-कमलेश भारतीय

राज्यसभा चुनावों की घोषणा होते ही पाला बदल का खेल शुरू हो गया । कांग्रेस को विधायकों को तोड़ने में भाजपा को मज़ा आता है और ऐसे लगता है कि कांग्रेस विधायक इसी ताक में रहते हैं कि कोई उन पर दांव लगाए यानी बिकने को तैयार । जब खरीदने और बिकने वाला राजी तो क्या करेगा काजी ? पर लोकतंत्र सरेआम बिक रहा हो और हम मूकदर्शक बने रहें,, यह भी तो पाप समान है । पहले यह खेल मध्यप्रदेश में हुआ क्योंकि वहां चर्चा चली कि प्रियंका गांधी बाड्रा को इस प्रदेश से राज्यसभा भेजा जाए । बस ।।ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तेवर बदले और भाजपा में जा मिले जनसेवा के नाम पर और कांग्रेस में तो उनका दम बुरी तरह घुटने लगा था । इस तरह मध्यप्रदेश में राज्यसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने अपनी सरकार खो दी वो भी अपने ही विश्वासपात्र से । खूब खरीद फरोख्त का खेल चला । होटल दर होटल । मज़े ही मज़े । विधायकों की मौज ही मौज ।

अब बारी गुजरात की । दो विधायक कांग्रेस में दम घुटने से पार्टी छोड़ गये । दावा किया जा रहा है कि कुछ और विधायक कांग्रेस में दम घुटने की शिकायत करते हुए बाहर आ जायेंगे जिससे कि भाजपा अपने प्रतिनिधियों को राज्यसभा में आसानी से भेजने में सफल हो सके । कोरोना से लड़ाई के बीच आप सबने देखा कि अमित शाह अज्ञातवास में रहे । वे इसी काम पर जुटे थे । उन्हें कोरोना से कुछ लेना देना नहीं था । उन्हें तो पार्टी बचाने का काम मिला है , देश कोई और बचा लेगा । यह भी जरूरी काम है । तोड़ फोड़ और खरीद खरोख्त । हर किसी के बस का नहीं ।

भाजपा ने इस वायरस को अपने शासनकाल में खूब फैलाया । कांग्रेस इसका कोई वैक्सीन नहीं निकाल सकी । कोशिश भी नहीं की । ले जाओ जो पसंद हो । खुली छूट । बारी महाराष्ट्र की भी है । देखो कब गुल खिलता है ? किस किसको रोकें और जाने वाले रुकते हैं भला ? यह वायरस ऐसा ही है । लगा तो फिर बचता नहीं । पार्टी बदलता ही बदलता है । अब इस लोकतंत्र और गरिमा वगैरह का रोने का क्या लाभ ? यह रोना तो बेकार है । बस । तोड़ो । तोड़ो और चुनाव जीतो जीतो । कौन कम्बखत लोकतंत्र की परवाह करता है पारो,,

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