कमलेश भारतीय

बिहार चुनाव में हार के बाद कांग्रेस हाईकमान पर अंदर से ही हमले तेज़ हो गये हैं । कल पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने और पी चिदम्बरम् के बेटे कार्ति ने हमला किया था कि कांग्रेस ने हार को ही अपनी नियति मान लिया है क्या तो आज खुद पी चिदम्बरम् सामने आकर कह रहे हैं कि कांग्रेस जमीनी स्तर पर कहीं नहीं रह गयी । ये बिहार के चुनाव नतीजों के आधार पर कहा गया है । क्या सचमुच कांग्रेस की नियति हार है और जमीनी स्तर पर इसका कोई आधार नहीं रहा ? क्या इसके पांव के नीचे से धरती खिसकती जा रही है ? क्या जो काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं कर पाये यानी कांग्रेस मुक्त भारत वही काम कपिल सिब्बल , पी चिदम्बरम् और गुलाम नवी आजाद जैसे कांग्रेसी ही कर डालेंगे या करने पर अमादा हो चुके हैं ? पहले गुलाम नवी आजाद ने ही यह आवाज़ उठानी शुरू की थी । इस बार वे तो चुप लगाए हुए हैं लेकिन कपिल और चिदम्बरम् मुखर हो गये हैं । कांग्रेस क्या कोई डूबता जहाज है , जिसमें कोई सवालर होना नहीं चाहता ? या फिर जो सवार हैं वे डूबने से पहले कोई ठिकाना खोज लेना चाहते हैं ? यानी क्या भाजपा में जाने का कोई रास्ता तलाश रहे हैं ?

इसमें कोई संदेह नहीं कि मां सोनिया गांधी और बेटे राहुल गांधी में बार बार अध्यक्ष पद लुड़काने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और न पड़ रहा है । फिर इनकी ओर किसी करिश्मे के लिए क्यों देखा जाये? कांग्रेस को गांधी के टैग से मुक्त करने की छटपटाहट जारी है कांग्रेस के ही अंदर । यह इन लोगों के बयान से साफ जाहिर हो रहा है । कोई स्थायी अध्यक्ष बनना चाहिए । राहुल गांधी ने पहले प्रधानमंत्री न बन कर भी मनमोहन सिंह से ज्यादा चलाई और फिर अध्यक्ष पद छोड़कर मां के नाम पर कांग्रेस चला रहे हैं । यह तरीका लोगों और कांग्रेसियों को पसंद नहीं और न ही रास आ रहा है । आप अपने ऊपर विश्वास क्यों नहीं करते ? सारी जिम्मेदारी लेने से क्यों पीछे हटते हो ? जब अध्यक्ष बनाया गया तब रूठ कर छोड़ा क्यों ? जब मां को बनाया है तो अपनी मर्जी क्यों चलाते हो ? यदि हरियाणा में विधानसभा चुनाव से काफी पहले अध्यक्ष बना दिया गया होता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तो परिणाम कुछ और होते । ढुलमुल रवैया भी कांग्रेस को दीमक की तरह चाट रहा है । दिल्ली मे अरविंद केजरीवाल से समझौता किया होता तो राजकाज चला रहे होते । कहीं भी चुनाव हो तैयारी समय पर नहीं , कोई रणनीति नहीं । सब राम भरोसे । तभी तो चिदम्बरम् जैसे नेता पूछ रहे हैं कि आखिर हमारा कैडर बचा भी है किसी राज्य में या कमज़ोर इतना हो गया है कि कहीं दम ही नजर नहीं आता ? कितने स्वर उठेंगे? कितनी आवाजें हाईकमान को जगाने के लिए जरूरी होंगीं ? आखिर कोई मंथन , कोई विचार , कोई चिंतन शिविर ? कुछ तो कीजिए । नहीं तो दास्तान भी मिट जायेगी दास्तानों में,,,,,अब तो राजग और समाजवादी पार्टी तक गठबंधन कर पछता रही हैं । आलोचना भी कर रही हैं ।

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