम का प्रतीक है खालसा पंथ की स्थापना व नई फसल की कटाई का प्रतीक

बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में विशेष पूजा, अरदास, भजन कीर्तन व प्रभातफेरी कणाह प्रसाद का विशेष महत्व

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – बैसाखी का पर्व भारतीय संस्कृति, समाज और धर्म के संगम का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह न केवल कृषि प्रधान समाज के लिए, बल्कि सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष यह पर्व 13 अप्रैल 2025 को बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है।

सामाजिक और धार्मिक एकता का उत्सव

भारत विविधताओं में एकता का देश है, जहां हर धर्म और जाति के पर्वों को पूरे सामूहिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हाल ही में हमने चेट्रीचंड्र, ईद और रामनवमी जैसे पर्वों को देशवासियों ने मिलजुलकर मनाया, जो हमारी सामाजिक और राष्ट्रीय एकता को दर्शाता है। इसी क्रम में बैसाखी पर्व भी भारत के कई राज्यों—विशेषकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर—में बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। गोंदिया जैसे छोटे नगरों में भी यह पर्व पूरी भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व

बैसाखी का दिन सिख धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन, 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने जाति-पाति और भेदभाव को समाप्त कर एक नये सामाजिक ढांचे की नींव रखी, जिसमें सबको समानता, वीरता और धार्मिक आस्था का पाठ पढ़ाया गया।

बैसाखी: फसल की कटाई और खुशहाली का प्रतीक

बैसाखी का पर्व किसानों के लिए भी अत्यंत विशेष होता है। इस दिन से नई रबी फसल की कटाई की शुरुआत होती है। यह किसानों के परिश्रम का फल पाने का दिन होता है, जब खेतों में लहलहाती फसलें समृद्धि और आशा का प्रतीक बन जाती हैं। इस दिन गांवों और शहरों में लोग गिद्दा और भांगड़ा कर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हैं।

धार्मिक आयोजन और गुरुद्वारों की शोभा

बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में विशेष सजावट की जाती है। अमृत वेले से ही प्रभात फेरियाँभजन-कीर्तनविशेष अरदास और लंगर सेवा आरंभ हो जाती हैं। कणाह प्रसाद (गुड़ और आटे से बना हलवा) इस दिन का विशेष व्यंजन होता है, जिसे श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा के साथ ग्रहण करते हैं।

भारत में बैसाखी के विविध स्वरूप

भारत के विभिन्न हिस्सों में बैसाखी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है—पोइला बोइशाख (बंगाल), विशु (केरल), बैशाखी (उत्तर भारत), और बीहू (असम)। इन सभी त्योहारों में एक बात समान है—नई शुरुआत और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव।

बैसाखी का आध्यात्मिक संदेश

बैसाखी न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह समाज में शांति, भाईचारे और एकता का संदेश भी देता है। यह दिन सिख धर्म की शिक्षाओं का स्मरण कर उन्हें जीवन में उतारने का अवसर होता है। लोग अपने पवित्र कर्तव्यों को याद कर गुरु की शिक्षाओं पर चलने का संकल्प लेते हैं।

निष्कर्ष

अगर हम उपरोक्त विवरणों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि बैसाखी न केवल खालसा पंथ की स्थापना का पर्व है, बल्कि यह कृषि, समाज और धर्म के त्रिवेणी संगम का भी प्रतीक है। यह दिन खुशहाली, समृद्धि, नई फसल, और सामाजिक एकता का उत्सव है, जो हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत की गहराई और उसकी सुंदरता का अनुभव कराता है।

संकलनकर्ता लेखक:

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी-क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए (एटीसी)गोंदिया, महाराष्ट्र 

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