“वृक्ष हों जहां, वहां प्राण हों। वृक्ष बचे तो जीवन बचे।”
विजय गर्ग

जब सुप्रीम कोर्ट यह कहता है कि “पेड़ों को काटना मानव हत्या से भी बड़ा अपराध है,” तो यह कोई साधारण टिप्पणी नहीं होती। यह हमारे पर्यावरण और भविष्य की गंभीर चिंता का दर्पण है। यह चेतावनी है उन सभी के लिए, जो विकास के नाम पर हरियाली की बलि चढ़ा रहे हैं।
पेड़ : सिर्फ हरियाली नहीं, जीवन की श्वास
एक परिपक्व वृक्ष सालाना 20 से 40 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड सोखता है। वह गर्मी में छांव देता है, बारिश में जल का संग्रह करता है, और सर्दी में शीतलता का संतुलन बनाए रखता है। यह केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की नींव है। पेड़ न हों, तो न हवा शुद्ध बचेगी, न मिट्टी बचेगी, और न जीवन की कोमलता।
विकास की दौड़ में कटते जंगल
2000 से 2020 के बीच भारत ने लगभग 2.33 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र गंवाया है। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि हरियाली की वह चीख है जिसे हमने अनसुना कर दिया। शहरीकरण, उद्योगीकरण और अवैध वृक्ष कटाई इसके पीछे के मुख्य कारण हैं। यह समय है जब हमें ‘विकास’ की परिभाषा को फिर से गढ़ने की ज़रूरत है—जो प्रकृति-विनाश की कीमत पर न हो।
वैश्विक पहल से मिल सकती है प्रेरणा
जर्मनी का ट्री प्रोटेक्शन एक्ट, जापान की सतोयामा पहल और हरियाणा की प्राण वायु देवता योजना ऐसे उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि विकास और पर्यावरण संतुलन साथ-साथ चल सकते हैं। विशेष रूप से हरियाणा की पहल, जिसमें 75 वर्ष से अधिक उम्र के पेड़ों को पेंशन दी जाती है, एक सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाती है। यह दिखाता है कि पेड़ हमारे पूर्वजों की तरह सम्मान के पात्र हैं।
तकनीक और कानून का संगम ज़रूरी
भारत में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 मौजूद तो है, लेकिन उसका प्रभावी क्रियान्वयन अब भी एक चुनौती बना हुआ है। अब वक्त है कि हम सिंगापुर की तर्ज पर हर नई इमारत के साथ पौधारोपण को अनिवार्य करें। हर शहर के लिए ग्रीन मास्टर प्लान बने, जिसमें न्यूनतम हरित क्षेत्र सुनिश्चित हों।
डिजिटल युग में सेटेलाइट इमेजरी और ड्रोन तकनीक की मदद से अवैध कटाई पर निगरानी की जा सकती है। कार्बन क्रेडिट मॉडल के तहत आम नागरिकों को भी पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
समाज और सरकार दोनों की साझा जिम्मेदारी
पेड़ बचाना महज़ सरकार की नहीं, हर नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है। स्कूलों में बच्चों को वृक्ष मित्र बनाना, कंपनियों को सीएसआर के तहत पौधारोपण के लिए प्रेरित करना, और ग्राम पंचायतों को हरे क्षेत्र बढ़ाने के लक्ष्य देना—यह सब मिलकर एक हरा भारत रच सकते हैं।
हर पेड़ है भविष्य की सांस
हमें समझना होगा कि पेड़ सिर्फ ऑक्सीजन के स्त्रोत नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, जीवन और सभ्यता के संवाहक हैं। जब हम किसी पेड़ को बचाते हैं, तो हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ, शुद्ध और सुंदर भविष्य सौंपते हैं।
आज समय की सबसे बड़ी मांग यही है—विकास के साथ-साथ हरियाली को भी बचाया जाए। पेड़ काटना नहीं, लगाना हमारी पहचान बने। तभी हम कह सकेंगे कि हमने पृथ्वी के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब