विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025 और समय-आधारित (टाइम-ऑफ-डे) टैरिफ नियम नीति 

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टाइम-ऑफ-डे टैरिफ वह व्यवस्था है जिसमें बिजली की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि बिजली किस समय उपयोग की जा रही है

विज़न 2047 में टाइम-ऑफ-डे टैरिफ व्यवस्था भारत को न केवल ऊर्जा दक्ष बनाएगी, बल्कि उसे वैश्विक ऊर्जा संक्रमण की मुख्यधारा में भी स्थापित करेगी

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया-वैश्विक स्तर पर भारत का बिजली क्षेत्र अब एक ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। दशकों तक देश में बिजली बिलिंग की प्रणाली मुख्यतः यूनिट-आधारित रही, जहाँ उपभोक्ता द्वारा खपत की गई कुल बिजली के आधार पर शुल्क तय होता था और समय का कोई विशेष महत्व नहीं होता था। किंतु बदलती ऊर्जा आवश्यकताओं, बढ़ती मांग, नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार और ग्रिड प्रबंधन की जटिलताओं ने इस परंपरागत मॉडल को अप्रासंगिक बना दिया है। इसी पृष्ठभूमि में भारत सरकार और विद्युत नियामक संस्थाएँ समय-आधारित बिजली टैरिफ, अर्थात टाइम-ऑफ-डे (टीओडी) टैरिफ, को लागू करने की दिशा में तेज़ी से अग्रसर हैं। इसके तहत दिन, सुबह, शाम और रात के अलग-अलग समय पर बिजली की दरें अलग होंगी, और यह व्यवस्था अगले 3 से 6 महीनों में चरणबद्ध रूप से पूरे देश में लागू की जा रही है।

टाइम-ऑफ-डे टैरिफ की अवधारणा और आवश्यकता

टाइम-ऑफ-डे टैरिफ वह व्यवस्था है जिसमें बिजली की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि बिजली किस समय उपयोग की जा रही है। उदाहरण के लिए, जब बिजली की मांग अत्यधिक होती है—जैसे शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक—तब दरें अधिक होंगी, जबकि देर रात या दोपहर जैसे कम मांग वाले समय में बिजली सस्ती होगी। भारत में बिजली की मांग दिन के अलग-अलग समय पर अत्यंत असमान रहती है। पीक आवर्स में ग्रिड पर भारी दबाव पड़ता है, महंगे पावर प्लांट चालू करने पड़ते हैं और कभी-कभी बिजली कटौती तक करनी पड़ती है, जबकि ऑफ-पीक समय में उत्पादन क्षमता का बड़ा हिस्सा निष्क्रिय रहता है। टीओडी टैरिफ का मूल उद्देश्य मांग को संतुलित करना, ग्रिड की स्थिरता बढ़ाना और उपभोक्ताओं को समय के अनुसार अपनी खपत बदलने के लिए प्रेरित करना है।

विद्युत (संशोधन) विधेयक 2025: 

कानूनी आधार और दृष्टि मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र), यह मानता हूँ कि विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2025 आधुनिक बिजली व्यवस्था की आवश्यकता और ऊर्जा संक्रमण की राष्ट्रीय रणनीति के अनुरूप तैयार किया गया एक प्रमुख सुधारात्मक प्रस्ताव है। इसका उद्देश्य वितरण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना, नियामकीय ओवरसाइट को सुदृढ़ करना और उपभोक्ताओं को उनकी वास्तविक तथा समय-संवेदी खपत के अनुसार भुगतान के लिए प्रेरित करना है। यह विधेयक पारंपरिक यूनिफ़ॉर्म-टैरिफ मॉडल से हटकर मांग-आधारित और समय-संवेदी मूल्य निर्धारण की दिशा में एक निर्णायक कदम है, जिसमें टाइम-ऑफ-डे टैरिफ सबसे प्रभावी उपकरण के रूप में उभरता है।

विद्युत अधिनियम, 2003 और समय-आधारित टैरिफ

भारत में बिजली क्षेत्र का मूल कानूनी ढांचा विद्युत अधिनियम, 2003 है। यह अधिनियम केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को बिजली उत्पादन, वितरण और टैरिफ निर्धारण के लिए व्यापक अधिकार देता है। अधिनियम की धारा 61 और 62 विशेष रूप से टैरिफ निर्धारण से संबंधित हैं, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि टैरिफ आर्थिक दक्षता, उपभोक्ता हित और संसाधनों के कुशल उपयोग को ध्यान में रखकर तय किए जाएँ। समय-आधारित टैरिफ इसी भावना के अनुरूप है, क्योंकि यह बिजली संसाधनों के बेहतर उपयोग और लागत-आधारित मूल्य निर्धारण को प्रोत्साहित करता है। अधिनियम किसी एक समान दर की बाध्यता नहीं लगाता, बल्कि नियामक आयोगों को नवाचार की स्वतंत्रता देता है।

राष्ट्रीय टैरिफ नीति 2016 और 2023 संशोधन की भूमिका

टाइम-ऑफ-डे टैरिफ को वास्तविक और व्यापक रूप से लागू करने का आधार राष्ट्रीय टैरिफ नीति के माध्यम से तैयार किया गया। 2016 की टैरिफ नीति में पहली बार यह संकेत दिया गया कि बड़े उपभोक्ताओं के लिए समय-आधारित टैरिफ अपनाया जाना चाहिए, किंतु यह प्रावधान सीमित और वैकल्पिक था। वास्तविक परिवर्तन 2023 में किए गए टैरिफ नीति संशोधन से आया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि वितरण कंपनियों को सभी उपभोक्ताओं के लिए चरणबद्ध तरीके से टाइम-ऑफ-डे टैरिफ लागू करना होगा। स्मार्ट मीटर वाले उपभोक्ताओं को प्राथमिकता दी जाएगी और राज्य विद्युत नियामक आयोगों को पीक तथा ऑफ-पीक घंटों की अधिसूचना जारी करनी होगी। यही संशोधन वह प्रत्यक्ष नीति आधार है जिसके तहत अब देशभर में दिन-रात के अनुसार बिजली दरें तय की जा रही हैं।

राष्ट्रीय विद्युत नीति,ऊर्जा संक्रमण और स्मार्ट मीटरिंग

भारत की राष्ट्रीय विद्युत नीति का मूल उद्देश्य सस्ती, विश्वसनीय और सतत बिजली उपलब्ध कराना है। नीति यह स्वीकार करती है कि भविष्य की ऊर्जा व्यवस्था में सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी लगातार बढ़ेगी। चूँकि ये स्रोत समय-निर्भर होते हैं, इसलिए पारंपरिक फ्लैट टैरिफ उनके अनुकूल नहीं है। दिन में जब सौर ऊर्जा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है, उस समय बिजली सस्ती होनी चाहिए, जबकि रात में, जब सौर उत्पादन नहीं होता, दरें स्वाभाविक रूप से अधिक होंगी। टीओडी टैरिफ इसी तार्किक ऊर्जा संतुलन को व्यवहार में उतारता है।यह व्यवस्था स्मार्ट मीटरिंग के बिना संभव नहीं है। इसी कारण भारत सरकार ने रीवैंप्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) के तहत करोड़ों स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य रखा है। स्मार्ट मीटर रियल-टाइम में खपत दर्ज करते हैं और समय-आधारित बिलिंग को संभव बनाते हैं, जिससे टैरिफ अधिक पारदर्शी और तकनीक-आधारित बनता है।

राज्य विद्युत नियामक आयोगों की भूमिका

हालाँकि नीति और व्यापक दिशा-निर्देश केंद्र सरकार तय करती है, लेकिन वास्तविक टैरिफ निर्धारण का अधिकार राज्य विद्युत नियामक आयोगों के पास होता है। प्रत्येक राज्य अपने भौगोलिक, आर्थिक और खपत पैटर्न के अनुसार पीक और ऑफ-पीक समय निर्धारित करेगा। इसका अर्थ यह है कि दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु या उत्तर प्रदेश में पीक आवर्स अलग-अलग हो सकते हैं, किंतु मूल सिद्धांत समान रहेगा—भीड़ वाले समय में महंगी बिजली और कम मांग वाले समय में सस्ती बिजली।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव और भारत की स्थिति

टाइम-ऑफ-डे टैरिफ कोई नया या केवल भारतीय प्रयोग नहीं है। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में यह प्रणाली वर्षों से लागू है। अंतरराष्ट्रीय अनुभव बताते हैं कि टीओडी टैरिफ से पीक डिमांड में 10 से 20 प्रतिशत तक कमी आई है, ग्रिड फेल्योर और ब्लैकआउट की घटनाएँ घटी हैं और उपभोक्ताओं की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि हुई है। भारत अब इसी वैश्विक ऊर्जा सुधार पथ पर आगे बढ़ रहा है, किंतु अपने सामाजिक-आर्थिक संदर्भ और उपभोक्ता संरचना को ध्यान में रखते हुए।

उपभोक्ताओं पर प्रभाव, अवसर और चुनौतियाँ

इस नई प्रणाली के तहत उपभोक्ताओं को यह समझना होगा कि बिजली अब केवल कितनी उपयोग की जा रही है, यह नहीं, बल्कि कब उपयोग की जा रही है, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जो उपभोक्ता वॉशिंग मशीन, पानी की मोटर, इलेक्ट्रिक चार्जिंग जैसे भारी उपकरण ऑफ-पीक समय में चलाएँगे, उनके बिजली बिल कम होंगे। हालाँकि शुरुआती चरण में जागरूकता की कमी, तकनीकी समझ और व्यवहारिक बदलाव जैसी चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं। इसी कारण नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि टीओडी टैरिफ को क्रमिक रूप से लागू किया जाएगा, न कि एक झटके में।

अतः उपरोक्त समग्र विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारत में समय-आधारित बिजली टैरिफ किसी एक आदेश या तात्कालिक निर्णय का परिणाम नहीं है। यह विद्युत अधिनियम, 2003, राष्ट्रीय टैरिफ नीति (संशोधित 2023), राष्ट्रीय विद्युत नीति और आरडीएसएस जैसी योजनाओं के संयुक्त प्रभाव से उभरा एक गहन संरचनात्मक सुधार है। यह प्रणाली भारत को न केवल ऊर्जा दक्ष बनाएगी, बल्कि उसे वैश्विक ऊर्जा संक्रमण की मुख्यधारा में भी स्थापित करेगी। आने वाले वर्षों में बिजली केवल उपभोग की वस्तु नहीं रहेगी, बल्कि समय-संवेदी आर्थिक संसाधन के रूप में उभरेगी और यही इस ऐतिहासिक बदलाव का मूल उद्देश्य है।विजन 2047 और भारत की ऊर्जा भविष्य-दृष्टि विजन 2047 के परिप्रेक्ष्य में टाइम-ऑफ-डे टैरिफ व्यवस्था भारत को ऊर्जा दक्ष, तकनीक-सक्षम और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगी। यह सुधार न केवल उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन लाएगा, बल्कि भारत को स्वच्छ, संतुलित और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य की ओर अग्रसर करेगा।

-संकलनकर्ता व लेखक: कर विशेषज्ञ स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए (एटीसी), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र

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Author: Bharat Sarathi

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