अशोक जैन, गुरुग्राम

दिन चुनावों के थे और उन्हें मालामाल कर दिया गया। जेबें भारी होकर लटकने लगीं तो उन्हें चारों दिशायें गुलाबी दिखाई  देने लगीं। तब उनके कदम खुद ब खुद बार की ओर मुड़ गये ••••••दोनों नशे में थे, टकरा गये। बातचीत गाली से होकर हाथापाई तक पहुंची तो दोनों ने चाकू निकाल लिए।

अपने आसपास मंडराती भीड़ को वे चौकन्नी दृष्टि से भांपे थे। भीड़ के बूढ़े स्वर बतियाने लगे:”विपक्षी दलों के होंगे,  सो भिड़ गये। “”क्या जमाना आ गया है साहब। बात बात में  छुरे चमकने लगते हैं।

“तभी एक करुण चीख ने वातावरण के रौंगटे खड़े कर दिए।सुना गया- “खद्दरधारी था। बीच बचाव करने आया था। उसे क्या पता था कि ••।

“पुलिस आई। भीड़ को तितर बितर करने के लिए लाठी चार्ज।  दोनों को  पकड़ कर जीप में  धकेल दिया गया।

 थाने में•• “कलुआ। तुम्हें ऐसा करने को कब कहा था! नेताजी ने सिर्फ  हो हल्ला करने के लिए  जेबें भरी थीं  न कि खून खराबे के लिए ••••।

“तभी फोन की घंटी घरघरा उठी••••• और रिपोर्ट  तैयार  कर दी गई:अमुक  क्षेत्र में  विपक्ष के असामाजिक तत्वों ने सत्तारूढ़ दल उम्मीदवालों पर छुरे ताने। एक मेरा ••कई घायल। कातिल फरार। पुलिस  मुस्तैदी से  कातिल की तलाश  कर रही है। 

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