एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

प्रस्तावना
भ्रष्टाचार एक ऐसा बीज है, जो व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। जैसे ही यह बीज पनपता है, यह न केवल वर्तमान को बल्कि रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी को भी प्रभावित करता है। प्रसिद्ध गीतकार कवि प्रदीप का गीत “कोई लाख करे चतुराई, कर्म का लेख मिटे ना रे भाई” इस सच्चाई को उजागर करता है कि भ्रष्टाचार का दुष्परिणाम अनिवार्य है।
समाज में भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार के कारण समाज में नैतिकता का पतन होता है। समाज ही सभी अच्छाइयों और बुराइयों का स्रोत होता है। समाज के लोग ही सरकारी पदों पर काबिज होते हैं, इसलिए समाज में सुधार की आवश्यकता है। शिक्षा के माध्यम से युवा पीढ़ी में नैतिक मूल्यों का संचार किया जाना चाहिए। माता-पिता, शिक्षक और वरिष्ठ नागरिकों का दायित्व है कि वे बच्चों को सही मार्ग दिखाएं।
सरकारी प्रयास
केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण के लिए केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली (सीपीजीआरएएमएस) शुरू की है। यह प्रणाली 24×7 उपलब्ध है और नागरिकों को सरकारी विभागों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अवसर प्रदान करती है।
नवीनतम सुधारों के तहत शिकायत निवारण की समयसीमा 30 दिन से घटाकर 21 दिन कर दी गई है। शिकायतों का समाधान नोडल अधिकारियों द्वारा समयबद्ध तरीके से किया जाता है। नई सुविधाओं में व्हाट्सएप/चैटबॉट, वॉयस-टू-टेक्स्ट लॉजिंग और मशीन लर्निंग-आधारित ऑटो-रिप्लाई शामिल हैं।
निष्कर्ष
भ्रष्टाचार से बचने के लिए समाज में नैतिकता का प्रचार-प्रसार आवश्यक है। भ्रष्टाचार के बीज को पनपने से रोकने के लिए शिक्षा, पारदर्शिता और जागरूकता पर बल देना होगा।
आइए, मिलकर भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करें।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र