माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पौराणिक कथा

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति रखने का नियम

धन की रक्षा करते हैं कुबेर

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

डॉ. सुरेश मिश्रा

कुरुक्षेत्र 31 अक्टूबर : कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली के पीठाधीश डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है। इस तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं, इस तिथि से चार माह तक देवताओं की रात्रि होती है। देवता शयन करने जाते हैं, इसलिए आषाढ़ी एकादशी को देवशयनी एकादशी और हरिशयनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। देवताओं के योग निद्रा में जाने के कारण चार माह तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। आषाढ़ मॉस के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से श्रावण, भाद्रपद ,आश्विन,कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की देव प्रबोधिनी एकादशी के समय को चातुर्मास कहा जाता है।

माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पौराणिक कथा :
18 महापुराणों में से महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, मंगल के दाता श्रीगणेश जी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। एक बार माता लक्ष्मी को स्वयं पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि भले ही पूरा संसार आपकी पूजा-पाठ करता है और आपके प्राप्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं। भगवान विष्णु के यह कहने के बाद माता लक्ष्मी ने कहा कि ऐसा क्या है कि मैं अभी तक अपूर्ण हूं। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बन पाती तब तक वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाती। आप निसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं। यह जानकर माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ। माता लक्ष्मी का कोई भी पुत्र न होने पर उन्हें दुखी होता देख माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहे जाने लगे। माता लक्ष्मी दत्तक पुत्र के रूप में श्रीगणेश को पाकर बहुत खुश हुईं। माता लक्ष्मी ने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहेगी। इसलिए दिवाली पूजन में माता लक्ष्मी के साथ दत्तक पुत्र के रूप में भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति रखने का नियम :
श्री गणेश भगवान जी की पूजा सभी देवताओं में सर्वप्रथम की जाती है। जहां श्रीगणेश की पूजा होती है, वहां उनके साथ उनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि अपने पुत्रों शुभ और लाभ के साथ मौजूद रहती हैं। इससे पूजनकर्ता के गृह में विघ्न टल जाता है। रिद्धि और सिद्धि ब्रह्माजी की पुत्रियां हैं। माता हमेशा अपने पुत्र के दाएं हाथ पर विराजती है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति की स्थान माता की मूर्ति के बायीं ओर की जानी चाहिए।

धन की रक्षा करते हैं कुबेर :
शास्त्रों के अनुसार, माता लक्ष्मी के धन-संपदा के भंडार की देखरेख और रक्षा का कार्यभार भगवान कुबेर के जिम्मे है। किसको कितना धन देना है, कब देना है, इसका भार माता ने कुबेर को दिया है। इसलिए दिवाली पर माता लक्ष्मी-गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा जरूरी होती है।

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