दिवाली पर मां लक्ष्मी के साथ क्यों होती है दत्तक पुत्र गणेश की पूजा? दिपावली पर रात में हीं क्यों की जाती है पूजा, क्या इसके पिछे पुराणों से जुड़ी है वजह? जानें रहस्य दीपमाला में क्यों जलाया जाता है एक बड़ा दीया? अशोक कुमार कौशिक दिवाली का त्योहार सबसे खास त्योहारों में से एक माना जाता है। रोशनी का त्योहार दिवाली, देश समेत पूरी दुनिया में दिवाली मनाई जाती है। दिवाली भारतीय संस्कृति का बहुत ही महत्वपूर्ण और बड़ा त्योहार माना जाता है। दिवाली का त्योहार धन प्राप्ति के लिए सबसे शुभ दिन है। दिवाली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूजा तक जारी रहता है, जहां धनतेरस, छोटी दिवाली, दिवाली (लक्ष्मी गणेश पूजा), गोवर्धन पूजा और भैया दूजा पांच दिनों तक मनाए जाते हैं। दिवाली की रात यानि की प्रदोष ऋतु के दौरान घरों, कार्यालयों, दुकानों, कारखानों आदि में लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती है। वैसे तो पूरे साल देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करना लाभकारी होता है, लेकिन दिवाली की रात देवी लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। दीपावली से एक दिन पूर्व हर्षोल्लास के साथ छोटी दिवाली परंपरागत ढंग से मनाई जाएगी। इस दिन पापों के प्रतीक नरकासुर के नाश की कामना से चार ज्योत वाले दीप जलाए जाते हैं। छोटी दीपावली पर शाम को घर के बाहर चौमुखा दीप जलाने की परंपरा है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का संहार किया था। इसलिए छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। नदी घाटों पर नरक चतुर्दशी पर नदी स्नान की प्राचीन मान्यता भी है। क्यों मनाई जाती है छोटी वाली छोटी दीपावली मनाने को लेकर कहा जाता है कि रति देव नाम के एक राजा थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन एक दिन उनके सामने यमदूत आ खड़े हो गए। जिसे देख राजा को अचंभा हुआ और उन्होंने कहा कि मैंने तो कभी कोई पाप नहीं किया फिर भी क्या मुझे नरक जाना होगा। यह सुनकर यमदूत ने कहा कि एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप का फल है। यह सुनकर राजा ने प्रायश्चित करने के लिए यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष का समय दे दिया। राजा ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें सारी कहानी सुनाकर अपनी इस दुविधा से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। हर साल दिवाली कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। जहां पूरे साल देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है वहीं दिवाली पर सभी लोग देवी लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं। बहुत कम ही लोग जानते हैं कि देवी लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है और रिद्धि सिद्धि कौन हैं। साथ ही दिवाली पूजन में शुभ-लाभ क्यों लिखा जाता है? आइए जानते हैं धार्मिक मान्यताएं क्या हैं? पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी वैकुंठ में चर्चा कर रहे थे। देवी लक्ष्मी ने श्री हरि विष्णु से कहा कि लोग सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। मैं भक्तों को अतुलनीय धन, सुख, समृद्धि आदि प्रदान करती हूं। दिवाली पर मेरी पूजा करना र्सव श्रेष्ठ होता है। तब भगवान विष्णु ने कहा, “जब तक कोई स्त्री माँ नहीं बनती तब तक वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकती।” आप निसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं। यह बात जब लक्ष्मी की मां को पता चली तो वह बहुत दुखी हुईं। अपने पुत्र के वियोग में देवी लक्ष्मी को दुःखी देखकर माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बिठा दिया। तभी से भगवान गणेश को माता लक्ष्मी का दत्तक पुत्र कहा जाता है। श्रीगणेश को पाकर माता लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुईं। लक्ष्मी माता ने गणेश जी को वरदान दिया कि जो मेरे साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, उसके पास लक्ष्मी कभी नहीं टिकेंगी। दिवाली की रात यानि की प्रदोष ऋतु के दौरान घरों, कार्यालयों, दुकानों, कारखानों आदि में लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती है। वैसे तो पूरे साल देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करना लाभकारी होता है, लेकिन दिवाली की रात देवी लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। हर साल दिवाली कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। जहां पूरे साल देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है वहीं दिवाली पर सभी लोग देवी लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं। बहुत कम ही लोग जानते हैं कि देवी लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है और रिद्धि सिद्धि कौन हैं। साथ ही दिवाली पूजन में शुभ-लाभ क्यों लिखा जाता है? आइए जानते हैं क्यों लिखा जाता है शुभ लाभ? भगवान गणेश सभी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते हैं। जहां भी भगवान गणेश की पूजा की जाती है, वहां उनकी पत्नी रिद्धि सिद्धि और उनके बेटे शुभ और लाभ भी मौजूद होते हैं। इससे घर में विघ्न टल जाता है। रिद्धि और सिद्धि भगवान ब्रह्मा की पुत्रियां हैं। माँ हमेशा अपने बेटे के दाहिने हाथ पर बैठती है। इसलिए गणेश जी की मूर्ति को देवी मां की मूर्ति के बाईं ओर रखा जाना चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिवाली की पूजा रात में ही क्यों की जाती है? हर साल दिवाली पर लक्ष्मी पूजा हमेशा रात में या सूर्यास्त के बाद की जाती है। इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और ज्योतिषीय कारण हैं, जो इस परंपरा को और खास बनाते हैं। वैसे तो अन्य दिनों में सुबह या शाम किसी भी समय मां लक्ष्मी की पूजा की जा सकती है, लेकिन दिवाली पर रात में पूजा करना शुभ माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद करनी चाहिए। ये है धार्मिक मान्यता हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार रात का समय मां लक्ष्मी का प्रिय समय होता है। दिवाली के दिन अमावस्या होती है, जब चांद दिखाई नहीं देता और बहुत अंधेरा होता है। ऐसे में दिवाली की रात घरों में दीये जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। मां लक्ष्मी को ‘ज्योति’ का प्रतीक माना जाता है और रात में दीये जलाने से अज्ञानता और अंधकार को दूर करने का संदेश मिलता है। पौराणिक मान्यता मिलती है पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं और तब से दिवाली के दिन उनकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन की यह घटना भी रात में हुई थी, जिसके कारण लक्ष्मी पूजा के लिए रात का समय अधिक शुभ माना जाता है। एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि देवी लक्ष्मी रात में पृथ्वी पर विचरण करती हैं और उन घरों में निवास करती हैं जो प्रकाशवान और साफ-सुथरे होते हैं। दिवाली (दीपावली) क्या है सही नाम, दिवाली (दीपावली) दोनों ही सही नाम है, हालांकि सबसे सटीक शब्द दीपावली है यानी दीपों का पर्व। दिवाली क्यों मनाते हैं? दीपावली क्यों मनाई जाती है, भगवान राम को 14 साल के लिए वनवास भेजा गया, इस दौरान एक समय ऐसा आया जब लंकापति रावण की बुरी नजर माता सीता पर पड़ी, उसने छल करके अपना रूप बदलकर भगवान राम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में माता सीता का हरण कर लिया। इसके बाद भगवान राम और लक्ष्मण ने माता सीता को चारों दिशाओं में ढूंढ़ा। ढूंढते ढूंढते उनकी मुलाकात वानर सेना के राजा सुग्रीव और सेनापति हनुमान से हुई। सुग्रीव की सेना ने माता सीता की खोज के लिए भगवान राम की मदद की। खोज अभियान के दौरान पता चला कि माता सीता समुद्र पार लंका में हैं। इसके बाद राम सेतु तैयार किया गया और विशाल समुद्र पार करके राम की सेना ने लंका पर आक्रमण किया। दशहरा और दीपावली दशहरे के दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था, इसके बाद अपनी पत्नी सीता को छुड़ाकर वापस अपने शहर अयोध्या लौटे थे, राम रावण युद्ध के बाद अयोध्या लौटने में 20 दिन लगे, इसलिए दशहरे के 20 दिन बाद दिवाली (दीपावली) मनाई जाती है। जिस दिन भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण और सुग्रीव सहित उनके सेना के कुछ साथी शहर भगवान राम की नगरी पहुचं तब शहरवासियों ने दीप जलाकर भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण का स्वागत किया था, तब से यह दीपों का त्योहार हर साल मनाया जाता है। दिवाली का महत्व, दिवाली का उद्देश्य भगवान राम ने रावण और उसकी बुराई का साथ देने वालों का वध किया, इसलिए दीपावली बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। जब धूमधाम से भगवान राम का स्वागत किया गया तो हर घर दिए इसलिए जलाए गए ताकि हर तरह के अंधेरे को मिटाया जा सके। दिवाली की रोशनी बुरे विचारों को दूर करती है, दीवाली की रोशनी सही मार्ग दिखाती है, अपने अंदर के बुराइयों को खत्म करने का मौका देती हैं। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान का भी प्रतीक है। इसलिए दिवाली की रात एक दीपमालिका तैयार की जाती है। इसमें तेल के छोटे-छोटे दीए के साथ एक बड़ा दीया भी जलाया है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ये बड़ा दिया जलाया क्यों जाता है? क्या है इस बड़े दीए का महत्व? दिवाली पर दीपक जलाने का महत्व ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि, दीवाली को दीपों का त्योहार भी कहते हैं. इस दिन दीपक जलाने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर में धन-धान्य की वर्षा होती है। वास्तु के अनुसार, दीपावली पर दीपक जलाने का विशेष महत्व है। सबसे पहले एक दीपक घर के मंदिर में जलाकर रखना चाहिए। इसके बाद सूर्यास्त के बाद, प्रदोष काल के समय दीपक जलाना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। दीपमालिका में बड़ा दीया जलाने का महत्व दीवाली की रात छोटे-छोटे दीयों से दीपमालिका बनाई जाती है। इन दीयों के बीच 1 बड़ा दीया भी रखा जाता है। यह दीया महा निषिद्ध काल में जलाया जाता है, जोकि पूरी रात जलता है। इस दीए में सरसों के तेल का यूज होता है। ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, सरसों के तेल का प्रयोग शनि और पितृ पूजन में किया जाता है। ऐसे में दिवाली को सरसों के तेल का बड़ा दीप जलाने का मतलब है कि हमारे पितृ घर में आएं और हमें सुखी और समृद्दि देखकर प्रसन्न हों। इसको देख उनको भी समृद्दि और शांति मिले, जिससे हमारा कुल और भी मजबूत हो। इस दीए से लोग काजल भी बनाते हैं। क्या है ज्योतिषीय दृष्टिकोण? ज्योतिष के अनुसार, दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा करने का शुभ समय अमावस्या के बाद का समय होता है, जिसे प्रदोष काल कहा जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग तीन घंटे का होता है। यह समय सबसे शुभ माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह का समय होता है। देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए इस समय का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि प्रदोष काल में दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि और धन-संपत्ति आती है। Post navigation जींद एसपी के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाला पत्र किसने लिखा? कोई नहीं आया सामने दीपावली पर्व पर भगवान् गणेश और मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा क्यों होती है ? : डॉ. सुरेश मिश्रा