विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल

विश्व आर्थिक मंच की ताज़ा रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वर्ष 2025 से 2027 के बीच जल आपूर्ति की कमी भारत के लिए सबसे गंभीर खतरे के रूप में सामने आ सकती है। इससे पहले नीति आयोग भी आगाह कर चुका है कि देश की लगभग 60 करोड़ आबादी उच्च जल तनाव का सामना कर रही है।
वास्तव में भारत एक गहरे जल संकट की ओर बढ़ रहा है। हमारे देश में विश्व की 18 प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन जल संसाधनों की उपलब्धता मात्र चार प्रतिशत है। यह असंतुलन एक गंभीर संकेत है – एक ऐसा सच, जिसे अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।
आज जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के चलते जल की मांग बेतहाशा बढ़ रही है। हमारे सीमित जल स्रोत इस दबाव को झेलने में असमर्थ हो रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि विश्वभर में जितना भूजल दोहन होता है, उसका चौथाई हिस्सा अकेले भारत में किया जाता है।
वहीं, जलवायु परिवर्तन ने मानसून की अनियमितता को जन्म दिया है, जिससे प्राकृतिक जल स्रोतों का क्षरण हो रहा है। दूसरी ओर, औद्योगिक कचरे, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों ने जो जल उपलब्ध है, उसे भी विषैला बना दिया है। ऐसा प्रदूषित जल न केवल बीमारी का कारण बनता है, बल्कि गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ाता है।
इसके अतिरिक्त, अकुशल जल प्रबंधन, जनचेतना की कमी, और बेरहमी से होती जल की बर्बादी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। गर्मियों में तो यह संकट और अधिक विकराल हो उठता है।
यह संकट सिर्फ पेयजल तक सीमित नहीं है। इसका असर कृषि, उद्योग, और मानव स्वास्थ्य पर भी गहराई से पड़ता है। जल की कमी से फसलों का उत्पादन घट सकता है, जिससे खाद्य संकट और महंगाई बढ़ सकती है। उद्योगों में उत्पादन बाधित हो सकता है, जिससे देश की आर्थिक गति प्रभावित होती है। और जल के लिए संघर्ष, मानसिक तनाव और सामाजिक असंतुलन को जन्म देता है।
आज ज़रूरत है एक सामूहिक संकल्प की – जल संरक्षण अब विकल्प नहीं, अनिवार्यता बन चुका है। यह ज़िम्मेदारी केवल उन लोगों की नहीं जो जल संकट से जूझ रहे हैं, बल्कि उन सभी की है, जिनके नल अभी बह रहे हैं।
हमें हर बूंद का मोल समझना होगा।
हमें जल को धरोहर की तरह सहेजना होगा।
हमें आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य देने के लिए आज निर्णय लेना होगा।
पानी बचाइए – जीवन बचाइए।