संस्थाओं के निर्माण एवं समृद्धि का देश के विकास पर प्रभाव के शोध के लिए तीन वैज्ञानिकों को मिला 2024 का अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार हिसार – हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रो: (डा: ) आर. के. खटकड़ ने सीनियर सिटीजन क्लब में आयोजित नोबेल पुरस्कार शृंखला कार्यक्रम में अपने व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि इस वर्ष का अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार डारोन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन को संयुक्त रूप से “इस बात के अध्ययन के लिए दिया गया कि संस्थाएं कैसे बनती हैं और समृद्धि को कैसे प्रभावित करती हैं”। डॉ खटकड़ ने कहा कि यह पुरस्कार उनके ऐतिहासिक शोध “देशों के बीच आय के भारी अंतर को समझना व मिटाना को चुनौती मानते हुए समझाने की कोशिश पर मिला है। इन तीन अर्थशास्त्रियों ने अपने शोध द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि “ क्यों कोई देश अपने विकास में सफल व असफल होता है” इन अर्थशास्त्रियों का शोध प्रजातंत्र को मज़बूत बनाने पर बल देता है । उनका मानना है कि जिन देशों ने अपने संस्थाओं का प्रजातांत्रिक तरीक़े से विकास व संचालन किया, उनका विकास टिकाऊ व प्रभावी रहा है। इसका उदाहरण देते उन्होंने बताया कि जैसे मैक्सिको कभी अमेरिका व कनाडा के मुक़ाबले बहुत ही विकसित देश था परंतु आज के दिन अमेरिका व कनाडा उससे बहुत विकसित देश बन गए हैं क्योंकि उन्होंने अपने देशों में संस्थाओं का प्रजातांत्रिक तरीक़े से विकास किया व बुनियादी अनुसंधान तथा प्रायोगिक एवं तकनीकी शोध का समन्वय रखते हुए शोध पर निवेश किया। इसी प्रकार तेहरवीं शताब्दी तक भारत भी अपनी शिक्षण व् शोध संस्थाओं की वजह से एक विकसित देश था। अर्थशास्त्रियों के पुरस्कृत शोध के ज़रिए यह भी दर्शाने की कोशिश की है कि पूरी दुनिया में औपनिवेशिक शासन का अध्ययन करने के बाद पाया कि उपनिवशकों ने उपनिवेशों का दो तरह से दोहन किया – जहाँ आवादी कम थी वहाँ कालोनियां बसाई गई (जैसे की यूरोपीय व अमेरिका जैसे देश) तथा संस्थाओं को अधिक समावेशी बनाया गया। लेकिन जहाँ आबादी ज़्यादा थी (एशियन व अन्य कम विकसित देश) वहाँ के संसाधनों व निवासियों का शोषण किया गया। जैसे कि अंग्रेजों ने भारत व अन्य अविकसित देशों के संसाधनों का दोहन कर अपनी कालोनियों (देशों) को विकसित व पोषण किया। अगर उनके शोध के आधार पर भारत की आर्थिक व भौतिक स्थिति का मूल्यांकन करें तो पाएंगे कि तेहरवीं शताब्दी तक भारत एक विकसित देश था। अठारहवीं व उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक दुनिया की कुल सकल घरेलू उत्पाद ( जी डीपी) का क्रमश 32 व 26 प्रतिशत तक भारत देता था। लेकिन अब यह घटकर 2.3 प्रतिशत ही रह गया है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस आधार को कमज़ोर भी माना है । उनका कहना है कि चीन प्रजातंत्र न रहते हुए भी उन्नति कर रहा है जबकि भारत का प्रजातंत्र, संविधान और उससे बनी संस्थाएं और क़ानून प्रजातांत्रिक रहे हैं फिर भी उस गति से विकास नहीं हो पाया। अगर हम इसका मुख्य करण ढूंढने की कोशिश करें तो पाएंगे कि भारत ने संस्थाएं तो बना दी परंतु उनका संचालन व पोषण सही ढंग से नहीं किया। भारत अभी भी अपने ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट – जी डी पी यानी ( सकल घरेलू उत्पाद ) का केवल मात्र 0.67 प्रतिशत ही शोध पर ख़र्च करता है जोकि ग्लोबल औसत 1.8 प्रतिशत से भी कम है। डा खटकड़ ने कहा कि इस संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर डेरॉन ऐसमोग्लू और जेम्स रॉबिन्सन ने किताब “ व्हाई नेशंस फ़ेल “ लिखी है- यह किताब आर्थिक विकास पर लिखी गई महान किताबों में से एक मानी जाती है। इस किताब में लेखक ने यह तर्क दिया है कि किसी देश की सफलता का श्रेय उस सीमा तक दिया जा सकता है, जिस सीमा तक उसकी संस्थाएं समावेशी हों। लेखक के मुताबिक, समावेशी राजनीतिक और आर्थिक संस्थाएं, मानव और संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा करती हैं। इससे निवेश और नवाचार को बढ़ावा मिलता है, जिससे देश सफल होता है। इस पुस्तक में उन्होंने तर्क दिया है कि चीन का वर्तमान विकास जल्द ही अवसान पर होगा – जोकि अब के हालातों का मूल्यांकन करते हुए लगता है कि यह तर्क सही साबित होता लग रहा है। चीन का विकास हाल के वर्षों में उतार की तरफ़ जाता हुआ लगता है और भारत व अन्य विकासशील देशों का विकास चढ़ाव की तरफ़ जाता हुआ लग रहा है। अगर भारत सही नीतियों व संसाधनों का सदुपयोग व संस्थाओं का अधिक समावेशी व प्रजातांत्रिक विकास करते हुए, सही तरीक़े से संचालन करते हुए, अपने शोध /अनुसंधान और विकास कार्यों पर ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2-3% निवेश करता है, तो विकसित देशों की श्रेणी में अपना स्थान बना सकता है। मंच संचालन करते हुए एच ए यू के अर्थशास्त्र विभाग से सेवानिवृत्त प्रो: वी: पी : मेहता ने कहा कि डा: खटकड़ जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर सराहनीय कार्य किया है। डा: मेहता ने कहा कि इस बार का अर्थ शास्त्र में नोबेल पुरस्कार का शोध सामाजिक संस्थाओं का समर्थन एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है । क्लब के महासचिव डा: जे. के . डाँग ने मुख्य वक्ता का धन्यवाद करते हुए कहा कि इन नोबेल पुरस्कार विजेताओं के ऐतिहासिक शोध को अगर सरल भाषा में व्याख्या करें तो उनकी खोज से पता चलता है कि संस्थान कैसे बनते हैं और लोगों की खुशहाली को कैसे प्रभावित करते हैं। उनकी रिसर्च बताती है कि मजबूत और निष्पक्ष संस्थान जैसे-अच्छी सरकारें और कानून व्यवस्था लोगों की जिंदगी पर सकारात्मक असर डालते हैं । डा: डाँग ने कहा कि आर्थिक विज्ञान पुरस्कार समिति के अध्यक्ष का कहना है कि देशों के बीच आय में भारी अंतर को कम करना ही हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। चर्चा में भाग लेते हुए दूरदर्शन के भूतपूर्व निदेशक श्री अजीत सिंह जो 50 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हैं , उनका कहना है कि भारत बढ़ती अर्थव्यवस्था है । देश हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है । अन्तर्राष्ट्रीय मिडिया में जो तस्वीर दिखाई जाती है , वह पूरी तरह से सही नहीं है । उनका मानना है कि नि: संदेह शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली अति उत्तम है परंतु सोवियत संघ और चीन ने अलग शासन प्रणाली में अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति की है । हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सोशियोलॉजी विभाग पूर्व अध्यक्ष डा : आर के पूनिया ने कहा कि अगर भारत ने आर्थिक रूप से विश्वशक्ति बनना है तो उसे मानव संसाधन विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर बल देना होगा। उन्होंने कहा कि संस्थानों की स्वायतता विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। श्री एस. एस. लाठर, श्री करतार सिंह , श्री आर. आर . गोयल , डा: अजीत कुण्डू , डा: एस. के . अग्रवाल, डा: आर. पी. खरब, डा: रमेश हुडा , श्री उम्मेद सिंह एवं डा: ए. एल. खुराना ने भी चर्चा में भाग लिया।लगभग 30 सदस्यों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया । Post navigation साहित्य आज तक ……….. या साहित्य का बाज़ार ?