-कमलेश भारतीय

बिहार विधानसभा के आम चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हमारे नारनौंद के विधायक रामकुमार गौतम की तरह भावनात्मक अपील की है कि यह मेरा आखिरी चुनाव है और अंत भले का भला । समझ गये न ? कि आखिरी चुनाव है । जिता दीजिएगा । इससे मार्मिक या भावुक क्या अपील होगी ? किसी समय सुशासन बाबू के नाम से लोकप्रिय नीतीश कुमार के राज में शराबबंदी हुई लेकिन हरियाणा की तरह शराब खुलेआम बिकती रही । अपराध कम नही हुए और शुरूआत लालू यादव और कांग्रेस के साथ कर बीच राह में पाला बदला और नरेंद्र मोदी के साथ हो लिए । ये सब बातें जनता समझती है ।

जो तेजस्वी उपमुख्यमंत्री था वह अब विरोधी है बल्कि मुख्य विरोधी । बेशक नरेंद्र मोदी जी ने सारा खजाना खोल दिया बिहार के लिए लेकिन राह आसान नहीं दिखती । बड़ी कठिन है डगर । युवा वर्ग बनाम पुरानी पीढ़ी की लड़ाई है साफ साफ । लालू यादव तो रांची की जेल में हैं और उनके कर्म चुनाव में बताए जा रहे हैं । पूरी कुंडली खोली जा रही है । राहुल गांधी भी बिहार चक्कर लगा रहे हैं ईवीएम और मोदी की दोस्ती बता रहे हैं । ईबीएम की बात चुनाव से पहले उठा कर भाजपा की नजर में हार से बचने का बहाना बता रहे हैं । जीत गये तो ईबीएम सही । हार गये तो फिर बहाना है ही ।

चुनाव में दोषारोपण करना आम बात हो गयी । सही और स्वस्थ बहस नहीं होती । जो जरूरी है । चाहे हरियाणा का बरोदा उप चुनाव ही क्यों न हो । सार्थक बहस नहीं होती । जनता को लुभाने की कोशिश । नौकरियां देंगे पर बरोदा में ही क्यों याद आया ? बिहार में इतनी सारी योजनाएं चुनाव से ठीक पहले ही क्यों? यह विचार की बात है

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