आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में नीली अर्थव्यवस्था एक महत्वपूर्ण घटक हैं, जिसे समृद्ध करने विज्ञान प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

खिलौने किसी भी देश की सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। आधुनिक समय में भारतीय खिलौना उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और 2028 तक इसके 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। हालाँकि, प्लास्टिक खिलौनों के बढ़ते उपयोग के कारण पारंपरिक भारतीय खिलौनों का अस्तित्व संकट में है। ऐसे में, स्वदेशी खिलौना उद्योग को बढ़ावा देना और पर्यावरण हितैषी खिलौनों को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है।

भारतीय खिलौना उद्योग का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत में खिलौनों का इतिहास बहुत पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से प्राप्त मिट्टी और लकड़ी के खिलौने इस बात का प्रमाण हैं कि प्राचीन भारत में भी खिलौनों का विशेष महत्व था। समय के साथ, खिलौनों के स्वरूप में बदलाव आया, और आज डिजिटल एवं प्लास्टिक खिलौनों का दौर आ चुका है। हालांकि, ये खिलौने पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं और पारंपरिक भारतीय शिल्प को पीछे छोड़ रहे हैं।

स्वदेशी खिलौनों की महत्ता

स्वदेशी खिलौने केवल बच्चों के मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी हैं। भारत में हस्तनिर्मित खिलौनों की समृद्ध परंपरा रही है। महाराष्ट्र में ‘पोला’ उत्सव के दौरान लकड़ी के बैल बनाए जाते हैं, जिसे बच्चे घर-घर लेकर जाते हैं। इसी तरह, अन्य राज्यों में भी पारंपरिक खिलौने बनाए जाते हैं। ऐसे खिलौनों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने के लिए सरकार को एक ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

इंडिया टॉय फेयर और सरकारी प्रयास

भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भारतीय खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘इंडिया टॉय फेयर’ के उद्घाटन समारोह में भारतीय खिलौनों की ऐतिहासिक महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजो-दड़ो और हड़प्पा काल के खिलौनों पर आज भी शोध हो रहे हैं। भारतीय खिलौनों का विश्व के अन्य देशों पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

शिक्षा में खिलौनों की भूमिका

हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में शिक्षा राज्यमंत्री ने खिलौनों को बच्चों के बौद्धिक विकास और रचनात्मकता को बढ़ाने में सहायक बताया। खिलौना-आधारित शिक्षण पद्धति से बच्चे खेल-खेल में नई चीजें सीख सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय खिलौनों को शिक्षा के क्षेत्र में शामिल कर, सीखने की प्रक्रिया को और अधिक रोचक बनाया जा सकता है।

प्लास्टिक खिलौनों से पर्यावरण को खतरा

आज बाजार में प्लास्टिक खिलौनों का दबदबा है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं। ये खिलौने न केवल प्रदूषण फैलाते हैं, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं। इस समस्या का समाधान स्वदेशी और पर्यावरण-अनुकूल खिलौनों के उपयोग को बढ़ावा देने में है।

निष्कर्ष

भारतीय खिलौना उद्योग के पास वैश्विक बाजार में अपना स्थान बनाने का सुनहरा अवसर है। इसके लिए पारंपरिक खिलौनों को आधुनिक तकनीक से जोड़ते हुए, उनकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर ध्यान देना आवश्यक है। यदि सरकार, उद्योग जगत और समाज मिलकर स्वदेशी खिलौनों को बढ़ावा दें, तो यह न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करेगा।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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