भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। भाजपा के संगठन चुनाव बीरबल की खिचड़ी बनते जा रहे हैं और ज्यों-ज्यों समय गुजरता है, अनेक तरह की चर्चाएं जन्म लेती रहती हैं। कभी कहा जाता है कि कोरोना की वजह से लेट हो रहे हैं तो इस पर सवाल आता है कि चुनाव तो कोरोना से पहले ही हो जाने थे और कोरोना में कौन-से भाजपा के काम रुक रहे हैं। कभी बात आती है कि मुख्यमंत्री अपनी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते हैं लेकिन हाइकमान उस पर तैयार नहीं हो रहा है। कभी आवाज आती है कि भाजपा जातीय समीकरण साधने की चेष्टा में समझ नहीं पा रही है कि किस जाति का अध्यक्ष बनाया जाए। कभी यह बात उठती है कि भाजपा हारे हुए उम्मीदवार को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सुशोभित नहीं करना चाहती और अन्य कोई समर्थ भाजपा हाइकमान की समझ में आ नहीं रहा।

वर्तमान में भाजपाइयों में एक नई चर्चा ही सुनने में आ रही है। उनका कहना है कि आगामी 27 जून को सुभाष बराला की पुत्री का विवाह कांग्रेस के सुखबीर कटारिया के पुत्र से होना है, इसके पश्चात प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा की जाएगी।

इस बारे में कई भाजपाइयों से बात हुई। उनका कहना है कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं का सम्मान करती है और पुत्री की विवाह सामाजिक जीवन में बहुत महत्व रखता है। अत: सोच यह हो सकती है कि पुत्री के विवाह के समय सुभाष बराला ही भाजपा के अध्यक्ष रहें, यह सोच गलत भी नहीं। कन्या के विवाह में तो हमारी संस्कृति में सभी अधिक सहयोग करते हैं, इसलिए चंद दिनों बाद प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है।

हमने जो चर्चा में सुना, वह यह है कि इन दोनों की सगाई के अवसर पर भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा उपस्थित हुए थे। अब विवाह के समय उपस्थित न हों, ऐसा सोचना कुछ जंचता नहीं। अत: कह सकते हैं कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा एवं अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस विवाह में सम्मिलित होंगे और सुभाष बराला भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, इस नाते भाजपा के भी अनेक दिग्गज इस विवाह में वर-वधू को आशीर्वाद देने अवश्य उपस्थित होंगे। तो कह सकते हैं कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा भाजपा और कांग्रेस के मिलन के बाद ही होगी।

इस बारे में मैंने पूर्व मंत्री सुखबीर कटारिया से बात की तो उनका कहना था कि आप कैसी बात करते हैं। सामाजिक जीवन और राजनीतिक जीवन अलग होता है। यह पारिवारिक रिश्ता है, इसमें केवल पारिवारिक बात ही करनी चाहिए। इसको राजनीति से जोडक़र देखना किसी अवस्था में उचित नहीं होगा।

अब यह तो भाजपा हाइकमान ही जानें कि वास्तविकता क्या है। लोगों की आदत होती है अपनी-अपनी राय देने की। और जब इतने समय तक चुनाव लटक रहा है तो भाजपा के नेताओं में भी इसके प्रति जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। जिसके फलस्वरूप वे अनेक तरह की अटकलें लगाते रहते हैं कि इस वजह से लेट हो रहे हैं या फलां वजह से।

इस कारण से कुछ अपनी संभावनाएं यह भी जता रहे हैं कि शायद इसी वजह से प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव टल रहा है।

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