भारत सारथी/ऋषिप्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हरियाणा भाजपा संगठन पशोपेश में जी रहा है, क्योंकि समय पर होने वाले संगठन चुनाव की प्रक्रिया पूरी हुई नहीं है। प्रक्रिया पूरी न होने के कारण जो संगठन के पदाधिकारी हैं, वे अपने पद के कार्यकाल कह अनिश्चितता को समझते हुए संगठन के कार्यों में रूचि ले नहीं पा रहे हैं। अगर हम यह कहें कि हरियाणा भाजपा संगठन इस समय दिव्यांग की स्थिति में नजर आ रहा है। कोरोना की मार, संगठन में बिखराव, सक्रिय कार्यकर्ताओं में निराशा, प्रवक्ताओं का पत्रकारों के सवालों से भागना, ये सभी सवाल और स्थितियां खड़ी हो रही हैं भाजपा संगठन में।

विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाले भाजपाई हरियाणा में पिछले लगभग 6 माह में अपना संगठन चुनाव पूर्ण नहीं कर पाए हैं। चर्चा चलती रहती हैं चुनाव की। अब ये प्रदेश अध्यक्ष बनेगा या अब फलां प्रदेश अध्यक्ष बनेगा। अब इसमें बात आती है कि फलां व्यक्ति के हाइकमान से अच्छे से संबंध हैं, फलां के जेपी नड्डा से अच्छे संबंध हैं और फलां के संगठन में अच्छे संबंध हैं। तात्पर्य यह है कि भाजपाइयों की ही मानें तो चुनाव के नाम पर जबरदस्त लॉबिंग हो रही है। नाम बेशक चुनाव का हो लेकिन प्रदेश अध्यक्ष का पद बेहतर लॉबिंग करने वाले को ही प्राप्त होगा।

वर्तमान में चुनाव के लिए सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश अध्यक्ष अपनी मर्जी से भाजपा की भलाई के लिए कार्य करने वाला होगा या मनोहर लाल की मर्जी से कार्य करने वाला होगा। लोगों का कहना है कि यह चुनाव मनोहर लाल का केंद्र में वजन भी तय करेगा। भाजपा के अंदर से आवाजें आ रही हैं कि चुनाव जो बार-बार स्थगित हो रहे हैं, उसका कारण केवल यह है कि मुख्यमंत्री अपनी मर्जी का प्रदेश अध्यक्ष चाहते हैं, जबकि हरियाणा भाजपा के अनेक शीर्ष नेता राष्ट्रीय नेतृत्व को बता रहे हैं कि इसी प्रकार चला तो भाजपा का हरियाणा में वजूद समाप्त हो जाएगा इसलिए प्रदेश अध्यक्ष अनुभवी, संगठन को जानने वाला और स्वतंत्र निर्णय लेकर पार्टी हित में कार्य करने वाला होना चाहिए।

अब इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष एक दोराह आ खड़ा हुआ है कि प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री का समन्वय नहीं होगा तो भी संगठन को नुकसान होने की संभावनाएं हैं तथा यदि प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री की इच्छा अनुसार काम करने वाला हुआ तो भी पार्टी का नुकसान होना है, अब करें तो क्या करें।

कभी बातें उठती हैं कि प्रदेश अध्यक्ष जातीय समीकरण को देखकर तय किया जाएगा, कभी तय होता है कि मुख्यमंत्री सुभाष बराला को ही दोहराएंगे। वर्तमान में कैप्टन अभिमन्यु का नाम अधिक सशक्त रूप से आ रहा है लेकिन यहां भी नया शगूफा फेंक दिया गया है कि कैप्टन में केंद्र में कोई बड़ा पद दे देंगे और जाट नेतृत्व बनाए रखने के लिए बराला को ही यहां दोहरा देंगे।

कभी वर्चुअल रैली में जब मुख्यमंत्री सांसद रतनलाल कटारिया को मंच पर बिठाते हैं तो चर्चा चलती है कि कहीं दलितों के नाम से रतन लाल कटारिया को प्रदेश अध्यक्ष बना देंगे। उसी के साथ नई चर्चाएं उठीं कि रतन लाल कटारिया एक बार प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं तो कृष्णपाल गुर्जर दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। वह भी ओबीसी वोटों का बड़ा जनाधार अपने साथ रखते हैं। और फिर उसके बाद प्रो. रामबिलास शर्म का नाम सामने आया कि वह तीन बार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और परिणाम के रूप में देखो तो 2014 में भाजपा को सत्ता में लाने के समय वहीं प्रदेश अध्यक्ष थे तथा हर जिले में उनकी स्वीकार्यता भी है।

चर्चा बढ़ी तो यह भी बात हुई कि ब्राह्मणों में गर्दन काट दूंगा वाले डायलॉग से कुछ नाराजगी है तो ब्राह्मण अध्यक्ष बना चाहिए। इन परिस्थितियों को देख मुख्यमंत्री संदीप जोशी का नाम ले आए। तात्पर्य यह है कि प्रदेश अध्यक्ष के लिए ऐसे नाम निकल रहे हैं, जैसे बरसात के मौसम में मेंढक निकल रहे हैं।

वर्तमान में दो दिन के लिए चीन में शहीद हुए भारतीयों के लिए भाजपा ने कार्यक्रम स्थगित किए हैं। अत: यह समझों कि जो सुबह-शाम प्रदेश अध्यक्ष की घोषणाएं हैं, वे सोमवार तक के लिए टल ही गईं क्योंकि दो दिन तो शोक और रविवार को ग्रहण। फिर यह भी बीरबल की खिचड़ी है, तो देखो कब तक पकती है?

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