कबीर जी की वाणी
प्रेम न बारी उपजे प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रुचे सीस दिए लेह जाए।।

आचार्य डॉ महेंद्र शर्मा “महेश”

प्रेम प्यार वात्सल्य मोहब्बत स्नेह आदि शब्दों के अर्थ अनन्त है, आप किसी महानुभाव से बीस बरस के बाद कहीं मिलें हो और आप उसको उसके नाम से पुकारें तो सही … फिर देखें प्रेम की वर्षा का प्रभाव कितना आनंदित स्नेहिल वातावरण बन जाता है।

इन शब्दों के अर्थ में यदि हिमालय की ऊंचाई है तो सागर जैसी गहराई भी है। पर्वत को शिखर पर और सागर के तल पर असीम और अपरमेय शीतलता होती है। एक मन्दिर के सामने एक भिखारी मन्दिर में आने जाने वाले श्रद्धालुओं से भिक्षा मांग रहा था। आज सेठ श्रद्धालु भक्त उस मंदिर में गया था, उसने उसे भिक्षा के लिए गुहार लगाई तो उसने उसको कुछ देने के अपनी सारी जेबें टटोल मारी और उसका पर्स भी गाड़ी में रह गया था लेकिन उसको देने के लिए जब उसके वस्त्रों से कुछ न मिला तो उस सेठ ने उस भिक्षुक के कंधे पर स्नेह भरा हाथ रख कर कि बाबा आज कल तो कोई भी अपनी जेब में नगदी नहीं रखता और मेरा पर्स गाड़ी में रह गया है। इस बुरी आदत का मैं भी शिकार हूं कि आजकल सारा लेनदेन क्रेडिट कार्ड से होता है तो भिखारी बोला … सेठ जी! जब अगली बार मंदिर आना तो फिर से वह पर्स अपनी गाड़ी में जानबूझ कर भूल आना। यह बात सुन कर सेठ हैरान हुआ कि यह कैसा भिक्षुक है। सेठ ने जिज्ञासा वश उससे पूछा कि मैं तुम्हारे कहने का मतलब नहीं समझा तो भिखारी कहता है … सेठ जी आपने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे आपने प्रेम और स्नेह आह्लादित कर दिया कि किसी से बात कैसे करनी चाहिए और वह भी हम जैसे निम्न स्तर के लोगों से … जो न जाने किन कर्मों की सजा भुगत रहे हैं कि उन्हें मांग कर गुज़र बसर करनी पड़ती है। सेठ जी आप का स्वभाव प्रेम स्नेह वात्सल्य मोहब्बत और प्यार बहुत उत्तम श्रेणी का है। यह है इन शब्दों की ऊंचाई और गहराई की असीम ताकत … क्या हम ऐसा नहीं कर सकते, क्या हम बिना किसी अतिरिक्त खर्च किए किसी से दुआ आशीर्वाद और वरदान प्राप्त नहीं कर सकते।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करें आपो शीतल होए।।

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