संगीता श्रीवास्तव सुमनछिंदवाड़ा मप्र कमलेश भारतीय कथाकार कमलेश भारतीय जी का सातवाँ कथा संग्रह “यह आम रास्ता नहीं है”, इंडियानेटबुक्स से प्रकाशित हुआ है | कुल 16 कहानियों और 122 पेज की ये क़िताब असल में समाज के ताने बाने का हर कमज़ोर सिरा उघाड़ती है | सामाजिक चेतना को जागृत करने के साथ ही आदरणीय कमलेश जी अपने बचपन की कहानियों को लोगों के साथ ऐसे जीते, बाँचते प्रतीत होते हैं जैसे गाँव के खेत में एक रंगीन पर्दा लगाकर सारा गाँव ही एक साथ कौई चलचित्र देख रहा हो | जीवन के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अनुभवों को क़िस्सागोई के बेहद प्रभावपूर्ण एवं रोचक तरीके से लोगों के सामने रखने में वे पूरी तरह सफ़ल हुए हैं | मेरा मानना है कि पाठक इसे केवल संस्मरण कथा नहीं कह सकते | “दरवाज़ा कौन खोलेगा” के 12 बरस बाद , “यह आम रास्ता नहीं है” कथा संग्रह को यूँ ही आम से ख़ास बना देता है | यह सचमुच आम रास्ता नहीं होगा किसी भी कथाकार की क़िस्सागोई के लिए |अर्जी लगाकर, माँ सरीखी मिट्टी के प्रति अपनी कृतज्ञता को कुल 16 जीवंत कहानियों के माध्यम से रखने का अनोखा अंदाज़ देखने को मिलता है | स्थानीय बोली ,भाषा में लोकोक्ति , मुहावरे और प्रचलित शब्दों के साथ कथाएं सहज ही आपको पंजाब की पृष्ठभूमि और खेतों में लहकती फ़सलों की बालियों का स्पर्श करा देती हैं तो समाज की समस्याओं , विद्रूपताओं को भी सफ़लतापूर्वक उजागर करती हैं | जैसा कि परिचय से ज्ञात हो जाता है कथाकार एक शिक्षक , एक प्राचार्य एक रिपोर्टर से लेकर संपादन जैसे विविध क्षेत्रों का अनुभव रखते हैं , सो कहानियाँ भी कहीं खुद को बाँचती , एक समस्या की स्पाट रिपोर्टिंग करती, तो कहीं कहीं कथाकार की एक व्यक्ति के रूप में अपनी सीमितताओं और सीमाओं की ओर , उसके समूचे व्यक्तित्व का भी ख़ूब इशारा करती हैं | हर कहानी अपने अंत की ओर बढ़ती पाठक के समक्ष कुछ सवालों को रखती है , चिंतन को मजबूर करती है | कहानी का आरंभ और अंत दोनों ही बराबर उत्सुकताभरा है | कहीं कहीं अंत पाठक के समझ का विस्तार करने हेतु अटकाया सा लगता है तो कहीं खट से मन के दरवाज़े पर एक आहट सी करता है | स्वाभाविक रूप से हिंदी व्यंग्य के शीर्ष प्रेम जन्मजय जी का सानिध्य , साथ समाज की कुरीतियों पर व्यंग्य की धार के रूप में साफ़ रेखांकित होता है | मैं अभी से ये दावा कर सकती हूँ कि आदरणीय कमलेश जी की ये कृति भी उन्हें एक बार फिर पाठकों से सम्मानित होने का अवसर प्रदान करेगी | भाषा विभाग , पंजाब व केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा कमलेश भारतीय के कथा संग्रहों को पुरस्कृत किया जा चुका है | इस कथा संग्रह से मेरी पसंदीदा कहानियों में – ‘अपडेट’, ‘जादूगरनी’ ‘एक सूरजमुखी की अधूरी परिक्रमा’ ‘ मैंने अपना नाम बदल लिया है’ और ‘माँ और मिट्टी ‘ | पसंदीदा संवाद – ज़रा तेज़- तेज़ क़दम रखिए | साफ़ – साफ़ कहूँ , अगर नारेबाज़ी न लगे तो सुनिये , समय के साथ चलिए , समय को पहचानिए | वक़्त बड़ा बुरा है , ज़माना ख़राब है | रतन गाइड आपको समय की नब्ज़ पर हाथ रखकर दिखाएगा , रखना सिखाएगा | आइये |’ “कभी कभी सोचती हूँ कि विक्की के नाम पर बच्चों का स्कूल खोल दूँ , पर फिर ख़याल आता है कि बच्चे पूछेंगे विक्की कौन था , जिसकी याद में स्कूल खोला गया है ? वह विक्की कौन था ? कैसा था ? क्या जवाब दूँगी कि यह वह आदमी था , जिसने ज़िंदगी का सामना नहीं किया | जिसने माँ के दूध का मोल नहीं चुकाया | जिसने माँ की ममता का ख़ून किया | क्या प्रेरणा ग्रहण करेंगे बच्चे ? नहीं , विक्की का इतिहास इस क़ाबिल नहीं कि उसे बच्चों के सामने प्रेरणा के लिए दुहराया जा सके |” “यह आम रास्ता नहीं है” -कथा संग्रह की एक सार्थक एवं यात्रा के लिए मैं आदरणीय कमलेश जी को बहुत बधाई देती हूँ | “ Post navigation गीली मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू में संगीत लहरियां पत्रकारिता में जन सरोकार खत्म हो गये, अन्वेषण और शोध की परंपरा नहीं रही : पंकज चतुर्वेदी