आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश”, पानीपत

काल का पहिया घूमे रे भईया

हाय री किस्मत कृष्ण कन्हैया
स्वाद ने जाने माखन का
हंसी चुराए फूलों की वो
कंस है माली उपवन का
भूल न पापी मगर पाप की
ज्यादा नहीं दुकान चले
ले के बारात कभी तो
कभी तो बिना सम्मान चले
राम कृष्ण हरि ….

सामान्यता हर माह के किसी भी पक्ष में तिथियां अपनी यात्रा 14 से 16 दिनों में पूर्ण करती है। कई बार तिथि में वृद्धि हो जाए तो पक्ष 16 दिन का हो जाता है यदि कोई तिथि क्षय हो जाए तो पक्ष में एक दिन कम हो जाता है। लेकिन जब किसी माह के किसी पक्ष में 2 तिथियां क्षय हो जाएं तो वह “त्रयोदश दिनात्मक पक्ष” हो जाता है जिसे विनाशक “विश्वघस्र पक्ष ” कहते हैं।

इस वर्ष आषाढ़ कृष्ण पक्ष में यह त्रयोदश दिनात्मक पक्ष में प्रतिपदा और चतुर्दशी दो तिथियों के क्षय होने से यह दुर्योग बन रहा है अर्थात इस का आदि और अन्त दोनों की खराब हैं और साथ इस समय शुक्र ग्रह भी अस्त हैं इसके साथ जिन राशियों पर क्रूर ग्रहों सूर्य मंगल राहू केतु और शनि ग्रह से स्थिति, युति और दृष्टि से किसी प्रकार का कुप्रभाव आदि चल रही हैं वह महानुभाव अधिक ध्यान रखें। यद्यपि ऐसे दुर्योग युगों युगों के बाद ही घटित होते हैं लेकिन इस में यदि संवत्सर की तृतीय बीसी को जोड़ लें तो यह विनाशकारी योग तीसरे वर्ष फिर से घटित हो रहा है। इस का फल इतना घृणित और दूषित होता है कि इस पक्ष में कोई भी शुभकृत्य सम्पादित नहीं किए जाते। इस का प्रमाण महाभारत युद्ध काल खण्ड में भी आता है जिस में सर्वत्र विनाश हुआ था। इस काल खंड में शुक्रास्त होने के कारण आनंदोत्सव (Social Entertainments) आयोजित करने, आनन्द प्राप्ति (Entertainment Tours) के लिए सुदूर यात्राएं खतरनाक हो सकती हैं क्योंकि पहाड़ों पर भूस्खलन घटनाएं घटित हो सकती हैं। यद्यपि इस योग के बार बार घटित होने के प्रमाण बहुत कम मिलते हैं, अभी दो वर्ष पूर्व भी यह योग घटित हुआ था और इस संवत्सर 2081 में फिर से यह अशुभ योग आषाढ़ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा 23 जून से अमावस्या 5 जुलाई तक घटित होने जा रहा है।

जब हम गोचर ग्रह स्थिति और पंचांग के अन्य विषयों को भी घटनाक्रम में जोड़कर समस्त वैश्विक, राष्ट्रीय, सामाजिक और पारिवारिक स्थितियों का अन्वेषण करेंगे तो हमें सभी प्रकार की घटनाओं और उसके परिणामों की बड़ी ही सरलता से समझ आ जायेगी अन्यथा इस प्रकार के घटनाक्रमों की विश्लेषित जानकारी सब के सिर के ऊपर से गुज़र जाती है। इस त्रयोदशात्मक पक्ष में सम्पूर्ण विश्व और भारत में राजनैतिक ,आर्थिक, आध्यात्मिक असंतुलन, सामाजिक अस्थिरता, राजनैतिक उठापटक, टकराव, बिखराव और आशान्तिपूर्ण स्थितियां व्याप्त रहेगी। देश में राजनैतिक कलह बढ़ेगी जिसके फलस्वरूप देश में अशांति और अव्यवस्था के कारण वैश्विकयुद्ध, क्षेत्रीय हिंसा, तोड़फोड़, उपद्रव, उग्रवादी घटनाएं, आगजनी के घटनाक्रम और छ्त्रभंग योग में किसी नेता की अपदस्थ होने या मृत्यु की आशंका व्याप्त रहेगी। इस दूषित पक्ष के कारण शुभ कृत्य मुहूर्त और विवाह आदि कार्य नहीं होंगे। मेदिनी प्रभाव के चलते वसुंधरा पर भूकम्प,भूस्खलन, सूखा, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि, समुद्री तूफान, वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि के कारण गर्मी बढ़ेगी और अग्निकांड से जनधन की हानि होगी और दैनिक प्रयोग के खाद्य पदार्थों के भाव बढ़ेंगे। आर्थिक, राजनैतिक वातावरण सामाजिक क्षेत्र प्रभावित होने से देश के साम्प्रदायिक सौहार्द निर्बल पड़ेगा।

यह अक्षर सत्य है जो होना है उसके भूमि और भूमिका तो परम पिता परमात्मा ने पहले से ही तय कर रखी है। सामान्य जीवन में हम सभी किसी भी प्रकार के अतिवाद से बचें, श्री हरी की पूजा करें। पंचतत्वों (अग्नि पृथिवी वायु जल और आकाश) के वैदिक मंत्रों का श्रद्धापूर्वक जाप करें, सात्विक भोजन ग्रहण करें और परस्पर सम्बन्धों में सौहार्द पूर्ण व्यवहार करें।

मनुष्य तो केवल मात्र एक मोहरा है। सभी घटनाओं के कारण और परिणाम ईश्वर ही तय करते हैं।

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